पटनाः Shivratri Pooja Vidhi: आने वाली एक मार्च को शिवरात्रि का पर्व मनाया जाएगा. भगवान भोलेनाथ का ये उत्सव प्रकृति से एकाकार का उत्सव है. शिवजी के पूजन से व्यक्ति का चंद्र सबल होता है, जो मन का कारक है. दूसरे शब्दों में कहें तो शिव की आराधना इच्छा-शक्ति को मज़बूत करती है और अन्तःकरण में अदम्य साहस व दृढ़ता का संचार करती है. शिवरात्रि कैसे मनाई जाती है, किस दिन मनाना चाहिए इसे लेकर भी खास तौर पर ज्योतिष गणना हैं. शिवरात्रि से पहले इन्हें जान लेना जरूरी है.


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इस दिन होती है शिवरात्रि


चतुर्दशी पहले ही दिन निशीथव्यापिनी हो, तो उसी दिन महाशिवरात्रि मनाते हैं. रात्रि का आठवाँ मुहूर्त निशीथ काल कहलाता है. सरल शब्दों में कहें तो जब चतुर्दशी तिथि शुरू हो और रात का आठवाँ मुहूर्त चतुर्दशी तिथि में ही पड़ रहा हो, तो उसी दिन शिवरात्रि मनानी चाहिए. चतुर्दशी दूसरे दिन निशीथकाल के पहले हिस्से को छुए और पहले दिन पूरे निशीथ को व्याप्त करे, तो पहले दिन ही महाशिवरात्रि का आयोजन किया जाता है. उपर्युक्त दो स्थितियों को छोड़कर बाक़ी हर स्थिति में व्रत अगले दिन ही किया जाता है.


ऐसे करें शिवपूजन


मिट्टी के लोटे में पानी या दूध भरकर, ऊपर से बेलपत्र, आक-धतूरे के फूल,चावल आदि डालकर ‘शिवलिंग’ पर चढ़ाना चाहिए.अगर आस-पास कोई शिव मंदिर नहीं है, तो घर में ही मिट्टी का शिवलिंग बनाकर उनका पूजन किया जाना चाहिए.शिव पुराण का पाठ और महामृत्युंजय मंत्र या शिव के पंचाक्षर मंत्र ॐ नमः शिवाय का जाप इस दिन करना चाहिए, साथ ही महाशिवरात्री के दिन रात्रि जागरण का भी विधान है. शास्त्रीय विधि-विधान के अनुसार शिवरात्रि का पूजन ‘निशीथ काल’ में करना सर्वश्रेष्ठ रहता है. हालाँकि भक्त रात्रि के चारों प्रहरों में से अपनी सुविधानुसार यह पूजन कर सकते हैं.


इस दिन हुआ था महादेव-पार्वती का विवाह


भगवती पार्वती ने शिव को पति के रूप में पाने के लिए घनघोर तपस्या की थी. पौराणिक कथाओं के अनुसार इसके फलस्वरूप फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था. यही कारण है कि महाशिवरात्रि को अत्यन्त महत्वपूर्ण और पवित्र माना जाता है.