रांची: नक्सलियों की समानान्तर सत्ता के कारण झुमरा और इसके आसपास के गांवों में पहले दहशत के साए में घुट-घुट कर जीने को मजबूर ग्रामीणों के मायूस चेहरे अब खिल उठे हैं. उनमें अच्छे बुरे का अंतर करने की समझ आयी है. नक्सलियों के प्रशिक्षण व शरणस्थल के लिए कुख्यात रहे झुमरा में कल और आज का ऐसा फर्क आया है कि ग्रामीण अपनी खामोशी तोड़कर अपने हक के लिए मुखर होने लगे हैं. झुमरा की फिजां में आए इस बदलाव ने शासन व प्रशासन को सुकून दिया है.


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भूल चुके काला अध्याय
पहाड़ों व वनों के उबड़-खाबड़ व तराई क्षेत्रों के कारण झुमरा काफी दुर्गम भौगोलिक बनावट रखता है. कभी खुद को जंगल की सरकार घोषित कर गांवों में दहशत फैलाने वाले नक्सली संगठनों को यहां की यही दुर्गम भौगोलिक बनावट खींचती थी. विकास का कोई नामोनिशान नहीं था. गोलियों की तड़तड़ाहट, रह-रह कर बमों का धमाका व फिर वर्दीधारियों की चहलकदमी व लेवी वसूली के लिए मारकाट की वारदातें दूर-दूर तक दहशत फैलाकर झुमरा और इससे सटे इलाकें को यही पहचान देती थी. पर आज काफी कुछ बदल गया है. पुलिस व सीआरपीएफ जैसे अर्द्धसैनिक बलों की झुमरा में आसान पहुंच और अनवरत अभियान ने गांवों में विकास तो पहुंचाया ही आमलोगों के दिलों से नक्सलियों का खौफ निकाल कर उनके अंदर विश्वास का ऐसा भाव भरा की अब वे अतीत के काला अध्याय को भूल चुके हैं. 


गांवों में पहुंच चुकी है बिजली
पहले विकास को तरसते व तड़पते और गाहे-बेगाहे धमक पड़नेवाले नक्सलियों से तबाह ग्रामीणों को अब अपने क्षेत्र में विकास के जरिए जीने की मुलभूत जरूरतें नसीब हो गयीं हैं. वे इस विकास से खुश हैं, और खुशी से फूले नहीं समा रहे. ग्रामीण क्षेत्रों में आजादी के कई दशकों तक सपना रहा विकास ही नक्सलियों द्वारा ग्रामीणों को भटकाने और उनके बीच अपनी पैठ बनाने का कारण था. पर अब विकास के तौर पर नक्सल प्रभाव वाले इलाकों में सड़क पहुंच गयी है.
शिक्षा पहुंच गयी है और जीने के लिए मूलभूत जरूरतें भी ग्रामीण इलाकों में दिखने लगी है. गरीबों को मिलनेवाला पक्का आवास भी ग्रामीण इलाकों में नजर आने लगा है. बिजली के पोल व तार के साथ बिजली भी गांवों में पहुंच चुकी है. पानी की व्यवस्था भी आ गयी है. विकास ने अपना पैर पसार कर ग्रामीणों के भटकते पांव को रोक देने में कामयाबी पायी है.


बंदूक की नोक से समस्या का अंत नहीं
नक्सल समस्या पर चोट के पहले काफी विचारने पर यह बात सामने आयी की केवल बन्दूक की नोक से ही इस समस्या का अंत संभव नहीं. बन्दूक की नोक और विकास की ताकत से ही इस समस्या पर काबू पाना संभव हुआ है और आज इसी सार्थक पहल का जो नतीजा दिख रहा है, वह ग्रामीणों को आत्मविश्वास से तथा वह शासन व प्रशासन को उत्साह से भर रहा है. पर इसके लिए इस हाल को बनाए रखने की बड़ी चुनौती भी महसूस की जा रही है.


बोकारो उपायुक्त ने कहा कि विकास जहां-जहां होगा ऐसी समस्याएं कम होती जाएगी. वही बोकारो एसपी ने भी कहां की सड़क बनने से आवागमन दुरुस्त हुआ है. जहां पेट्रोलिंग करने में सुरक्षा बालों को मदद मिलती है. ग्रामीणों में जागरूकता लाकर उनके अंदर आत्मविश्वास भरने की कवायद ने रंग दिखाना शुरू कर दिया है. समस्याग्रस्त इलाके में ग्रामीण खामोश रहने की बजाय अब मुखर होने लगे हैं. ग्रामीणों की यही चेतना ने नक्सलियों का पूरी तरह खात्मा तो नहीं किया है लेकिन उनकी जड़ें जरूर उखाड़ दी है. सच ही कहा गया है, जब जागे तभी सबेरा.
(रिपोर्ट: Mrityunjai Mishra)


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