Patna: बिहार में दो सीटों पर उपचुनाव के नतीजे सामने आ गए हैं. इसके साथ ही चुनाव से पूर्व चल रहे तमाम अटकलों, कयासों और सियासी उलटफेर के अनुमानों पर भी विराम लग गया है. दोनों सीटें सत्ताधारी JDU ने अपने पास बरकरार रखी हैं और RJD के मंसूबों पर पानी फिर गया. JDU के लिए जीत कितनी महत्वपूर्ण थी, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उपचुनाव के दौरान सत्ताधारी दल ने यहां अपनी पूरी ताकत लगा दी थी. RJDको भी मौजूदा विधानसभा की दलीय स्थिति के लिहाज से इन दो सीटों के नतीजों के महत्व का पता था, यही वजह है कि तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने भी इन दोनों सीटों पर ज़ोर आजमाइश करने में कोई कमी नहीं की. हालांकि नतीजे उनके पक्ष में नहीं रहे. 


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'CM नीतीश ने सहयोगी-विपक्ष को दे दिया संदेश'


अब जब विधानसभा उपचुनाव का परिणाम सामने आ गया है, तो सवाल ये उठ रहा है कि इन नतीजों का बिहार की सियासत में फौरी तौर पर और दूरगामी क्या असर पड़ेगा. इसका पहला असर तो ये होगा कि जेडीयू कार्यकर्ताओं और नेताओं का उत्साह बढ़ेगा. विधानसभा चुनाव में खराब परफॉर्मेंस के बाद जिस तरह से पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल टूट गया था, उसमें बढ़ोतरी होगी. JDU सत्ताधारी गठबंधन में अपनी स्थिति मजबूत रखेगी और विपक्ष के साथ-साथ बीजेपी को भी ये संदेश देने में कामयाब रहेगी कि फिलहाल बिना नीतीश कुमार और जेडीयू के बिहार की सियासत का कोई भी ताना-बाना नहीं बुना जा सकता है.


अति उत्साह में RJD की हार हुई!


RJD इस चुनाव को युद्ध की तरह लड़ रही थी. पार्टी कहीं भी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहती थी. ये चुनाव प्रचार के अंतिम दिन लालू प्रसाद को उतारकर RJD ने साबित भी कर दिया था. चुनाव प्रचार के दौरान तेजस्वी यादव ने लगातार सरकार गिराने, सरकार बनाने और 'खेला होने' का नारा भी दिया था. बिहार विधानसभा की सबसे बड़ी पार्टी RJD को ये मालूम था कि अगर नतीजे उनके पक्ष में आए तो विपक्ष के खाते में 2 सीट की बढ़ोतरी और पक्ष के खाते में 2 सीट की कटौती सियासी समीकरणों को नई दिशा दे सकते हैं. लेकिन RJD के तमाम मंसूबों पर पानी फिर गया है. हालांकि हार के बावजूद RJD के पास खुश होने की वजह ये है कि तारापुर में जहां साल भर के भीतर आरजेडी का वोट बढ़ गया है तो कुशेश्वरस्थान में अरसे बाद चुनाव लड़ रही आरजेडी का संगठन खड़ा हो गया है. वैसे तेजप्रताप यादव के साथ-साथ कई सीनियर नेताओं के बयान समीक्षा की तरफ भी इशारा कर रहे हैं.


कांग्रेस को ज़ीरो से शुरू करना है


कांग्रेस के लिए विधानसभा का उपचुनाव दोहरी मार लेकर आया है. एक तरफ पार्टी को दोनों सीटों पर हार का सामना करना पड़ा तो दूसरी तरफ महागठबंधन में अपने सहयोगी पर पकड़ की जो लड़ाई कांग्रेस लड़ रही थी उसमें भी 'हाथ' को करारा झटका लगा है. बिहार में दो सीटों पर अकेले लड़कर कांग्रेस को जो वोट हासिल हुआ है वो ज़ीरो से शुरू करने जैसा है. यहां से कांग्रेस को तय करना है कि उसे महागठबंधन में अपनी कमजोर होती भूमिका के साथ रहना है या यहां से बिहार में संगठन निर्माण की अपनी लड़ाई अकेले लड़नी है.


BJP को नहीं पड़ना था फर्क


उपचुनाव के इस जंग से बीजेपी शुरू से ही बाहर थी. दोनों सीटों पर बीजेपी की सहयोगी जेडीयू चुनाव लड़ रही थी और दोनों जगहों पर बीजेपी के नेता ईमानदारी से मेहनत भी कर रहे थे. बीजेपी को इस हार-जीत से बहुत फर्क पड़ना भी नहीं था, वैसे भी ये दोनों सीटें जेडीयू विधायकों के निधन के बाद ही खाली हुई थी. लेकिन इतना जरूर था कि अगर चुनाव परिणाम कुछ और होता तो बीजेपी की चिंता सरकार बचाने को लेकर बढ़ सकती थी.


उपचुनाव का संदेश, नहीं होगा कोई बदलाव


इस उपचुनाव का साफ संदेश है कि बिहार में फिलहाल कोई बदलाव नहीं होने वाला. तेजस्वी यादव को ये समझना चाहिए कि अति उत्साह ज्यादातर मामलों में नुकसानदेह साबित हो सकता है. सहयोगी को साथ ना लेकर चलने की आदत उपचुनाव तक तो ठीक है लेकिन बड़े चुनाव में नुकसानदायक भी साबित हो सकता है.


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एक महत्वपूर्ण बात लालू प्रसाद को लेकर कही जा रही है कि जब लालू प्रसाद की ग़ैरमौजूदगी में RJD बिहार की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, तो बीमार होने के बावजूद उन्हें 2 सीटों के उपचुनाव में प्रचार के लिए उतारना क्या कोई रणनीतिक भूल थी. लालू प्रसाद के प्रशंसकों की भीड़ जहां चुनाव का परिणाम बदल सकते हैं तो लालू प्रसाद के डायरेक्ट चुनाव अभियान में जुटने से वोटों के ध्रुवीकरण का खतरा भी बढ़ जाता है. ऐसे में आरजेडी को इस तरफ भी चिंतन करना चाहिए. कुल मिलाकर लोकतंत्र की धरती बिहार में उपचुनाव के नतीजे फिलहाल सियासी समीकरणों में किसी भी तरह के फेरबदल करते नज़र नहीं आते.