पिछले दिनों केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री बिहार के दौरे पर थे. बड़े बड़े अस्पतालों के उद्घाटन किए गए और स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर तमाम दावे किए गए पर नेताओं के वादे और दावे हकीकत की कसौटी पर कहां खरे उतर पाते हैं. लोग पहले भी झेल रहे हैं और आज भी. अब भागलपुर जिले के रंगरा प्रखंड के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का ही मामला देख लीजिए. यहां के हेल्थ सिस्टम ने भगवान के आशीर्वाद को दंपति से छीन लिया और फिर से एक मां की गोद सूनी हो गई. शादी के पांच साल बाद दंपति की गोद भरी थी पर सरकारी हेल्थ सिस्टम की लापरवाही ने पल भर में खुशियों को मातम में बदल दिया. अस्पताल में बिजली कट गई और जेनरेटर में तेल नहीं था. आक्सीजन सपोर्ट पर चल रहे बच्चे का दम घुट गया और जन्म के महज डेढ़ घंटे बाद ही बच्चे की मौत हो गई.


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दरअसल, पत्नी को लेबर पेन के बाद मधेपुरा के मोहम्मद सऊद रंगरा सीएचसी पहुंचे थे. यहां सऊद की पत्नी ने एक बच्चे को जन्म दिया. दम्पत्ति बच्चे के जन्म को लेकर काफी खुश थे. पूरा परिवार खुशियां मना रहा था. सबको फ़ोन कर खुशखबरी बताई गई, लेकिन दंपत्ति को क्या मालूम कि उसका बच्चा लचर स्वास्थ्य व्यवस्था का शिकार हो जाएगा. 


बच्चे के जन्म के बाद नर्सों ने उसके अभिभावकों को बच्चे के स्वस्थ होने और उसे आक्सीजन सपोर्ट पर रखे जाने की सूचना दी. इस बीच बिजली कट गई. जेनरेटर स्टार्ट करने को कहा गया तो उसमें तेल नहीं था. 20 से 25 मिनट बाद जेनरेटर स्टार्ट हुआ. बिजली आती उससे पहले बच्चे की हालत बिगड़ गई और उसकी जान चली गई. 


अस्पताल में जमकर हंगामा हुआ. परिजनों ने नर्सों पर फ़ोन चलाने और बदतमीजी के भी आरोप लगाए. आरोप लगे कि अस्पताल में प्राइवेट नर्सिंग के स्टूडेंट प्रैक्टिकल करते हैं. अस्पताल के प्रभारी ने कहा, हमारे पास संसाधनों की कमी है. शिशु रोग विशेषज्ञ नहीं हैं. 


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अब सवाल यह है कि क्या यही बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था है? क्या इसी स्वास्थ्य व्यवस्था के बलबूते सरकार जनता को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा देने के वादे और दावे करती है. क्या ऐसे लापरवाहों पर कार्रवाई होगी? अस्पताल के लचर व्यवस्था ने दम्पत्ति की खुशियां लील ली, आखिर इसका जिम्मेदार कौन है.


रिपोर्ट: आश्विनी कुमार


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