ISRO Headquarter News:  इसरो के खाते में एक से बढ़कर एक कामयाबियां हैं. कामयाबियों की सीढ़ी चढ़ 23 अगस्त को इस संगठन ने इतिहास के पन्नों में एक और नया अध्याय जोड़ दिया. 23 अगस्त शाम 6 बजकर चार मिनट पर देश ही नहीं दुनिया की निगाह टिकी थी. मौका भी खास था. चंद्रयान 3 मिशन सभी पड़ावों को पार करते हुए अपने मंजिल के बेहद करीब था. इसरो वो कमाल करने वाला था जिसे आजतक कोई कर न पाया था. घड़ी की सुई जैसे ही 6 बजकर 4 मिनट पर पहुंची इसरो के निदेशक एस सोमनाथ ने कहा कि मिशन कामयाब और इस तरह से दुनिया में भारत पहला देश बन गया जिसने चांद के दक्षिणी ध्रुव पर विक्रम लैंडर को उतार दिया. कामयाबी की इस कहानी के पीछे इसरो की खुद की कहानी दिलचस्प है. जैसा कि हम सब जानते हैं कि इसका मुख्यालय बेंगलुरु में हैं. 


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1969 में बना इसरो


स्पेस साइंस को और आगे बढ़ाने के लिए विक्रम साराभाई के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता. 1962 से एक ऐसे संगठन की जरूरत महसूस हुई जो अंतरिक्ष विज्ञान में व्यवस्थित तरीके से काम कर सके. करीब सात साल तक चिंतन मंथन के बाद इसरो का गठन 1969 में किया गया. शुरुआत में इस संगठन का मुख्यालय बेंगलुरु में नहीं था. इसरो के मुख्यालय को बेंगलुरु ले जाने के बारे में पहली बार सतीश धवन ने सोचा था. दरअसल इसरो बनाने का विचार विक्रम साराभाई का था. लेकिन 1971 में उनका निधन बहुत बड़ा नुकसान साबित हुआ. ऐसा लगने लगा कि अब आगे क्या होगा. इन सबके बीच सतीश धवन जो इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस और एस्ट्रा के लिए पहले से ही जमीन तैयार कर रहे थे उनके कंधे पर जिम्मेदारी आई. 


सतीश धवन ने रखी थी शर्त


विक्रम साराभाई के निधन के बाद इसरो की कमान संभालने के लिए इंदिरा गांधी ने सतीश धवन से कहा. लेकिन कमान संभालने से पहले उन्होंने इंदिरा गांधी से दो बड़ी बात कही पहला ये कि इसरो के मुख्यालय को बेंगलुरु तब बैंग्लोर लाया जाए और दूसरा की उन्हें आईआईएससी के निदेशक पर बने रहने दिया जाए. इंदिरा गांधी ने हामी भरी और उसके बाद इसरो का मुख्यालय बेंगलुरु आ गया. सतीश धवन को यकीन था कि बेंगलुरु में आधारभूत संरचना पहले से मजबूत है. उदाहरण के लिए 1940 में एचएएल स्थापित हो चुका था और 1942 में आईआईएससी के एयरोनेस्टिक इंजीनियरिंग लिमिटेड के दफ्तरों को लाया जा चुका था.