Gaya Vishnupad Temple: बिहार का दूसरा सबसे बड़ा शहर गया को विश्वस्तरीय तीर्थ स्थल के रूप में विकसित किए जाने की बात मंगलवार को पेश किए गए केंद्रीय बजट में की गई है. जहां देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बिहार के लिए अलग-अलग मदों में 58900 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है. इसके साथ ही कहां है कि केंद्र सरकार जिला गया के विष्णुपद मंदिर के साथ बोधगया के महाबोधि मंदिर को विश्वस्तरीय तीर्थ स्थल के रूप में विकसित करेगी. जिसके लिए काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर मॉडल के अनुरूप गया के विष्णुपद मंदिर कॉरिडोर और बोधगया के महाबोधि मंदिर कॉरिडोर निर्माण के लिए मदद दी जाएगी. 


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मान्यता है कि गया का विष्णुपद मंदिर वही स्थान है जहां भगवान विष्णु ने गयासुर नामक दानव के धाती पर अपना पांव रखकर उसका वध किया था. कहां जाता है कि जब श्री हरि ने दैत्य गयासुर को अपने पांव के सहारे नीचे की ओर धकेला तो, वहां उनके पांव का निशान बन गया था. उसी समय से वहां पर भगवान विष्णु के पदचिन्हों की पूजा-अर्चना की जाती है. श्रद्धालु भगवान विष्णु के पद चिन्हों पर रक्त, चंदन तिलक, फूल-पत्ती से पूजा करते है. कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण इंदौर की रानी देवी अहिल्या बाई होलकर के द्वारा सन 1787 में हुआ था. 


आपको बता दें कि इस मंदिर को सोने को कसने वाले पत्थर कसौटी से बनाया गया है. वहीं मंदिर के शीर्ष पर 50 किलो सोने का ध्वज और 50 किलो सोने का ही कलश लगा हुआ है. मंदिर के गर्भगृह में 50 किलो चांदी का छत्र और 50 किलो चांदी का अष्टपहल है. विष्णुपद मंदिर के गर्भगृह का द्वार चांदी का बना हुआ है. कहा जाता है कि इस मंदिर की ऊंचाई करीब सौ फीट है. मंदिर के सभा मंडप में 44 स्तंभ हैं और 19 वेदी हैं. इन वेदियों में पितरों की शांति और मोक्ष के लिए पिंडदान किया जाता है. 


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पितृपक्ष के दौरान देश के विभिन्न-विभिन्न राज्यों से लोग, यहां अपने पितरों के आत्मा के शांति के लिए आते हैं. इस दौरान गया के विष्णुपद मंदिर में लोगों की काफी भीड़ रहती है. धार्मिक मान्यता है कि पितृपक्ष के समय अपने पूर्वजों का तर्पण करने के बाद श्रद्धालु भगवान विष्णु के चरण चिन्ह को देखने के लिए आते हैं. जिससे इनके सभी दोष और दुख का नाश हो जाता है. पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती हैं. 


पवित्र फल्गू नदी के किनारे बसे इस शहर के बारे में कहा जाता है कि यहीं पर मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने अपने पितरों के आत्मा के शांति के लिए पिंडदान किया था. पौराणिक कथाओं के अनुसार माना जाता है कि जब भगवान राम मां जानकी सहित भ्राता लक्ष्मण के साथ वनवास भोग रहे थे. तब उन लोगों ने यहां विश्राम किया था. जब वो इस स्थान पर आए थे. तब पितृपक्ष का समय चल रहा था. उस समय प्रभु श्री राम ने अपने पूर्वजों का पिंडदान यहां किया था. उसी समय से हिंदू लोग यहां पर अपने पूर्वजों के आत्मा के शांति के लिए पिंडदान करते हुए आ रहे है. विष्णुपद मंदिर के परिसर में कई और छोटे-बड़े मंदिर मौजूद है. इस जगह कई जैन मंदिर भी है. जहां जैन धर्म के लोग आया करते है. यहां विदेशी पर्यटक भी आते है. 


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