नई दिल्ली: अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने ‘पेशेवर कदाचार’ के लिये वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई करने की मांग करने वाली एक याचिका पर अपनी सहमति देने से मना कर दिया है. प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग के मुद्दे से संबंधित याचिका पर उच्चतम न्यायालय में दलील रखने के लिए कपिल सिब्बल के खिलाफ ये याचिका दायर की गई थी.


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अधिवक्ता अशोक पांडेय ने अपनी याचिका में यह भी कहा गया कि सिब्बल ने उस वक्त अदालत की कार्रवाई का बहिष्कार करने की धमकी देकर कथित तौर पर 'जानबूझकर अदालत की अवमानना' की, जब अयोध्या मामले पर सुनवाई जुलाई 2019 तक स्थगित करने की मांग करने वाली उनकी अर्जी ठुकरा दी गई. अटॉर्नी जनरल की सहमति किसी व्यक्ति के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरू करने के लिये पूर्व शर्त है.


उन्होंने कहा, 'कपिल सिब्बल के खिलाफ आपराधिक अवमानना याचिका दाखिल करने की खातिर सहमति के लिये किए गए अनुरोध में जिन मुद्दों का उल्लेख किया गया है, वे अच्छे खासे समय से सार्वजनिक पटल पर हैं और अंत में राज्यसभा सभापति ने महाभियोग की कार्रवाई को खारिज कर दिया.'


वेणुगोपाल ने कहा, 'इसके अलावा, महाभियोग प्रस्ताव पेश करना संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप था और कानूनी तरीके के अनुसार अपने तार्किक अंजाम तक पहुंच चुका है. मैं नहीं मानता कि ये तथ्य अवमानना का विषय हो सकते हैं.' उन्होंने कहा, 'मैं नहीं मानता कि आपके द्वारा बताए गए तथ्यों पर आपराधिक अवमानना याचिका दाखिल करना इस संस्था जो कि उच्चतम न्यायालय है उसके हित में होगा. उन सब कारणों से मैं अवमानना याचिका दाखिल करने के लिये अपनी रजामंदी देने से मना करता हूं.'


वेणुगोपाल ने मौखिक सुनवाई के भी पांडेय के अनुरोध को खारिज कर दिया. उन्होंने कहा, 'अदालत की अवमानना का कानून इस तरह की सुनवाई का प्रावधान नहीं करता है. किसी भी स्थिति में कृपया आश्वस्त रहें कि मैंने मामले के सभी पहलुओं और इसमें शामिल जनहित पर विचार किया है और मेरी राय है कि अवमानना याचिका दाखिल करने के लिये सहमति देने की खातिर यह उपयुक्त मामला नहीं है.' अदालत की अवमानना अधिनियम के तहत किसी व्यक्ति के खिलाफ अवमानना के आरोप में मुकदमा चलाने के लिये आवेदन देने से पहले अटॉर्नी जनरल की अनुमति की आवश्यकता होती है.


(एजेंसी इनपुट के साथ)