Nawada Sadar Hospital: बिहार के उपमुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री तेजस्वी यादव के द्वारा व्यवस्था में सुधार के लगातार दावे भी किए जा रहे हैं. लेकिन नवादा के सदर अस्पताल डॉक्टरों ने इसकी पूरी खोल दी. नवादा के सदर अस्पताल में मरीजों को बेड उपलब्ध कराना व्यवस्था के दायरे में नहीं आता है, बल्कि उपाधीक्षक के बड़प्पन के कारण यह सुविधा मिल पाती है. यह बात हम नहीं कह रहे, बल्कि उपाधीक्षक खुद डीएम के सामने यह दम्भ भर रहे थे. हालांकि, डीएम ने तत्काल उन्हें टोकते हुए फटकार लगाई. जिलाधिकारी आशुतोष कुमार वर्मा सदर अस्पताल का निरीक्षण करने पहुंचे थे. तब मीडिया ने बंध्याकरण के बाद महिलाओं को बेड देने के बजाय जमीन पर लिटाए जाने को लेकर सवाल दागा. तभी उपाधीक्षक ने अपना पक्ष रखते हुए अजीबोगरीब बयान देते हुए कहा कि यह उनका बड़प्पन है कि बेड दे दिया गया. 


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जिसपर डीएम ने उन्हें टोका कि अपना बड़प्पन बताने के बजाय व्यवस्था की जानकारी दें. हालांकि उपाधीक्षक तब भी नहीं रुके और मीडिया पर ही निशाना साधते हुए कहा कि ऑपरेशन नहीं करने पर यही लोग (मीडिया) कहेंगे कि लोगों को लौटा दिया जाता है. डीएस के अजीबोगरीब बयान के बाद डीएम ने उन्हें निर्देश दिया कि क्षमता के हिसाब से ही ऑपरेशन करें. बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोलने वाला ये पहला मामला नहीं है. इसी तरह का एक मामला बेगूसराय सदर अस्पताल से भी सामने आया है. 


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बेगूसराय सदर अस्पताल के डॉक्टरों पर आरोप है कि उन्होंने एक शव को ले जाने के लिए एंबुलेंस नहीं दिया. जिसके कारण परिजनों को ठेले पर रखकर डेडबॉडी ले जानी पड़ी. मृतक परिजनों का कहना है कि उनका मरीज सुबह अपने पैरों पर अस्पताल आया था, यहां डॉक्टरों के गलत के इलाज के कारण शाम को उसकी मौत हो गई. इस पर अस्पताल के सिविल सर्जन डॉ प्रमोद कुमार ने बड़ा ही बेतुका बयान दिया. उन्होंने कहा कि मरीज अस्पताल में नहीं मरेंगे, तो कहां मरेंगे. शव को एंबुलेंस नहीं मिलने पर उन्होंने कहा कि सदर अस्पताल में एंबुलेंस पर्याप्त है. परिजनों के द्वारा जो आरोप लगाया वह कहीं ना कहीं गलत है. परिजनों ने अस्पताल प्रबंधन से एंबुलेंस नहीं मांगा गया.