DNA Analysis: हम आपका ध्यान असम में आई बाढ़ की तरफ़ खींचना चाहते हैं. असम के 26 जिलों में अब भी बाढ़ का कहर जारी है और राज्य के 1600 गांव ऐसे हैं, जो बाढ़ में पूरी तरह डूब चुके हैं. पिछले एक महीने से असम के लोग बाढ़ से संघर्ष कर रहे हैं और वहां इससे मरने वाले लोगों की संख्या 179 हो चुकी है. इनमें पांच लोगों की मौत पिछले 24 घंटे में हुई है. यानी असम में बाढ़ से पिछले 24 घंटे में पांच लोग मर गए लेकिन हमारे देश के मीडिया के लिए ये हेडलाइन नहीं है. आज हम DNA में ये सवाल उठाएंगे कि, जब असम की चाय भारत की है, असम का कोयला भारत का है, असम में जिस कच्चे तेल और Natural Gas का उत्पादन होता है, वो भारत का है तो फिर असम की बाढ़ भारत की क्यों नहीं है?


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

असम की चाय भारत की तो बाढ़ क्यों नहीं?


भारत में हर साल जितनी चाय का उत्पादन होता है, उसमें से आधी से ज्यादा चाय का उत्पादन असम में ही होता है. आंकड़ों में कहें तो असम में हर साल 70 करोड़ किलोग्राम चाय का उत्पादन होता है और असम की चाय जब दूसरे देशों में बेची है तो ये भारत की चाय कहलाती है. इसी तरह असम राज्य में 37 करोड़ टन कोयले का विशाल भंडार है और ये कोयला भी भारत का कोयला कहलाता है. पूरे देश में सबसे ज्यादा Natural Gas का उत्पादन भी असम में होता है और ये Natural Gas भी भारत की ही मानी जाती है. असम का कच्चा तेल भी भारत का कच्चा तेल माना जाता है. कच्चे तेल के उत्पादन के मामले में गुजरात और राजस्थान के बाद असम का ही नाम आता है. देश में 15 प्रतिशत कच्चे तेल का उत्पादन असम में होता है.


यानी असम की चाय भी भारत की है, असम का तेल भी भारत का है, असम का कोयला और गैस भी भारत की है. लेकिन असम की बाढ़ भारत की नहीं है और इससे दुखद कुछ और नहीं हो सकता. ये स्थिति भी तब है, जब असम में हर साल बाढ़ में सैकड़ों लोग मर जाते हैं और इस बाढ़ से असम को हर साल 200 करोड़ रुपये का नुकसान होता है. आज असम का 40 प्रतिशत क्षेत्र यानी 31 लाख हेक्टेयर में फैली जमीन ऐसी है, जहां बाढ़ आने की सम्भावना बनी रहती है. देश के जिन इलाकों को बाढ़ सम्भावित क्षेत्रों में गिना जाता है, उनमें से 10 प्रतिशत क्षेत्र सिर्फ असम में है. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि अगर असम में हर साल इसी तरह बाढ़ आती रही तो एक दिन ये राज्य नक्शे से मिट जाएगा.


बाढ़ के लिए 2 नदियां जिम्मेदार


असम सरकार के मुताबिक, वर्ष 1950 के बाद से राज्य की 4 लाख 27 हजार हेक्टेयर जमीन को बाढ़ निगल चुकी है. यानी राज्य के कुल क्षेत्रफल का लगभग साढ़े सात प्रतिशत एरिया 1950 के बाद से बाढ़ में गायब हो चुका है. हर साल इस बाढ़ में असम को 8 हजार हेक्टेयर जमीन का नुकसान हो रहा है. बाकी राज्यों की तरह असम में भी हर पांच साल में चुनाव होते हैं और हर पांच साल में वहां नई सरकार आती है. लेकिन असम का दुर्भाग्य ये है कि वहां बाढ़ पांच साल बाद नहीं आती बल्कि हर साल आती है. इस बाढ़ के लिए दो बड़ी नदियां जिम्मेदार हैं.


एक है ब्रह्मपुत्र नदी और दूसरी है बराक नदी. अरुणाचल प्रदेश और मेघायल में जब भारी बारिश होती है तो इन राज्यों का पानी इन्हीं नदियों में आकर मिलता है और ये नदियां जलस्तर बढ़ने से काफी खतरनाक हो जाती हैं, जिससे असम में बाढ़ आती है. इसके अलावा नदियों का जलस्तर बढ़ने से मिट्टी का कटाव होता है और नदियों की चौड़ाई बढ़ जाती है. अभी ब्रह्मपुत्र नदी कई स्थानों और क्षेत्रों में 15 किलोमीटर तक चौड़ी हो चुकी है. यानी ये जो क्षेत्र है, वो नदी में समां चुका है. 


हम असम में आई इस बाढ़ की तरफ लगातार लोगों का ध्यान खींच रहे हैं क्योंकि बाकी राज्यों की तरह असम भी भारत का अभिन्न अंग है. असम के लोगों की जान की भी उतनी ही कीमत है, जितनी कीमत देश के दूसरे राज्यों के नागरिकों की है. ये जो संविधान है, ये कहता है कि इस देश की सरकारों और यहां की व्यवस्था को इस बाढ़ से असम के लोगों को बचाने के लिए ठोस इंतजाम करने चाहिए. ये कहना कि असम में तो हर साल बाढ़ आती है और इसमें नया क्या है, ये बहुत असंवेदनशील है. हमें ये सोचना चाहिए कि इस बाढ़ को रोका कैसे जा सकता है.


यहां देखें VIDEO: