एस्ट्रो टूरिज्म सर्किट के रूप में विकसित होगी आर्यभट्ट की कर्मस्थली ‘तारेगना’
Advertisement
trendingNow0/india/bihar-jharkhand/bihar525873

एस्ट्रो टूरिज्म सर्किट के रूप में विकसित होगी आर्यभट्ट की कर्मस्थली ‘तारेगना’

बीते छह साल से फाइलों में अटकी योजना जल्द ही धरातल पर उतर सकती है.

बिहार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के एक अधिकारी ने जानकारी दी.

पटना: प्रख्यात खगोलविद आर्यभट्ट की कर्मस्थली 'तारेगना खगौल' को एस्ट्रो टूरिज्म सर्किट के रूप में विकसित करने की, बीते छह साल से फाइलों में अटकी योजना जल्द ही धरातल पर उतर सकती है.

बिहार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के एक अधिकारी ने मीडिया को बताया कि वित्तीय वर्ष 2019-20 के बजट में एस्ट्रो टूरिज्म सर्किट विकसित करने के उद्देश्य से तारेगना एवं मसौढ़ी में 10 एकड़ जमीन के अधिग्रहण के लिए 10 करोड़ रुपये की राशि विमुक्त करने का प्रस्ताव किया गया है. 

 

मंत्रालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार, इस परियोजना की संकल्पना 2012 में तैयार की गई और रूचि पत्र: एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट आमंत्रित किये गए. वर्ष 2013-14 में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की पहल पर एस्ट्रो टूरिज्म प्रोजेक्ट के संबंध में कई खगोलविदों ने अपनी अध्ययन रिपोर्ट प्रदेश सरकार को सौंपी लेकिन यह फाइलों तक ही सीमित रही.

इस परियोजना के तहत, आर्यभट्ट की कर्मस्थली, पटना से सटे तारेगना (मसौढ़ी) खगौल एवं तारेगना टॉप (बिहटा) को उनके ऐतिहासिक तथा खगोलीय महत्व के अनुसार विकसित किया जाना है . इन जगहों पर ‘थीम बेस्ड एरिया एस्ट्रोनॉमी सेंटर’, संग्रहालय एवं वेधशाला की स्थापना का प्रस्ताव है . वेधशाला में टेलीस्कोप सहित अनेक उपकरण होंगे . 

अवकाशप्राप्त शोध पदाधिकारी सिद्धेश्वर नाथ पांडेय ने बताया कि तारेगना (मसौढ़ी) तारेगना टॉप (बिहटा) और खगौल करीब 30 - 30 किमी की दूरी पर हैं . तीनों स्थानों को मिलाकर एक खास खगोलीय त्रिकोण बनता है, जो तारों और ग्रहों की सटीक गणना में काफी मददगार होता है . ऐसे ऐतिहासिक प्रमाण मिले हैं कि तारेगना में आर्यभट्ट की वेधशाला थी जहां से वह शोध करते थे . ऐसे में यहां पर एस्ट्रो टूरिज्म सेंटर स्थापित करना महत्वपूर्ण है . 

आर्यभट्ट का जन्म पाटलिपुत्र :तब कुसुमपुर: में 476 ईस्वी में हुआ था .

खगोलविद अभिताभ पांडेय ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इस स्थान पर विशाल रेखागणितीय स्मारक चिह्न उकेरा जा सकता है, जो सूर्य, घड़ी और वर्ष के कैलेंडर का काम करेगा . साथ ही आर्यभट्ट संग्रहालय बनाकर उसमें उनकी जीवनी, खगोल विज्ञान में उनके योगदान एवं इस्तेमाल किये गये उपकरणों को प्रदर्शित किया जाये .