रांचीः Presidential Election 2022: राष्ट्रपति चुनाव की गहमा-गहमा के बीच भाजपा नीत NDA ने भी अपने राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी का ऐलान कर दिया है. राष्ट्रपति पद के लिए एनडीए (NDA) ने आदिवासी चेहरे पर दांव खेला है. यह चेहरा झारखंड राज्य की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) हैं. पार्टी ने उन्हें ही उम्मीदवार बनाया है. बीजेपी (BJP) के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि 20 से ज्यादा नाम थे. द्रौपदी मुर्मू एनडीए की उम्मीदवार होंगी. द्रौपदी मुर्मू के सफर के बारे में बात करें तो उन्होंने ओडिशा में पार्षद बनने के साथ राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी. 


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भाजपा ने प्रेस कान्फ्रेंस के जरिए की घोषणा
भाजपा ने प्रेस कान्फ्रेंस के जरिए उम्मीदवार की घोषणा की. पार्टी के ट्विटर हैंडल पर लिखा कि 'आज की संसदीय बोर्ड की बैठक में हम सभी लोग इस मत पर आए कि भाजपा और NDA अपने सभी घटक दलों के साथ बातचीत करते हुए हम राष्ट्रपति के लिए अपना प्रत्याशी घोषित करें. NDA की तरफ से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में श्रीमती द्रौपदी मुर्मू को घोषित किया गया है.'' एनडीए की ओर से घोषणा होने के तुरंत बाद ही द्रौपदी मुर्मू मीडिया से लेकर राजनीतिक गलियारे तक चर्चा का विषय बन गईं. इसके साथ ही उनका नाम ट्रेंडिंग टॉपिक और टैग में तब्दील हो गया है. 


2017 में भी भी नाम की चर्चा
द्रौपदी मुर्मू के बारे में बात करने से पहले आज से ठीक पांच साल पीछे चलते हैं. उस वक्त भी देश में राष्ट्रपति चुनाव की गहन चर्चा थी और चर्चा में थे कई नाम. राष्ट्रपति रहे प्रणब मुखर्जी का कार्यकाल समाप्त हो रहा था. अब कौन हो अगला राष्ट्रपति? इस सवाल के जवाब में कई नाम चर्चा में थे. दरअसल बाबरी मस्जिद काण्ड में सुप्रीम कोर्ट द्वारा आडवाणी और जोशी पर मुकदमा चलने के आदेश के बाद इस पद के लिए इन दोनों की उम्मीदवारी की संभावना लगभग ख़त्म हो गयी थी. ऐसे में झारखंड की पहली आदिवासी राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू का नाम भी जोर-शोर से सामने आया था. बल्कि हवा का रुख उस समय भी उनके पक्ष में था. मीडिया कई रिपोर्ट में उनकी संभावित उम्मीदवारी वाले आर्टिकल आ गए थे कि द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति उम्मीदवार हो सकती हैं. हालांकि राजनीति में हमेशा दो दूनी चार नहीं होता है. समीकरण कब बदल जाएं, कुछ कहा नहीं जा सकता. 


हालांकि कोविंद बने राष्ट्रपति
तो हुआ यही कि समीकरण बदले और मुर्मू की जगह रामनाथ कोविंद न सिर्फ उम्मीदवार बने, बल्कि राष्ट्रपति पद पर बैठे भी. हालांकि तब भी तुरुप का पत्ता मानी जा रहीं द्रौपदी को पूरी तरह से नकारा नहीं गया था, बल्कि उन्हें एक तरीके होल्ड पर ही रखा गया था. मंगलवार को जैसे ही विपक्ष ने यशवंत सिन्हा को अपना उम्मीदवार घोषित किया, तैसे ही एनडीए ने अपना पांच साल पहले वाला तुरुप कार्ड खेल लिया. मुर्मू एनडीए के लिए कैसे फायदेमंद साबित हो सकती हैं और उनके पक्ष में माहौल कैसे है, इस पर डालते हैं एक नजर.  


इन पदों पर रह चुकी हैं मुर्मू
20 जून 1958 को जन्मी द्रौपदी मुर्मू ओडिशा में भारतीय जनता पार्टी और बीजू जनता दल गठबंधन सरकार के दौरान, 2000-2002 तक वाणिज्य और परिवहन के लिए स्वतंत्र प्रभार और 6 अगस्त, 2002 से मई तक मत्स्य पालन और पशु संसाधन विकास राज्य मंत्री थीं. वह साल 2000 और 2004 में ओडिशा की पूर्व मंत्री और रायरंगपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक थीं. वह झारखंड की पहली महिला राज्यपाल बनी थीं. वह राज्यपाल नियुक्त होने वाली ओडिशा की पहली महिला और आदिवासी नेता रही हैं. निर्वाचित होने के बाद द्रौपदी मुर्मू भारत की पहली आदिवासी राष्ट्रपति और दूसरी महिला राष्ट्रपति होंगी. इसके अलावा वे ओडिशा से भी प्रथम राष्ट्रपति होंगी. 


जेएमएम अब धर्मसंकट में
अब इस आधार पर एनडीए ने अपने उन विपक्षी दलों को भी साधा है, जिनसे उसे समर्थन मिलने में दिक्कत हो सकती है. जैसे कि झारखंड में ही झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए बात करें तो, सीएम सोरेन की इस पार्टी के लिए धर्मसंकट जैसी स्थिति है. सोरेन आदिवासी हितों की राजनीति करते हैं. अभी खनन पट्टा मामले में प्रदेश में भाजपा ने उन्हें बुरी तरह घेर रखा है. क्या भाजपा के विरोध के चक्कर में जेएमएम अपनी ही विचारधारा के साथ न्याय नहीं करेगी, या एक आदिवासी को सिर्फ इसलिए समर्थन देने से किनारा करेगी कि वह उनके विरोधी दल का उम्मीदवार है. इस सवाल का जवाब द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने के साथ ही मिल सकेगा. 


साफ छवि बनेगी खासियत
अब बढ़े ओडिशा की ओर. यहां से बीजद का समर्थन भी एनडीए को मिल सकता है. 2017 में लोकसभा के सदस्यों के तौर पर बीजद के 20 सदस्य थे, इस बार की लोकसभा में सदस्यों की संख्या 12 है. द्रौपदी का संबंध ओडिशा से खासतौर पर जुड़ा है. ऐसे में वह देश को दूसरी महिला और पहली आदिवासी राष्ट्रपति देने के गौरव से क्यों दूर रहना चाहेगा. इसके अलावा विपक्षी दलों से जुड़ी और भी पार्टियों को द्रौपदी का विरोध करने में जद्दोजहद ही करने पड़ेगी. इन सबके साथ आखिरी में आती है छवि की बात. भारतीय राजनीति में सफल लीडर होने के साथ छवि बचाकर रखना थोड़ी टेढ़ी खीर है. कहीं न कहीं से विवाद चिपक ही जाते हैं. अभी तक के राष्ट्रपतियों में छवि का फैक्टर सबसे खास रहा है. द्रौपदी मुर्मू की उम्मीदवारी में साफ छवि का बड़ा रोल है जो उनके और राष्ट्रपति पद के बीच सीढ़ी बन सकती है. 


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