बहराइच की महसी तहसील में भेड़ियों का एक झुंड कुछ माह से हमलावर है. 17 जुलाई से लेकर अब तक भेड़ियों के हमलों में कथित तौर पर छह बच्चों व एक महिला की मौत हुई है. भेड़ियों के इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि ब्रिटिश काल में यह इलाका कैनिड प्रजाति में शामिल इन भेड़ियों का इलाका हुआ करता था. भेड़िया आबादी में खुद को आसानी से छिपा लेता है. उस जमाने में भेड़ियों को पूरी तरह से खत्म करने की कवायद हुई थी. बहुत बड़ी संख्या में उन्हें मारा भी गया था." ये दावा दुधवा राष्ट्रीय उद्यान के फील्ड निदेशक व कतर्नियाघाट वन्यजीव विहार के डीएफओ रह चुके वरिष्ठ आईएफएस अधिकारी रमेश कुमार पांडे ने किया. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

रमेश कुमार पांडे ने तराई के जंगलों में काफी वर्षों तक काम किया है. इन दिनों वह भारत सरकार के वन मंत्रालय में महानिरीक्षक (वन) के तौर पर सेवाएं दे रहे हैं. उन्‍होंने कहा, "भेड़िये, सियार, लोमड़ी, पालतू व जंगली कुत्ते आदि जानवर कैनिड नस्ल के जानवर होते हैं. उन्‍होंने कहा कि ब्रिटिश काल में भेड़ियों को मार डालने योग्य जंगली जानवर घोषित किया गया था और इन्हें मारने पर सरकार से 50 पैसे से लेकर एक रुपये तक का इनाम मिलता था. सिंह के अनुसार, हालांकि ब्रिटिश शासकों की लाख कोशिशों के बावजूद ये जीव अपनी चालाकी से छिपते-छिपाते खुद को बचाने में कामयाब रहे और आज भी बड़ी संख्या में नदियों के किनारे के इलाकों में मौजूद हैं.


Aditya Vardhan Singh: शर्मनाक! वो गंगा में डूब रहे थे...उनको बचाने की कीमत मांगी जा रही थी 10 हजार


पकड़ने के लिए टेडी डॉल का इस्‍तेमाल
देवीपाटन मंडल के आयुक्त शशिभूषण लाल सुशील के अनुसार हालिया घटनाओं में शामिल रहे आदमखोर झुंड में शामिल छह में से चार भेड़िये बीते डेढ़ माह में पकड़े जा चुके हैं और बाकी बचे हुए दो भेड़ियों के हमले अब भी जारी हैं. उन्होंने बताया कि शनिवार रात और रविवार सुबह भी इनके हमलों से एक बच्चा व एक अन्य व्यक्ति घायल हो गए. सुशील ने कहा कि थर्मल ड्रोन और सामान्य ड्रोन के जरिये इन भेड़ियों की तलाश की जा रही है.


अब इन आदमखोर भेड़ियों को पकड़ने के लिए वन विभाग बच्चों की पेशाब में भिगोई गई रंग-बिरंगी गुड़ियों का इस्तेमाल कर रहा है. इन 'टेडी डॉल' को दिखावटी चारे के रूप में नदी के किनारे भेड़ियों के आराम स्थल और मांद के पास लगाया गया है. 'टेडी डॉल' को बच्चों की पेशाब से भिगोया गया है, ताकि इनसे बच्चों जैसी गंध आए और भेड़िये इनकी तरह खींचे चले आएं.


Bahraich Bhediya Attack: अमावस की रात भेड़िए क्यों हो जाते हैं खूंखार? क्या है इसका कनेक्शन


 


प्रभागीय वनाधिकारी अजीत प्रताप सिंह ने बताया, "हमलावर भेड़िये लगातार अपनी जगह बदल रहे हैं. अमूमन ये रात में शिकार करते हैं और सुबह होते-होते अपनी मांद में लौट जाते हैं. ऐसे में ग्रामीणों और बच्चों को बचाने के लिए हमारी रणनीति है कि इन्हें भ्रमित कर रिहायशी इलाकों से दूर किसी तरह इनकी मांद के पास लगाए गए जाल या पिंजरे में फंसने के लिए आकर्षित किया जाए." सिंह ने कहा, "इसके लिए हम थर्मल ड्रोन से भेड़ियों की लोकेशन के बारे में जानकारी जुटा रहे हैं. फिर पटाखे जलाकर, शोर मचाकर या अन्य तरीकों से इन्हें रिहायशी गांव से दूर सुनसान जगह ले जाकर जाल के नजदीक लाने की कोशिश की जा रही है. हमलावर जानवर अधिकांश बच्चों को अपना निशाना बना रहे हैं, इसलिए जाल और पिंजरे के पास हमने बच्चों के आकार की बड़ी-बड़ी 'टेडी डॉल' लगाई हैं."


उन्होंने बताया कि 'टेडी डॉल' को रंग-बिरंगे कपड़े पहनाकर इन पर बच्चों के मूत्र का छिड़काव किया गया है और फिर जाल के पास व पिंजरों के अंदर इस तरह से रखा गया है कि देखने से भेड़िये को इनसानी बच्चा बैठा होने या सोता होने का भ्रम हो. सिंह के मुताबिक, बच्चे का मूत्र भेड़ियों को 'टेडी डॉल' में नैसर्गिक इनसानी गंध का एहसास दिलाकर अपने नजदीक आने को प्रेरित कर सकता है.


(इनपुट: एजेंसी भाषा के साथ)


Latest News in HindiBollywood NewsTech NewsAuto NewsCareer News और Rashifal पढ़ने के लिए देश की सबसे विश्वसनीय न्यूज वेबसाइट Zee News Hindi का ऐप डाउनलोड करें. सभी ताजा खबर और जानकारी से जुड़े रहें बस एक क्लिक में.