रवि, बक्सर: 1987 बैच के आईपीएस गुप्तेश्वर पांडेके डीजीपी बनने के बाद उनके गांव में जश्न का माहौल देखा जा रहा है. बक्सर जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गुप्तेश्वर पांडे का इटाढ़ी प्रखंड स्थित गांव गेरुआबांध में ग्रामीणों और परिजनों में काफी उत्साह का माहौल है. 


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ग्रामीणों के मुताबिक जैसे ही गुप्तेश्वर पांडे को बिहार का डीजीपी बनाए जाने की सूचना मिली पूरे गांव में खुशी की लहर दौड़ पड़ी. आसपास के ग्रामीणों को भी जब इसकी सूचना मिली तो वह भी खुशी से फूले नहीं समा रहे. ग्रामीणों का मानना है कि गुप्तेश्वर पांडे के डीजीपी बनने से न केवल गांव का मान सम्मान बढ़ा है बल्कि आसपास के गांव के लोगों का भी मनोबल बढ़ा है.


ग्रामीणों के उत्साह का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि गुप्तेश्वर पांडे के डीजीपी बनने की खुशी में गांव के देवी-देवताओं के मंदिरों पर पहुंचकर पूजा पाठ की. उत्साह का आलम यह है कि ढोल नगाड़े के साथ अबीर गुलाल उड़ाकर गांव के बुजुर्ग और युवाओं ने भी जमकर खुशी जाहिर की. ढोल नगाड़े की थाप पर गांव के युवा झूमते नजर आए और पूरे गांव का माहौल उत्सवी माहौल में तब्दील हो गया है.



डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे के गांव के बुजुर्ग ग्रामीण बताते हैं कि बचपन से ही गुप्तेश्वर पांडे होनहार थे. उनकी प्रतिभा का लोहा बचपन में ही लोग मान चुके थे. क्योंकि पढ़ाई में निपुणता, कार्यशैली और लोगों से मेल भाव का तरीका उनका इतना जबरदस्त था कि वह किसी के लिए भी थोड़े ही समय में लोकप्रिय बन जाते थे.


इतने बड़े पद पर होने के बावजूद भी आज भी जब वह गांव में जाते हैं तो लोगों से उसी अपनापन और प्यार के भाव से मिलते हैं जिसमें उनका व्यक्तित्व और कृतित्व साफ-साफ झलकता है. यही कारण है कि उनकी सफलता को ग्रामीण अपनी सफलता मानते हुए यह कहते नहीं थकते की गुप्तेश्वर पांडे की वजह से उनके गांव और इलाके का मान सम्मान काफी बढा है.


गांव के लोगों का कहना है कि गुप्तेश्वर पांडे बचपन से ही मेधावी थे. नौकरी में आने के बाद भी उनका गांव से काफी जुड़ा रहा और समय-समय पर उन्होंने सामाजिक मंच पर ग्रामीण युवाओं को प्रेरणा देने का भी काम किया. गांव के लोग बताते हैं कि अभिभावक के रूप में गुप्तेश्वर पांडे ने जो हमें प्रेरणा प्रदान किया उससे हमने काफी कुछ सीखा और उसका हमें लाभ भी मिल रहा है. 


खासकर कृषि के क्षेत्र में ग्रामीण किसानों को जागरूक करने की बात हो या फिर गांव के युवाओं को पढ़ने लिखने के गुर सिखाने की बात हो. सबके लिए ग्रामीण उनका धन्यवाद करते नजर आए.