National Girl Child Day: महादलित बस्ती में छटा अशिक्षा का अंधेरा, दूबे टोल गांव की पहली बेटी इंद्रा देगी इंटर की परीक्षा
National Girl Child Day: इंद्रा अपने गांव की लड़कियों को जागरूक कर परिवार के संग चिमनी भट्टा पर काम करने जानें से रोकती हैं. गांव में इंद्रा कुमारी से प्रेरित होकर अन्य अभिवावक भी अपनी बेटियों के शिक्षा के प्रति जागरूक हुए हैं. जिससे महादलित बस्ती में अशिक्षा का अंधेरा छटा हैं.
National Girl Child Day: सीतामढ़ी जिले के परिहार प्रखंड अंतर्गत बथुआरा पंचायत के महादलित बस्ती दूबे टोल गांव में अब अशिक्षा का अंधेरा छटा है. महादलित बाहुल यह गांव शिक्षा के मामले में अबतक बहुत पीछे था. अब तक इस महादलित बस्ती की कोई भी बेटी इंटर की पढ़ाई पुरी नहीं कर पाई थी, लेकिन अब यहां बदलाव की बयार साफ दिख रही है. बस्ती की पहली बेटी इंद्रा कुमारी इस वर्ष होने वाले इंटर की परीक्षा में भाग लेने वाली हैं.
शिक्षा का अलख जगाया
इंद्रा कुमारी के पिता महेश मांझी तमिलनाडु में मजदुरी करते हैं. वही इंद्रा की माता निर्मला देवी गृहणी हैं. इंद्रा अपने दो भाई और एक बहन में सबसे बड़ी हैं. नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी द्वारा स्थापित संगठन बचपन बचाओ आंदोलन के कार्यक्रता के प्रयास और महादलित बस्ती के प्रथम स्नातक युवा सह सदस्य बाल संरक्षण समिति चंदन मांझी के सहयोग ने गांव की लड़कियों को पढ़ लिखकर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर शिक्षा का अलख जगाया हैं.
इंद्रा कुमारी बाल समिति की सदस्य
खास बात यह है कि इंद्रा कुमारी बाल समिति की सदस्य हैं. इंद्रा अपने गांव की लड़कियों को जागरूक कर परिवार के संग चिमनी भट्टा पर काम करने जानें से रोकती हैं. गांव में इंद्रा कुमारी से प्रेरित होकर अन्य अभिवावक भी अपनी बेटियों के शिक्षा के प्रति जागरूक हुए हैं. जिससे महादलित बस्ती में अशिक्षा का अंधेरा छटा हैं. इंद्रा कुमारी पढ़ाई कर वकील बन कर उन पिरीत बच्चों की मदद करना चाहती हैं जो बाल शोषण के शिकार हो जाते हैं.
पिछड़ापन को दूर करने में जुट गए
दूबे टोल गांव के प्रथम स्नातक युवा चंदन मांझी ने बताया कि गांव के मजदूर परिवार के बच्चे पढ़ाई नहीं कर पाते थे. शिक्षा को लेकर जागरूकता के अभाव में स्कूल में नाम लिखवाने के बाद भी कई बार बच्चे ड्राप आउट हो जाते थे. खासकर लड़कियां स्कूल छोड़ देती थीं. महादलित समाज में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए बचपन बचाओ आंदोलन का सहयोग मिला और सार्थक संयुक्त प्रयास रंग लाई. जागरूकता से अब मजदूर मां-बाप भी चाहता है कि उनके बच्चे पढ़ें और आगे बढ़ें. बाल समिती की सदस्य इंद्रा को देखकर बाकी लोग भी अब शिक्षा से जुड़कर दशकों से चले आ रहे पिछड़ापन को दूर करने में जुट गए हैं.
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कैलाश सत्यार्थी को मानते हैं प्रेरणा स्रोत
नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी को प्रेरणा स्रोत बताते हुए चंदन मांझी ने कहा कि कैलाश सत्यार्थी जी का स्वपन को जमीनी स्तर पर बचपन बचाओ आंदोलन के कार्यक्रता ने हमारे गांव में उतारा हैं, जिसका परिणाम हैं. ज्ञान का दीपक जलना और बाल विवाह मुक्त गांव बनना यह बदलती तस्वीर हैं. हमारे गांव की हमारे गांव के सभी बच्चें खुद को बाल विवाह की भव्यता से मुक्त महसूस कर रहें हैं साथ ही हर बच्चियों के चेहरे पर मुस्कान हमसब ला पाए हैं.