पटनाः Devotthan Ekadashi, Prabodhini Ekadashi: चार माह के चौमासे बीतने के बाद देवोत्थान एकादशी के दिन भगवान विष्णु का जागरण होगा. इसी कारण इसे देव उठनी एकादशी भी कहते हैं. कई स्थानों पर इसे प्रबोधिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. यह एकादशी अंधकार दूर करने वाली एकादशी है.


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यह ज्ञान की प्रतीक है. जब आप सो रहे होते हैं उसे निद्रा कहा गया है. निद्रा में चेतना नहीं होती है, लेकिन जब आंख खुलती है तो मन-मस्तिष्क में चेतना का संचार होता है. प्रकाश का बोध होता है. प्रकाश का बोध होना ही प्रबोधिनी है. देवोत्थान के दिन कैसे करते हैं भगवान की पूजा जानिए पूजा विधि


देवोत्थान एकादशी व्रत और पूजा विधि
प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु का पूजन और उनसे जागने का आह्वान किया जाता है. 


प्रातःकाल उठकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए और भगवान विष्णु का ध्यान करना चाहिए. घर की सफाई के बाद स्नान आदि से निवृत्त होकर आंगन में भगवान विष्णु के चरणों की आकृति बनाना चाहिए. एक ओखली में गेरू से चित्र बनाकर फल, मिठाई, बेर, सिंघाड़े, ऋतुफल और गन्ना उस स्थान पर रखकर उसे डलिया से ढांक देना चाहिए.
इस दिन रात्रि में घरों के बाहर और पूजा स्थल पर दीये जलाना चाहिए. रात्रि के समय परिवार के सभी सदस्य को भगवान विष्णु समेत सभी देवी-देवताओं का पूजन करना चाहिए. इसके बाद भगवान को शंख, घंटा-घड़ियाल आदि बजाकर उठाना चाहिए. 


तुलसी विवाह का आयोजन
देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह का आयोजन भी किया जाता है. तुलसी के वृक्ष और शालिग्राम की यह शादी सामान्य विवाह की तरह पूरे धूमधाम से की जाती है. चूंकि तुलसी को विष्णु प्रिया भी कहते हैं इसलिए देवता जब जागते हैं, तो सबसे पहली प्रार्थना हरिवल्लभा तुलसी की ही सुनते हैं.


तुलसी विवाह का सीधा अर्थ है, तुलसी के माध्यम से भगवान का आह्वान करना. शास्त्रों में कहा गया है कि जिन दंपत्तियों के कन्या नहीं होती, वे जीवन में एक बार तुलसी का विवाह करके कन्यादान का पुण्य अवश्य प्राप्त करें.


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