Bahraich wolf Attack: उत्तर प्रदेश के बहराइच में भेड़ियों के आक्रमण ने वन अधिकारियों की रातों की नींद उड़ा दी है. भेड़ियों ने बहुत ही कम समय में कम से कम छह लोगों की जान ले ली है और कई लोग उनके हमलों में घायल हो चुके हैं. उत्तर प्रदेश वन विभाग ने अब तक चार भेड़ियों को पकड़ा है, लेकिन नेपाल सीमा के पास स्थित जिले के 75 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में कई टीम के जाल डालने के बावजूद जानवरों के हमले जारी हैं. 


अचानक आक्रामकता कैसे आ गई?


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असल में इस बारे में केवल अटकलें ही लगाई जा रही हैं कि भेड़ियों में अचानक आक्रामकता कैसे आ गई कि वे बहराइच के महसी तहसील के 50 गांवों के 15000 लोगों को आतंकित कर रहे हैं. वन विभाग के एक उच्च पदस्थ अधिकारी ने रविवार को न्यूज एजेंसी से बताया कि भेड़ियों का इतना आक्रामक रवैया सामान्य बात नहीं है. रेबीज के संक्रमण से भेड़ियों की आक्रामकता बढ़ जाती है. हो सकता है कि उनके अंदर रेबीज का संक्रमण हो.


रेबीज का संक्रमण तो नहीं?


इतना ही नहीं उन्होंने यह भी कहा कि यह जरूरी है कि अब तक पकड़े गए छह में से चार भेड़ियों का मेडिकल परीक्षण कराया जाए ताकि यह पता लग सके कि कहीं उनमें रेबीज का संक्रमण तो नहीं है. बरेली स्थित भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई) के वन्य प्राणी केन्द्र में प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रभारी डॉक्टर ए.एम. पावड़े ने कहा कि इस बात पर बहुत सावधानी से गौर करने की जरूरत है कि बहराइच में भेड़ियों के हमलों का शिकार बताये जा रहे सभी लोग क्या वाकई भेड़ियों के ही हमले में मारे हैं या अन्य वन्य जीवों ने उनकी जान ली है.


दोनों का ही मामला लगता है


उन्होंने पिछले दिनों एक बच्ची की मौत के लिए भेड़िये नहीं बल्कि कबर बिज्जू को जिम्मेदार माना. उन्होंने कहा कि उस बच्ची को जानवर ने उसकी नाक की तरफ से खाया था जबकि भेड़िये ऐसे नहीं खाते. वे हमेशा या तो पैर का अंगूठा पकड़ते हैं या फिर पैर के पीछे की नस. पावड़े ने कहा कि भेड़ियों के हमले क्यों हो रहे हैं, इसके कई कारण हो सकते हैं. उन्होंने कहा कि भेड़ियों में बदला लेने की प्रवृत्ति होती है. बहराइच का मामला बदले की कार्रवाई और सिकुड़ते जंगलों के चलते इंसानी आबादी में वन्यजीवों की घुसपैठ, दोनों का ही मामला लगता है.


भेड़िये संवेदनशील स्वभाव के होते हैं


आईवीआरआई के वैज्ञानिक डॉक्टर पावडे़ ने कहा कि भेड़िये बेहद संवेदनशील स्वभाव के होते हैं. यह बात सामने आ रही है कि एक भेड़िया लंगड़ा है. संभव है कि पूर्व में वह इंसानों की आबादी वाले इलाके में घुसा हो और लोगों ने उसे मारा-पीटा हो. उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि वह भेड़िया अल्फा भेड़िया यानी अपने दल का नेतृत्वकर्ता है इसीलिए उसके झुंड ने इंसानों को निशाने पर ले लिया है. ऐसा भी हो सकता है कि किसी ने भेड़िये के बच्चों को नुकसान पहुंचाया हो, जिसकी वजह से वे हमलावर हो गये हैं.


उधर वन विभाग के सूत्रों के मुताबिक ‘ऑपरेशन भेड़िया’ की शुरुआत पिछली 17 जुलाई को हुई थी और इसमें अब तक चिन्हित किए गए छह में से चार भेड़िये पकड़े भी जा चुके हैं. मगर आखिरी भेड़िया पिछली 29 अगस्त की सुबह पकड़ा गया था. तबसे वन्य जीव के इंसानों पर हमले के कम से कम दो मामले सामने आ चुके हैं. वन्यजीव विशेषज्ञों का मानना है कि अब तक हिंसक जानवरों के हमलों में हुई कुल आठ मौतों में से कम से कम छह मृत्यु के लिए भेड़िये जिम्मेदार हैं. कम से कम 20 लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं, जिनमें से लगभग 12 से 15 लोग भेड़ियों के हमलों में जख्मी हुए हैं. 


ड़ियों को पकड़ने में दिन-रात जुटे


बहराइच के प्रभागीय वन अधिकारी अजीत प्रताप सिंह ने बताया कि कुल 165 अधिकारी और कर्मचारी आदमखोर भेड़ियों को पकड़ने में दिन-रात जुटे हैं. इसके अलावा प्रदेश सरकार ने नौ शूटर भी मैदान में उतरे हैं. उन्होंने बताया, “ प्रभावित इलाकों को भेड़ियों के हमलों की संवेदनशीलता के लिहाज से तीन श्रेणियों में बांटा गया है. हर श्रेणी में अभियान का नेतृत्व प्रभागीय वन अधिकारी या उप प्रभागीय वन अधिकारी स्तर के दो-दो अफसर कर रहे हैं. हर श्रेणी में छह-छह टीम हैं. प्रत्येक टीम में पांच-पांच सदस्य हैं.


बताया गया कि अफवाहों और खोज ऑपरेशन वाले स्थान पर बहुत बड़ी संख्या में ग्रामीणों के एकत्र हो जाने की वजह से भेड़ियो को पकड़ने के अभियान में बहुत दिक्कतें पैदा हो रही हैं. उन्होंने कहा कि रोजाना शाम से वन विभाग के अधिकारियों के पास अलग-अलग स्थानों पर भेड़ियों की मौजूदगी की सूचनाएं आनी शुरू हो जाती हैं जो अक्सर गलत निकलती हैं. अब तो हर छोटी-मोटी चोट को भी भेड़िये के हमले में लगी चोट के तौर पर बताया जा रहा है.


बहराइच की जिलाधिकारी मोनिका रानी ने बताया कि स्थानीय प्रशासन प्रभावित इलाकों में रहने वाले लोगों के घरों में दरवाजे भी लगा रहा है. उन्होंने बताया कि अब तक कोलैला, सिसैया चूरामणि, सिकंदरपुर और नकवा जैसे गांवों में 120 घरों में दरवाजे लगाए जा चुके हैं. उन्होंने बताया कि भेड़िये के हमले के लिहाज से अति संवेदनशील गांवों के आश्रयविहीन एवं असुरक्षित घरों में रहने वाले ग्रामवासियों के लिए पंचायत भवन अगरौरा दुबहा, रायपुर व चंदपइया तथा संविलियन विद्यालय सिसईया चूणामणि में आश्रय स्थल स्थापित किये गये हैं. agency input