Bidar Fort: बीदर की गुप्त सुरंग और चंडाल चौकड़ी.. आज भी किले में गूंजती हैं चीखें!
Bidar Fort Mystery: 4200 साल पहले बेबिलोनिया सभ्यता ने पहली बार गुप्त इस्तेमाल के लिए सुरंगें बनाई थीं. इसके बाद मिस्र, ग्रीक, और सिंधु घाटी सभ्यता में भी ऐसी ही सुरंगें विभिन्न उपयोगों के लिए बनाई गईं.
Bidar Fort Mystery: 4200 साल पहले बेबिलोनिया सभ्यता ने पहली बार गुप्त इस्तेमाल के लिए सुरंगें बनाई थीं. इसके बाद मिस्र, ग्रीक, और सिंधु घाटी सभ्यता में भी ऐसी ही सुरंगें विभिन्न उपयोगों के लिए बनाई गईं. हालांकि, सभी का एक ही उद्देश्य था - गुप्त कामों को अंजाम देना. ऐसा ही एक किला भारत में भी है. कर्नाट के बीदर में स्थित बीदर किले की एक रहस्यमयी सुरंग का जिक्र हमेशा से होता रहा है. जिसके बारे में कई ऐतिहासिक और रहस्यमय कहानियां मशहूर हैं. आइये आपको इस रहस्यमयी किले के बारे में विस्तार से बताते हैं.
बीदर फोर्ट का मजबूत किला
13वीं शताब्दी में बना बीदर फोर्ट एक अभेद्य किला माना जाता था, जो कई राजवंशों के कब्जे में रहा. 15वीं शताब्दी में बहमनी शासकों ने इसे अपनी राजधानी बीजापुर से बदलकर बीदर कर दिया. इसकी मजबूत चारदीवारी, गहरी खाइयां, और सात दरवाजों पर तैनात तोपों ने इसे और भी सुरक्षित बना दिया था. मुगलों के दौर में इसे जीतना एक बड़ी चुनौती बन गया था.
औरंगजेब की बीदर किले पर नजर
1656 में, दक्षिण भारत विजय के मिशन पर निकले औरंगजेब की नजर बीदर किले पर पड़ी. दिल्ली के शाहजहां को भी यह एहसास था कि बिना बीदर किले पर कब्जा किए दक्षिण के व्यापारिक और खनिज समृद्ध क्षेत्रों पर एकाधिकार नहीं किया जा सकता. बीदर किले की अभेद्यता और इसकी सुरक्षा ने औरंगजेब के मन में इसे जीतने की जिद पैदा कर दी.
मुगलों का बीदर किले पर हमला
2 मार्च 1657 को शाहजहां के आदेश पर मुगलों की बड़ी सेना ने बीदर किले पर हमला किया. शाहजहां ने 20,000 सैनिक, 100 से अधिक तोपें, और विशेष हथियारों से लैस फौज भेजी. हालांकि, किले के अंदर केवल 3,000 से 4,000 सैनिक ही थे, लेकिन उन्होंने पूरे 27 दिन तक मुगलों को रोके रखा. अंततः 27 मार्च 1657 को किला मुगलों के कब्जे में आ गया.
खूनी जंग और विद्रोह
बीदर किले को जीतने के लिए औरंगजेब ने पूरे जोर-शोर से युद्ध लड़ा, लेकिन इस बीच उसके जीते हुए इलाकों में विद्रोह भी शुरू हो गए. बीदर जीतने के बाद औरंगजेब को उन इलाकों को फिर से काबू में लाने के लिए बड़ी जंग लड़नी पड़ी. इस दौरान कई विद्रोही बंदी बनाए गए, जिन्हें बीदर के किले में लाकर मौत की सजा दी गई.
बीदर की गुप्त सुरंग और चंडाल चौकड़ी
बीदर किले में बनी गुप्त सुरंगों और तहखानों का जिक्र आज भी इतिहास में दर्ज है. कहा जाता है कि इन्हीं गुप्त सुरंगों में बंदियों को लाकर ‘चंडाल चौकड़ी’ के जरिए मौत की सजा दी जाती थी. हालांकि, इस सजा और इसकी पद्धति का कोई लिखित प्रमाण नहीं है, लेकिन स्थानीय कहानियों में इस सुरंग का जिक्र आज भी जीवंत है.
बहमनी शासकों का न्यायिक दृष्टिकोण
इतिहासकार बताते हैं कि बहमनी शासन ने अपने इलाके में किसी भी समुदाय को नाराज नहीं किया. बहमनी शासकों ने 13वीं शताब्दी में महार समुदाय को 52 विशेष अधिकार दिए थे, जिसमें सामाजिक स्वतंत्रता और छुआछूत का निवारण शामिल था. हालांकि, बाद के शासनकाल में सख्त सजाएं और मौत की सजा का प्रचलन बढ़ गया.
किले से गूंजती चीखों की रहस्यमयी कहानियां
बीदर किले की ‘चंडाल चौकड़ी’ में दी जाने वाली सजाओं की कहानियां आज भी लोगों में डर पैदा करती हैं. स्थानीय लोग कहते हैं कि किले में कई बार रात के समय भयानक चीखें सुनाई देती हैं, जिस वजह से वे अंधेरा होने के बाद यहां जाने से कतराते हैं. हालांकि, इसके ऐतिहासिक प्रमाण नहीं हैं, लेकिन किले का यह रहस्य लोगों के बीच जिंदा है.