लद्दाख में भारत-चीन सैनिकों के तनाव के बीच सेनाध्यक्ष का दौरा, लेह में लिया हालात का जायजा
लद्दाख में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच दो हफ्तों से चल रहे तनाव के बीच भारतीय सेनाध्यक्ष जनरल एमएम नरवने (Manoj Mukund Naravane) ने 22 मई को लद्दाख का दौरा किया.
नई दिल्ली: लद्दाख में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच दो हफ्तों से चल रहे तनाव के बीच भारतीय सेनाध्यक्ष जनरल एमएम नरवने (Manoj Mukund Naravane) ने 22 मई को लद्दाख का दौरा किया. उन्हें भारतीय सेना की 16 कोर हेडक्वार्टर से लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल यानि एलएसी का हालातों की जानकारी ली.
सेनाध्यक्ष का दौरा ये साफ करने के लिए काफी है कि दोनों देशों के बीच तनाव न केवल बरकरार है बल्कि बढ़ भी रहा है. खबरों के मुताबिक गलवान नदी और पेंगांग झील के किनारे दोनों ओर के हजारों सैनिक एक-दूसरे के सामने जमे हुए हैं. इस साल जब भारतीय सैनिकों ने इन दोनों ही जगहों पर कुछ छोटे सैनिक निर्माण करने शुरू किए तो चीनी सैनिकों ने विरोध किया और बात बढ़ गई. गलवान घाटी का मामला कुछ ज्यादा गंभीर है जहां चीनी सैनिकों की तादाद हजारों में बताई जा रही है.
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लद्दाख रणनैतिक रूप से कितना महत्वपूर्ण है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सेनाध्यक्ष जनरल नरवणे ने अपना पहला दौरा ही इस साल जनवरी में सियाचिन का किया था. लद्दाख के कुछ इलाके पर पाकिस्तान का अवैध कब्जा है और कुछ हिस्सों पर चीन ने कब्जा किया हुआ है. गलवान नदी काराकोरम पहाड़ से निकलकर अक्साइ चीन के मैदानों से होकर बहती है जिसपर चीन का अवैध कब्जा है.
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चीन पहले ये मानता रहा कि उसका इलाका नदी के पूर्व तक ही है लेकिन 1960 से उसने इस दावे को नदी के पश्चिमी किनारे तक बढ़ा दिया. जुलाई 1962 में गोरखा सैनिक के एक प्लाटून ने जब गलवान घाटी में अपना कैंप लगाया तो चीनी सेना ने उसे घेर लिया. ये 1962 के युद्ध की सबसे लंबी घेरेबंदी थी जो 22 अक्टूबर तक जारी रही जब चीनी सेना ने भारी गोलाबारी कर पोस्ट को तबाह कर दिया.
युद्ध के बाद भी चीनी सेना उसी सीमा तक वापस गई जो उसने 1960 में तय की थी यानि अवैध कब्जा बरकरार रखा. अब गलवान घाटी में चीन दोबारा वही दोहरा रहा है जो उसने 1962 में किया था यानि घुसपैठ और उसके बाद इलाके को अपना साबित करने के लिए कूटनीतिक दुष्प्रचार.
हरकतें गलवान घाटी के अलावा दूसरी जगहों पर भी जारी रहीं लेकिन छोटे स्तर पर जिससे भारत का ध्यान बंटा रहे. 5-6 मई की रात लद्दाख की पेंगांग झील के पास दोनों देशों के सैकड़ों सैनिकों के बीच भिड़ंत हुई जिसमें दोनों ओर के सैनिक घायल हुए. सूत्रों के मुताबिक दोनों ओर से लोहे की रॉड, डंडों और पत्थरों का जमकर इस्तेमाल किया गया.
उत्तरी सिक्किम में 9 मई को भारतीय-चीनी सैनिकों के बीच झड़प हुई जिसमें कई सैनिक घायल हुए. भारतीय सेना ने ये तो माना कि सैनिकों का आमना-सामना हुआ लेकिन कहा कि हालात सामान्य हैं. उधर चीन के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने तीखे लहज़े में चीनी सरकार का पक्ष रख दिया.
ग्लोबल टाइम्स ने कहा कि गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों ने चीनी इलाक़े में निर्माण करने की कोशिश की है, इसलिए चीनी सेना ने डोकलाम के बाद सबसे बड़ा सैनिक कदम उठाया है और गलवान घाटी में तैनात सैनिकों की तादाद बढ़ा दी है. भारतीय विदेश मंत्रालय ने अपने नपे-तुले बयान में साफ किया कि भारतीय सैनिक जो भी कर रहे हैं वो अपने इलाक़े में कर रहे हैं.
गलवान घाटी भारतीय सेना के सब सेक्टर नॉर्थ इलाक़े में पड़ती है जिसमें रणनैतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण दौलत बेग ओल्डी, डेपसांग का पठार जैसे इलाक़े भी हैं जहां चीन के साथ भिड़ंत होती रहती है. चीन अक्साई चिन पर अपने अपने कब्ज़े को बढ़ाकर पूरे इलाक़े पर करना चाहता है. भारत ने दौलत बेग ओल्डी तक जाने वाली 235 किमी लंबी सड़क को भी 2019 में पूरा कर लिया है. लेकिन इस सड़क के बनने के बाद भी गलवान घाटी तक जाने के लिए लंबा मुश्किल रास्ता तय करना पड़ता है.