छात्र संगठनों ने दी चेतावनी, नागरिकता बिल पास हुआ तो नॉर्थ ईस्ट में बढ़ जाएगी अशांति
असम में नागरिकता संशोधन विधेयक के निरस्त करने की मांग को लेकर आसु और नार्थईस्ट स्टूडेंट्स आर्गेनाईजेशन लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं.
गुवाहाटी: असम में छात्र संघठन आसु के अलावा 40 संगठन और असम गण परिषद् नागरिकता संशोधन विधेयक के निरस्तीकरण मांग को लेकर अडिग हैं. मंगलवार को गुवाहाटी में आसू के केंद्रीय कमेटी के नेता सीमांतो ठाकुरिया ने स्पष्ट करते हुए कहा की नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध तब तक जारी रहेगा जब तक भारत सरकार इस विधेयक को निरस्त नहीं कर देती. विरोध केवल असम में ही नहीं बल्कि पूरे नार्थ ईस्ट में हो रहा है. इसलिए मणिपुर और नगालैंड भी बंद था. मेघालय के कोनार्ड संगमा सरकार तो बीजेपी के नेडा के सदस्य होने के बावजूद भी इस बिल का विरोध कर रही है.
राज्यसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक को सरकार पेश करने वाली थी, जिसे लेकर नार्थ ईस्ट के सभी छात्र संगठनों के नेता नार्थ ईस्ट स्टूडेंट्स आर्गेनाईजेशन (नेसो) के बैनर के तहत दिल्ली में लामबंद हैं. लेकिन राज्यसभा में आज बिल को पेश न कर राज्यसभा की करवाई को 15 फ़रवरी तक बढ़ा देने से छात्र संगठनों में बेचैनी और बढ़ गई है.
नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध के मुद्दे पर असम की एनडीए सरकार, केंद्रीय सरकार और भाजपा नेताओं का कहना है कि असम में विरोध केवल कुछ लोग पैसे लेकर कर रहे हैं. इसमें कांग्रेस की चाल है. इस पर प्रतिक्रिया देते हुए आसू के केंद्रीय समिति के नेता सीमांतो ठाकुरिया ने कहा की असम सरकार जानती है कि आसू और उसके साथ 40 अन्य क्षेत्रीय संगठन इस विधेयक का पुरजोर विरोध कर रहे हैं. फिर भी इस तरह के आरोप लगाकर विरोध लीपापोती कर बिल को पास करवानी चाहती है.
आसू की केंद्रीय समिति के नेता सीमांतो ठाकुरिया ने कहा की आसू हमेशा ही अहिंसात्मक आंदोलन करने का पक्षधर रहा है. अहिंसा के मार्ग पर ही आंदोलन जारी रहेगा. जब तक की इस विधेयक को भारत सरकार निरस्त नहीं कर देती. आसू नेता संमुज्वल कुमार भट्टाचार्य चाहते हैं की राज्यसभा में विधेयक पर वोट के जरिए फैसला होना चाहिए. असम की सांस्कृतिक, सामाजिक, राजनितिक की अस्तित्व के रक्षा के लिए इस बिल का निरस्त होना जरूरी है. विपक्षी दलों के अलावा मोदी सरकार के एनडीए के घटक दल जेडीयू भी इस बिल का विरोध कर रहा है.
असम गण परिषद् के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री प्रफुल्ला कुमार महंत 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के साथ असम समझौता के हवाला देते हुए कहते हैं कि बिल के लागू होने की स्थिति पर असम समझौता का उल्लंघन होगा. क्योंकि धर्म निरपेक्षता के साथ असम एकॉर्ड में उल्लेख किया है कि जो भी बांग्लादेशी 1971 के 24 मार्च के बाद असम आएगा वह विदेशी या घुसपैठिया करार दिया जाएगा.