Ranchi: झारखंड विधानसभा के मॉनसून सत्र के आखिरी दिन सदन में बीजेपी विधायक ढुल्लू महतो ने विस्थापित रैयतों की जमीन का मुद्दा उठाया. ढुल्लू महतो के मुताबिक मुआवजे दिए जाने से पहले ही रैयतों की जमीन पर कोल कंपनियों की ओर से काम शुरू कर दिया गया है, जबकि बगैर मुआवजा दिए ऐसा नहीं होना चाहिए था. 


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इस पर सदन में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने मामले पर जवाब देते हुए कहा की राज्य सरकार ने पहले ही कोल कंपनियों से, जो सरकारी जमीन दी गयी है, उसके एवज में डेढ़ लाख करोड़ मुआवजे की मांग की है, लेकिन अब तक सिर्फ 300 करोड़ ही मिला है, लिहाजा सरकार की कोशिश है कि पहले मुआवजा मिले और सही तरीके से विस्थापन हो, उसके बाद ही कोल कंपनियां अपना काम शुरू करे. उन्होंने कहा की ये भारत सरकार का उपक्रम है, ये कंपनियां जब तक स्थापित नहीं होती, तब तक तो आपके हाथ पांव जोड़ती हैं और काबिज होने के बाद इनका रंग बदल जाता है.


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ख्यमंत्री ने कहा की इस समस्या के समाधान के लिए लगातार राज्य सरकार चर्चा और बहस में है. उन्होंने कहा की भारत सरकार की कोल कंपनियों ने राज्य को सबसे ज्यादा परेशान कर रखा है, राज्य सरकार भी परेशान है, रैयत भी परेशान हैं. 


मुख्यमंत्री ने कहा की अगर सत्ता पक्ष और विपक्ष सहमत हो, तो राज्य सरकार इस बारे में निर्णय लेने के लिए तैयार है कि केंद्र कोल कंपनी अगर राज्य सरकार की बात नहीं मानती है, तो उनका काम बंद कर दिया जाए.


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मुख्यमंत्री ने कहा की सरकार निर्णय ले सकती है, लेकिन ऐसा कोई निर्णय देश को नुकसान पहुंचाने का नहीं लिया जा सकता. वहीं उन्होंने केंद्र सरकार पर राज्य का डेढ़ लाख करोड़ रुपये बकाया का मसला उठाते हुए, इसे तुरंत लौटाने की मांग की.


(इनपुट: कुमार चंदन)