Bhagalpur News: कहते हैं अगर हौसले बुलंद हो तो मुश्किल से मुश्किल परेशानियों का हल किया जा सकता है. यह पंक्ति आज बिहार के एक और बेटी पर सटीक बैठती है जो दिव्यांग हैं, लेकिन दिव्यांगता को उन्होंने कमजोरी नहीं बल्कि उसे ढाल बना लिया और खेल में बिहार का परचम लहरा दिया. अपने हौंसले और हुनर से कई गोल्ड, सिल्वर और ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया है. 9 राज्यों में पैरा एथलेटिक्स, दो देशों में अंतर्राष्ट्रीय गेम समेत कई गेम्स में मेडल अपने नाम कर लिया.


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हम बात कर रहे हैं बांका के पंजवारा की रहने वाली अर्चना की. अर्चना 17 वर्ष से दिव्यांग है. वर्ष 2006 में वह छत से गिरी जिसके बाद शरीर का 40 प्रतिशत हिस्सा बेजान हो गया है, लेकिन बचपन से जिद्दी अर्चना ने ज़िद ठान ली थी कि वह बिहार के लिए गेम्स में कुछ करेगी, फिर वह व्हील चेयर पर ही बैठकर प्रेक्टिस करने लगी. व्हील चेयर से वह शॉटपुट और डिस्कस थ्रो गेम का प्रैक्टिस करती थी. 2009 से उन्होंने मेडल लाना शुरू किया. इसके बाद हरियाणा, दिल्ली, पुणे, बेंगलुरु, बिहार समेत कई राज्यों में पैरा एथलेटिक्स में हिस्सा लिया और वहां से जीतकर आयी.


साल 2018 में एशियन पैरा गेम्स में हिस्सा ली. चीन के बीजिंग में अंतरराष्ट्रीय गेम्स में हिस्सा लिया था. दिव्यांगता के बावजूद इन्होंने अब तक नेशनल स्तर की प्रतियोगिता में एक दर्जन से अधिक सिल्वर गोल्ड ब्रॉन्ज को अपने नाम किया है. हाल ही में गोवा में आयोजित राष्ट्रीय पैरा एथलेटिक्स प्रतियोगिता में कांस्य और रजत पदक जीत कर आई है. स्पोर्ट्स कोटा से अर्चना को 2021 में नौकरी भी मिली. भागलपुर के समाहरणालय स्थित जिला दिव्यांगजन सशक्तिकरण कोषांग में क्लर्क के पद पर हैं. फिलहाल, वह भागलपुर मारवाड़ी पाठशाला के समीप रहती है. सुबह में प्रेक्टिस करती है उसके बाद ऑफिस जाती है.


अर्चना बताती है कि उन्होंने कई परेशानियों को झेला है। परिवार की आर्थिक स्थिति सही नहीं थी, सिर से पिता का साया भी 2020 में हट गया. लेकिन हार नहीं माने. अर्चना ने ज़ी मीडिया से खास बातचीत में बताया कि बचपन से ही खेल में रुचि थी. 2006 में छत पर पढ़ाई के दौरान गिर गए स्पाइनल इंज्यूरी हुई, जिससे शरीर का आधा हिस्सा काम नहीं करने लगा. बगैर व्हील चेयर के कुछ नहीं कर पाते है. इसके बाद भी शॉटपुट और डिस्कस थ्रो की तैयारी की फिर कई राज्यों, दो देशों में बिहार का प्रतिनिधित्व किया और यहीं नहीं रुकेंगी. मेरी इच्छा है अब ओलपिंक में देश का प्रतिनिधित्व कर मेडल लेकर आएं.


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अर्चना को आगे ले जाने में उनकी मां फूलवती देवी ने साथ दिया है. पति के निधन के बाद भी वह नहीं टूटी विपत्तियां आती गयी, लेकिन उन्होंने बेटी को हमेशा आगे बढ़ाया. अर्चना कि मां से जब हमने बात की तो उनके आंख में आंसू आ गए. उन्होंने कहा कि बेटी आगे बढ़ती है तो मां-बाप काफी खुश होते ही है जब इसके साथ हादसा हुआ था तब सभी दुखी थे, लेकिन आगे बढ़ती गई. मेहनत की अब पूरा परिवार खुश है.


रिपोर्ट: अश्विनी कुमार