पटना: बिहार में बीते 3 दशकों में जब भी आप बीजेपी के बड़े नेताओं का स्मरण करेंगे तो, उसमें एक नाम अग्रिम पंक्ति में आपके दिमाग में तैरने लगेगा. यह नेता 3 दशकों से बिहार बीजेपी में आज भी प्रासंगिक बना हुआ है. बीते 2 दशकों में जब भी बिहार में बीजेपी गठबंधन की सरकार बनी या कहें की जब भी नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तो, इस नेता को बड़े ओहदे से ही नवाजा गया. दरअसल, हम बात कर रहें है बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी की.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

68 वर्षीय सुशील मोदी वर्तमान में बिहार सरकार में उपमुख्यमंत्री और वित्त मंत्री हैं. कहा जाता है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की बीजेपी में जिन दो लोगों से सबसे ज्यादा घनिष्ठता है, उसमें से एक थे दिवंगत नेता अरुण जेटली और दूसरे हैं सुशील कुमार मोदी (Sushil Kumar Modi). इसकी तस्वीर मौके दर मौके देखने को मिलती रही है.


बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर नीतीश कुमार ने अब तक 6 बार शपथ ली, उसमें से दो मौके को छोड़कर 4 बार सुशील मोदी उनकी कैबिनेट का हिस्सा रहे हैं. पहली बार जब नीतीश कुमार 2000 में सात दिन के लिए मुख्यमंत्री बने थे, तो उस वक्त उन्होंने सुशील मोदी को संसदीय कार्य मंत्री की जिम्मेदारी दी गई थी. उसके बाद से आज तक सुशील मोदी नीतीश सरकार में डिप्टी सीएम की जिम्मेदारी संभालते आ रहे हैं.



जीवन परिचय
सुशील मोदी का जन्म 5 जनवरी 1952 को मोती लाल मोदी और रत्ना देवी के घर हुआ था. सुशील मोदी ने बीएन कॉलेज पटना से बीएससी किया और 1973 में बॉटनी ऑनर्स किया. लेकिन वह अपनी एमएसी (बॉटनी) की पढ़ाई बीच में ही छोड़कर जेपी आंदोलन से जुड़ गए. उस वक्त जेपी की पूरे देश में लहर थी. कई युवा जेपी से प्रभावित होकर आंदोलन में शामिल हो रहे थे, इसी क्रम में सुशील मोदी भी आंदोलन में कूद गए.  


संघ से जुड़ाव
सुशील मोदी बीजेपी के उस पंक्ति के नेता हैं, जिसकी शुरुआत आरएसएस यानि राष्ट्रीय सेवक संघ से हुई है. 1962 में सुशील मोदी ने आरएसएस ज्वॉइन किया था. इसके बाद 1968 में उन्होंने तीन साल की ऑफिसर ट्रेनिंग कोर्स (OTC) किया, जिसे संघ की सबसे बड़ी ट्रेनिंग कहा जाता है. फिर उन्होंने महीने भर विस्तारक (पूर्णकालिक सदस्य) का काम बिहार के कई जिलों में किया. इसके जरिए वह आरएसएस के बड़े नेताओं के करीब होते गए और उनका राजनीतिक कद भी बढ़ता गया. कहा जाता है कि आज जिस जगह पर सुशील मोदी बनें हुए हैं, उसमें आरएसएस का बहुत बड़ा योगदान है.


सियासी सफर
सुशील मोदी के सियासत की शुरुआत छात्रसंघ की राजनीति से हुई. 1973 में सुशील मोदी पटना कॉलेज में छात्रसंघ के महामंत्री और लालू यादव (Lalu Yadav) अध्यक्ष बनें. इसके बाद वह बिहार प्रदेश छात्र संघर्ष समिति के सदस्य 1974 में बने. यहीं से वह जय प्रकाश नारायण के आंदोलन जिसे 'जेपी मूवमेंट' या 'संपूर्ण क्रांति आंदोलन' कहा जाता है उससे जुड़ गए. इस दौरान उन्होंने आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. 



जेल में गुजारे 24 महीने
वहीं, जब काले कानून के तहत तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिर गांधी ने देश में आपातकाल लगाया, तो उस वक्त सुशील मोदी भी अन्य नेताओं के साथ जेल गए. जानकारी के अनुसार, 1973 से 1977 के बीच 'मीसा' काननू (MISA) के तहत सुशील मोदी 5 बार जेल गए और कुल 24 महीने जेल में रहे. इसके  बाद, जब इमरजेंसी खत्म हुई तो उन्हें बीजेपी की छात्र इकाई एबीवीपी (ABVP) के बिहार प्रदेश का महासचिव बना दिया गया और यहां से वह धीरे-धीरे आगे बढ़ते गए.


90 में शुरू हुई सक्रिय राजनीति में एंट्री
1990 का यह वह साल है जब सुशील मोदी पूर्ण रुप से सक्रिय राजनीति में आ गए. 1990 के विधानसभा चुनाव में पटना सेंट्रल सीट (वर्तमान में कुम्हरार विधानसभा) से सुशील मोदी मैदान में उतरे और जीत हासिल की. इसके बाद वह इस सीट से दो बार चुनाव लड़े और उन्हें दोनों बार जीत हासिल हुई.


1 साल बाद ही MP से दिया इस्तीफा
1990 में ही जीत हासिल करने के बाद उन्हें बिहार बीजेपी के विधानमंडल दल का चीफ व्हिप बना दिया गया. इसके बाद 1996 से 2004 तक वह विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के पद पर रहे और 2004  के लोकसभा चुनाव में जीत हासिल कर वह संसद पहुंच गए. हालांकि, एक साल बाद ही उन्होंने सांसद के पद से इस्तीफा दे दिया.


पहली बार बनें डिप्टी CM
2005 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी-जेडीयू ने गठबंधन में चुनाव लड़ा लेकिन बहुमत नहीं मिला. इसके कुछ महीने बाद नवंबर में फिर चुनाव हुआ और एनडीए ने बहुमत की सरकार बनाई. नीतीश कुमार दूसरी बार सीएम बने और सुशील मोदी ने पहली बार डिप्टी सीएम की शपथ ली. सुशील मोदी 2013 तक डिप्टी सीएम रहे. लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले नीतीश कुमार एनडीए से अलग हो गए. इसके बाद 2017 में नीतीश कुमार जब दोबारा एनडीए में शामिल हुए तो सुशील मोदी ने तीसरी बार डिप्टी सीएम की शपथ ली. कहा तो यह भी जाता है कि जेडीयू-आरजेडी गठबंधन टूटने में और नीतीश कुमार की दोबारा एनडीए में वापसी कराने में अहम किरदार सुशील मोदी ने निभाया था.


'पिछले दरवाजे से सत्ता की कुर्सी पर पहुंच रहे हैं सुशील मोदी'
राजनीति में सफल नेता उसी को माना जाता है जो जनता के बीच से चुनकर आए. यानी चुनावी आखाड़े में विपक्ष को अपनी ताकत का एहसास कराते हुए जनता द्वारा चुनकर सदन की चौखट पर पहुंचे. लेकिन बिहार के डिप्टी सीएम सुशील मोदी बीते डेढ़ दशक से पिछले दरवाजे से सत्ता की कुर्सी तक पहुंच रहे हैं. सीधे शब्दों में कहें तो सुशील मोदी जनता के बीच से चुनकर आने की बजाए 15 सालों से विधान परिषद के सदस्य हैं. इस बार भी वह चुनाव नहीं लड़ रहे हैं.



कुछ ऐसा ही हाल बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का भी है. वह भी 2006 से विधान परिषद के लिए चुने जाते रहे हैं. अभी उनका कार्यकाल 2024 तक है. इस बार भी नीतीश कुमार चुनाव नहीं लड़ रहे हैं. इसको लेकर विपक्ष नीतीश और सुशील मोदी पर हमलावर रहता है. विपक्ष का आरोप है कि अगर सीएम और डिप्टी सीएम में हिम्मत है तो वह चुनावी मैदान में उतर जाएं, उन्हें अपनी सियासी ताकत का अंदाज हो जाएगा. विपक्ष का यह भी आरोप है कि दोनों को हार से डर लगता है इसलिए चुनाव नहीं लड़ते हैं. हालांकि, दोनों नेताओं को इस बात का फर्क नहीं पड़ता है.


हालांकि, यह भी कटुक सच है कि जनप्रतिनिधि वही होता है जो जनता के द्वारा चुनकर आए. क्योंकि चुनाव जनता की नब्ज टटोलने का अवसर होता है, इसलिए इसे लोकतंत्र का महापर्व कहा जाता है. राज्यसभा और विधान परिषद जिसे ऊपरी सदन के नाम से परिभाषित किया जाता है, उसकी परिकल्पना नीति निर्धारक विषयों पर बेहतर बहस के लिए हुई थी. ये जनता के सीधे प्रतिनिधि नहीं होते. लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं की आज की राजनीति अवसरवादिता पर टिकी है.



इस बीच, ये भी सच है कि सुशील मोदी आज भी बिहार की राजनीति में प्रासंगिक बने हैं. पार्टी के अंदर और बाहर दोनों जगह आज भी कोई सुशील मोदी का किला नहीं ढहा पाया है. सूत्र तो यह भी कहते हैं कि अगर बीजेपी के अंदर थोड़ी सी भी नीतीश कुमार के खिलाफ आवाज उठती है तो सुशील मोदी आगे आकर खड़े हो जाते हैं. लेकिन इस बार का चुनाव सुशील मोदी के लिए चुनौतीपूर्ण है. क्योंकि कोरोना के बाद यह किसी प्रदेश का पहला चुनाव, जहां वोटिंग होने जा रही है और सुशील मोदी कैसे एनडीए को जीत दिलाने में कामयाब होते हैं, यह देखना दिलचस्प होगा.