Rath Yatra 2022:आखिर क्यों बीमार पड़ जाते हैं भगवान जगन्नाथ, जानिए ये कथा
Rath Yatra 2022: संसार के सारे रोग-कष्ट दूर करने वाले भगवान जगन्नाथ बीमार पड़ जाते हैं. सदियों पहले से चली आ रही परंपरा के मुताबिक भगवान जगन्नाथ एकांतवास में चले जाते हैं. आखिर क्या है इसकी वजह
पटनाः Rath Yatra 2022: जगन्नाथ पुरी में रथ यात्रा की तैयारियां जोर-शोर से जारी हैं. इस समय पूरी में अनासार का समय चल रहा है. अनासार यानी कि वह समय जब भगवान बीमार पड़ जाते हैं और एकांतवास में चले जाते हैं. भगवान 15 दिन के लिए बीमार पड़ते हैं और जब ठीक होते हैं तब नैनासार उत्सव मनाया जाता है. लेकिन, क्या भगवान भी बीमार पड़ते हैं, अगर हां तो क्यों और कैसे? इन सवालों के पीछे की वजह एक करुण कथा है, जिससे भक्ति और भगवान की महिमा का पता चलता है.
बीमार हो गए भगवान के भक्त
बहुत पहले की बात है. ओडिशा के पुरी क्षेत्र में एक भक्त माधव दास रहते थे. वह रोज ही भगवान की पूजा करते, प्रसाद में जो मिलता खा लेते और सादा जीवन जीते थे. एक बार वह बीमार पड़े. उन्हें जोर का बुखार चढ़ गया. वह अकेले थे तो कोई उनकी सेवा के लिए नहीं था. फिर भी उन्होंने अपनी भक्ति में कोई कमी नहीं की. लोग उन्हें सलाह देते थे, लेकिन उपचार के लिए कोई न ले जाता. माधवदास भी कहते कि जब भगवान मेरा ख्याल रख रहे हैं तो मुझे किसी की क्या जरूरत. लेकिन, एक दिन बीमारी काफी बढ़ गई तो माधवदास का कमजोर शरीर झेल न सका और वे बेहोश हो गए.
भगवान ने की भक्त की सेवा
तब उस दिन भगवान खुद आए और उनकी सेवा करने लगे. जगन्नाथ जी उनके मल-मूत्र साफ करते, नहलाते, कपड़े बदलते और अपने हाथ भोजन-औषधि देते. माधवदास जब ठीक होने लगे तब उन्होंने पहचाना कि भगवान खुद उनकी सेवा में लगे हैं. तब माधव दास रो पड़े. उन्होंने कहा कि आप मेरी सेवा करने क्यों आए? आप मुझे तुरंत ठीक भी तो कर सकते थे. तब जगन्नाथ जी ने कहा, मैं अपने भक्तों का साथ नहीं छोड़ता, लेकिन उनके कर्म में जो लिखा है वह तो होगा ही, लेकिन चलो, मैं एक एक काम करता हूं. अभी तुम्हारी बीमारी के 15 दिन और शेष हैं. वह मैं अपने ऊपर ले लेता हूं. उस दिन ज्येष्ठ पूर्णिमा थी.
मनाया जाता है नैनासार उत्सव
जगन्नाथ जी अपने मंदिर पहुंचे और उसी दिन उन्हें स्नान के बाद ज्वर होने लगा. तब से यह परंपरा पुरी में चल पड़ी. भगवान अपने उसी भक्त माधवदास की बीमारी में बीमार होते हैं और इस दौरान एकांतवास में चले जाते हैं. इसे अनासार कहते हैं. इसके 15 दिन बाद जब भगवान ठीक होते हैं तब नैनासर उत्सव मनाते हैं, इसके बाद ही भगवान भ्रमण के लिए बाहर निकलते हैं. इसी भ्रमण को रथयात्रा कहते हैं.
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