पटनाः Ravidas Jayanti: माघ पूर्णिमा की पावन तिथि को संत रविदास की जयंती मनाई जाती है. भक्ति काल के कवियों में कबीर, रहीम के साथ ही उन्हें भी स्थान प्राप्त है. गुरु रविदास को रैदास, रोहिदास और रूहिदास के नाम से भी जाना जाता है. इतिहासकारों के अनुसार संत गुरु रविदास का जन्म 1377 C.E. के दौरान वाराणसी, उत्तर प्रदेश में हुआ था. संत रविदास की सही जन्मतिथि पर विवाद है. 


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समानता का दिया संदेश
गुरु रविदास पहले लोगों में से एक थे जिन्होंने तर्क दिया कि सभी भारतीयों के पास बुनियादी मानवाधिकारों का एक समूह होना चाहिए. वे भक्ति आंदोलन में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति बन गए और उन्होंने आध्यात्मिकता की शिक्षा दी और भारतीय जाति व्यवस्था के उत्पीड़न से मुक्ति पर आधारित समानता का संदेश आगे लाने का प्रयास किया. कहा जाता है कि मीरा बाई, गुरु रविदास को अपना आध्यात्मिक गुरु मानती थीं.


फकीरों को बिना पैसे लिए पहनाते थे जूते
संत रविवदास ने अपनी आजीविका के लिए पैतृक कार्य को अपनाया. इनके पिता सतोखदास चमड़े के जूते बनाया करते थे. संत रविदास ने आजीविका को धन कमाने का साधन बनाने की बजाय संत सेवा का माध्यम बना लिया. संत और फकीर जो भी इनके द्वार पर आते उन्हें बिना पैसे लिये अपने हाथों से बने जूते पहनाते. इनके इस स्वभाव के कारण घर का खर्च चलाना कठिन हो रहा था. 


ब्राह्मण को पहनाया जूता
इसलिए इनके पिता ने इन्हें घर से बाहर अलग रहने के लिए जमीन दे दिया. जमीन के छोटे से टुकड़े में रविदास जी ने एक कुटिया बना लिया. जूते बनाकर जो कमाई होती उससे संतों की सेवा करते इसके बाद जो कुछ बच जाता उससे अपना गुजारा कर लेते थे. एक दिन एक ब्राह्मण इनके द्वार आये और कहा कि गंगा स्नान करने जा रहे हैं एक जूता चाहिए. इन्होंने बिना पैसे लिया ब्राह्मण को एक जूता दे दिया. 


गंगा मां को दी सुपारी
इसके बाद एक सुपारी ब्राह्मण को देकर कहा कि, इसे मेरी ओर से गंगा मैया को दे देना. ब्राह्मण रविदास जी द्वारा दिया गया सुपारी लेकर गंगा स्नान करने चल पड़ा. गंगा स्नान करने के बाद गंगा मैया की पूजा की और जब चलने लगा तो अनमने मन से रविदास जी द्वारा दिया सुपारी गंगा में उछाल दिया. तभी एक चमत्कार हुआ गंगा मैया प्रकट हो गयीं और रविदास जी द्वारा दिया गया सुपारी अपने हाथ में ले लिया. गंगा मैया ने एक सोने का कंगन ब्राह्मण को दिया और कहा कि इसे ले जाकर रविदास को दे देना.


प्रकट हो गईं गंगा मां
ब्राह्मण भाव विभोर होकर रविदास जी के पास आया और बोला कि आज तक गंगा मैया की पूजा मैने की लेकिन गंगा मैया के दर्शन कभी प्राप्त नहीं हुए. लेकिन आपकी भक्ति का प्रताप ऐसा है कि गंगा मैया ने स्वयं प्रकट होकर आपकी दी हुई सुपारी को स्वीकार किया और आपको सोने का कंगन दिया है. आपकी कृपा से मुझे भी गंगा मैया के दर्शन हुए. इस बात की ख़बर पूरे काशी में फैल गयी. रविदास जी के विरोधियों ने इसे पाखंड बताया और कहा कि अगर रविदास जी सच्चे भक्त हैं तो दूसरा कंगन लाकर दिखाएं.


मन चंगा को कठौती में गंगा
विरोधियों के कटु वचनों को सुनकर रविदास जी भक्ति में लीन होकर भजन गाने लगे. रविदास जी चमड़ा साफ करने के लिए एक बर्तन में जल भरकर रखते थे. इस बर्तन में रखे जल से गंगा मैया प्रकट हुई और दूसरा कंगन रविदास जी को भेंट किया. रविदास जी के विरोधियों का सिर नीचा हुआ और संत रविदास जी की जय-जयकार होने लगी. इसी समय से यह दोहा प्रसिद्ध हो गया. 'मन चंगा तो कठौती में गंगा.'


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