धनबादः लड़कियां अब पाताल की खुदाई को भी तैयार हैं! जी हां, माइनिंग इंजीनियरिग के जिस सेक्टर में लड़कियों के लिए दरवाजे लगभग बंद थे, वहां अब नये चैप्टर की शुरुआत हो चुकी है. यह पहली बार है, जब माइनिंग की पढ़ाई के लिए देश के सबसे प्रतिष्ठित संस्थान धनबाद स्थित आईआईटी-आईएसएम से नौ लड़कियों के पहले बैच ने माइनिंग इंजीनियरिंग में बीटेक की डिग्री हासिल कर ली है. इन सभी का प्लेसमेंट भी हो चुका है. बीते रविवार को माइनिंग इंजीनियरिंग स्टूडेंट्स की संस्था एसपीई स्टूडेंट चैप्टर ने इतिहास रचने वाली इन लड़कियों को शानदार विदाई दी.


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बता दें कि 9 दिसंबर,1926 में स्थापित इस इंडियन स्कूल ऑफ माइन्स में माइनिंग इंजीनियरिंग कोर्स में लड़कियों को दाखिला नहीं मिलता था. माइंस एक्ट 1952 और कोल माइंस रेगुलेशन 1957 के प्रावधानों के मुताबिक सुरक्षा कारणों से इस सेक्टर में लड़कियों की एंट्री नहीं थी.


वर्ष 2016 में भारत सरकार ने इस संस्थान को आईआईटी का दर्जा दिया और इसके साथ ही यह प्रतिबंध हट गया. पहली बार 2018 में यहां पहली बार माइनिंग इंजीनियरिंग में नौ लड़कियों को एडमिशन मिला. इस बैच के पास आउट होने के साथ ही संस्थान की स्थापना के 96वें साल में एक शानदार कीर्तिमान कायम हो गया है. इन सभी नौ लड़कियों का प्लेसमेंट टाटा स्टील, वेदांता, एसीसी सहित अन्य कंपनियों में हुआ है. संस्थान में 2019 में माइनिंग इंजीनयरिंग के स्नातक कोर्स में17 लड़कियों को दाखिला मिला, जो अगले साल पास आउट होंगी.


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आईआईटी-आईएसएम के डिप्टी डायरेक्टर प्रो. धीरज कुमार कहते हैं कि पहले बैच की इन लड़कियों ने वाकई ऐसी इतिहास रचा है, जिसपर इस संस्थान को गर्व है. चुनौती से भरपूर माइनिंग सेक्टर में ये अपने काम से लोहा मनवायेंगी, यही उम्मीद है. अब माइनिंग इंडस्ट्री का यह सेक्टर पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं के लिए समान रूप से खुला है.


माइनिंग इंजीनियरिंग में लड़कियों के पहले पास आउट बैच में शामिल श्वेता सुमन का कहना है कि लड़कियां जब देश की सरहदों की सुरक्षा में तैनात हैं, वह धरती से लेकर आकाश तक कीर्तिमान कायम कर रही हैं तो माइन्स में उन्हें जाने से रोकना अनुचित था. अब एक बदलाव की शुरूआत हुई है और खुशी है कि हम इस बनते हुए इतिहास के पात्र हैं.


इन पास आउट लड़कियों में हरियाणा की रहनेवाली पायल भी शामिल हैं. वह कहती हैं कि काम करना है तो माइंस के अंदर जाना होगा. जीवन के हर क्षेत्र में चुनौती है. इसलिए किसी भी चुनौती के लिए स्वयं को तैयार करना होगा.


बता दें कि देश में कई अन्य संस्थानों में भी माइनिंग इंजीनियरिंग में लड़कियों को पढ़ाई की इजाजत हाल के वर्षों में ही मिली है. वैसे महाराष्ट्र की रहने वाली डा चंद्राणी प्रसाद वर्मा को देश की पहली माइनिंग इंजीनियर बनने का गौरव प्राप्त है, जिन्हें कोर्ट में एक साल तक चली लड़ाई के बाद साल 1996 में स्पेशल केस के तौर पर नागपुर विश्वविद्यालय में माइनिंग इंजीनियरिंग में नामांकन की इजाजत मिली थी.
(इनपुट-आईएएनएस)