Dev Uthani Ekadashi: पुराणों तथा हिन्दू धर्मग्रंथों में कार्तिक माह में भीष्म पंचक व्रत का विशेष महत्व कहा गया है. यह व्रत कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी से आरंभ होता है तथा पूर्णिमा तक चलता है. कार्तिक स्नान करने वाले सभी लोग इस व्रत को करते हैं.
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पटनाः Dev uthani Ekadashi And Bhishma Panchank: चार महीने के चौमासे के बाद अब प्रभु उठने वाले हैं. भगवान श्री हरि का शयन समाप्त होने के कारण इसे देव उठनी एकादशी या देवोत्थान एकादशी कहते हैं. इस दिन देव दीपावली मनाए जाने का विधान भी है. इसी दिन से पांच दिन के पवित्र भीष्म पंचक की शुरुआत होती है. इससे संबंधित पुराणों में कथा आती है.
यह है पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एकबार भगवान नारायण से लक्ष्मी जी ने पूछा- “हे नाथ! आप दिन रात जागते हैं और सोते हैं तो लाखों-करोड़ों वर्षों तक सोते रहते हैं. आप नियम से प्रतिवर्ष निद्रा लिया करें. इससे मुझे भी कुछ समय विश्राम करने का समय मिल जाएगा.”
श्रीहरि ने कही ये बात
लक्ष्मी जी की बात सुनकर नारायण मुस्कुराए और बोले- “देवी! तुमने ठीक कहा है. मेरे जागने से सब देवों और खासकर तुमको कष्ट होता है. तुम्हें मेरी वजह से जरा भी अवकाश नहीं मिलता. अतः तुम्हारे कथनानुसार आज से मैं प्रतिवर्ष चार मास वर्षा ऋतु में शयन किया करूंगा. उस समय तुमको और देवगणों को अवकाश होगा.
इसलिए महत्वपूर्ण है देवोत्थान एकादशी
मेरी यह निद्रा अल्पनिद्रा और प्रलय कालीन महानिद्रा कहलाएगी. मेरी यह अल्पनिद्रा मेरे भक्तों के लिए परम मंगलकारी होगी. इस काल में मेरे जो भी भक्त मेरे शयन की भावना कर मेरी सेवा करेंगे और शयन व उत्थान के उत्सव को आनंदपूर्वक आयोजित करेंगे उनके घर में, मैं तुम्हारे साथ निवास करूंगा.”
इस प्रकार जो भी भक्त देव उठनी के दिन भगवान विष्णु जी की पूजा आराधना करता है उसके घर भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी का वास होता है.
भीष्म पंचक का महत्व
पुराणों तथा हिन्दू धर्मग्रंथों में कार्तिक माह में भीष्म पंचक व्रत का विशेष महत्व कहा गया है. यह व्रत कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी से आरंभ होता है तथा पूर्णिमा तक चलता है. कार्तिक स्नान करने वाले सभी लोग इस व्रत को करते हैं. भीष्म पितामह ने इस व्रत को किया था, इसलिए यह भीष्म पंचक नाम से प्रसिद्ध हुआ.
महाभारत से जुड़ी है कथा
जब महाभारत युद्ध के बाद पांडवों की जीत हो गई, तब श्रीकृष्ण पांडवों को भीष्म पितामह के पास ले गए और उनसे अनुरोध किया कि वह पांडवों को ज्ञान दें. शरसैया पर लेटे हुए सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा कर रहे भीष्म ने कृष्ण का अनुरोध स्वीकार किया और कृष्ण सहित पांडवों को राज धर्म, वर्ण धर्म एवं मोक्ष धर्म का ज्ञान दिया.
भीष्म द्वारा ज्ञान देने का यह सिलसिला एकादशी से लेकर पूर्णिमा तिथि अर्थात् पांच दिनों तक चलता रहा. तब श्रीकृष्ण ने कहा- आपने जो पांच दिनों में ज्ञान दिया है, यह पांच दिन आज से अति मंगलकारी हो गए हैं. इन पांच दिनों को भविष्य में भीष्म पंचक के नाम से जाना जाएगा.