Bhojpuri Cinema: 1927 में शुरू हुए दुनिया के सबसे प्रसिद्ध फिल्म अवॉर्ड ऑस्कर के ठीक 27 साल बाद 1954 में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार की भी स्थापना के साथ फिल्म फेयर अवॉर्ड की शुरुआत हुई. बता दें कि दोनों ही अवॉर्ड बेहतरीन फिल्मों को दिए जाते रहे हैं. दुनिया भर की चुनिंदा फिल्में जहां ऑस्कर में भेजी जाती हैं वहीं भारतीय भाषा की चुनिंदा फिल्मों को फिल्म फेयर में जगह दी जाती है लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि भारत की सार्वाधिक चर्चा में रहनेवाली और हिंदी के बाद सबसे ज्यादा दर्शक वर्ग वाली भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री भोजीवुड की फिल्में कभी फिल्म फेयर का हिस्सा नहीं बन पाई. खैर जब वह फिल्म फेयर का हिस्सा नहीं बन पाई तो फिर ऑस्कर का हिस्सा क्या हीं बनेंगी. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि इसके पीछे की वजह क्या है. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING


भोजपुरी फिल्मों की शुरुआत जब हुई तब की फिल्में और जब दूसरी बार लंबे अरसे के बाद इस फिल्म इंडस्ट्री की फिल्मों ने तहलका मचाना शुरू किया तो इसमें कई तरह के अंतर सामने आने लगे. इतनी प्यारी भाषा भोजपुरी को पसंद करनेवाले पूरे देश में ही नहीं दुनिया भर में 40 करोड़ से ज्यादा दर्शक हैं जो हिंदी सिनेमा के बाद सबसे बड़ी संख्या है. हिंदी सिनेमा यानी बॉलीवुड के बाद सबसे ज्यादा फिल्में भोजपुरी इंडस्ट्री की तरफ से हर साल तैयार होती और रिलीज होती है. इन छोटी बजट की भोजपुरी फिल्मों का दर्शकों को खूब प्यार भी मिलता है. भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री को ग्लोबल पहचान भी मिली हुई है. इसके बाद भी क्या वजह है कि भोजपुरी फिल्मों को कभी फिल्म फेयर तक में जगह नहीं मिल पाई. 


ये भी पढ़ें- रवि किशन भी हुए थे कास्टिंग काउच के शिकार, रात में कॉफी पीने बुलाया और फिर...


इसकी सबसे बड़ी वजह भोजपुरी फिल्मों में व्याप्त अश्लील संवाद, अश्लील दृश्यों का फिल्मांकन है जो बेवजह फिल्मों में केवल मसाले के तौर पर भरे जाते हैं. ऐसा नहीं है कि अन्य इंडस्ट्री की फिल्मों में अश्लील संवाद और दृश्य नहीं होते हैं लेकिन उनको सिचुएशन के आधार पर कहानी की मांग पर डाला जाता है. आपको बता दें ऊपर से भोजपुरी फिल्मों के पास मौलिक कहानियों का हमेशा अभाव रहा. इनकी ज्यादातर फिल्में किसी ना किसी भाषा की फिल्म की कॉपी रही हैं और वहीं से इसके टाइटल के साथ कहानी तक को लेकर इसे भोजपुरी में रिलीज किया जाता रहा है. 


इसकी तीसरी वजह फिल्म का कम बजट में तैयार होना और इसके फिल्मांकन पर ज्यादा ध्यान नहीं देना रहा है. फिल्म के निर्माण पर जहां साउथ में हिंदी सिनेमा से भी ज्यादा पैसा खर्च किया जाता है और साथ ही उनके फिल्मांकन को अद्भुत और अकल्पनीय बनाने की पूरी कोशिश की जाती है वहीं भोजपुरी सिनेमा के पास ऐसा कुछ भी नहीं हैं. इससे भी बड़ी वजह भोजपुरी के गाने हैं जो अश्लीलता का पर्याय बन गए हैं. इसकी वजह से भी इस फिल्म इंडस्ट्री की फिल्मों को फिल्म फेयर तक के मंच पर जगह नहीं दी जाती है. हालत यह है कि भोजपुरी इंडस्ट्री को अपना अवॉर्ड शो कराकर ही संतुष्ट होना पड़ता है. भोजपुरी फिल्मों के संवाद, सिनेमेटोग्राफी, कोरियोग्राफी, एक्शन ये सब इतने औसत दर्जे के होते हैं कि इसकी वजह से भी भोजपुरी फिल्में ज्यादा प्रभाव छोड़ने में कामयाब नहीं रहती. ऐसे में भोजपुरी फिल्मों को रिलीज के लिए सिंगल थियेटर के अलावा कम ही स्क्रीन मिल पाता है. 


हालांकि अब धीरे-धीरे भोजपुरी की फिल्मों को बनाने में कहानी में संवाद में एक्शन में थोड़ा बदलाव करने के साथ फिल्मों को बनाने के बजट में भी इजाफा किया जा रहा है लेकिन अभी भी हालात में कुछ ज्यादा बदलाव नहीं हो पाया है. ऐसे में अभी तो भोजपुरी फिल्मों को फिल्मफेयर के मंच पर पहुंचने में काफी वक्त लगने वाला है. ऐसे में ऑस्कर तो उसके लिए दूर की कौड़ी है.