Bihar Politics News: बेइज्जती जब अपना बदला लेती है तो जुबां से आह तक नहीं निकले देती है. पॉलिटिक्स में प्रतिशोध किस कदर लिया जाता है. यह वक्त आने पर बेइज्जती करने वालों को एहसास होता है. जबतक किसी उसे अपनी गलती का एहसास होता है, तबतक अरमानों का कारवां लूट चुका होता है. सियासी सपने चकनाचूर हो चुके होते हैं. अब आपके दिमाग में यह सवाल जरुर आ रहा होगा कि आखिर हम पॉलिटिक्स में प्रतिशोध बदला लेती है ऐसा क्यों कहा रहे हैं. आखिर इसका क्या आधार है? तो आपको इस ऑर्टिकल को पूरा पढ़ना चाहिए, क्योंकि राजनीति में बेइज्जती किस कदर लेती है बदला, इसकी कुछ बानगी यहां जानने को मिलेगी.


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पहले बात करेंगे हम बिहार की, जहां अभी 12 फरवरी, 2024 को नीतीश कुमार के नेतृत्व में नई एनडीए सरकार का गठन हुआ है. बिहार में नीतीश कुमार ने विधानसभा के सदन में एक तरफा बहुमत साबित कर दिया. फ्लोर टेस्ट से पहले राज्य में खेला होने की बात खूब हो रही थी. सियासी हलचल भी लगातार देखने को मिल रही थी. राजनीति में बेइज्जती किस कदर बदला लेती है. इसकी स्क्रिट भी सूबे में ही तैयार हो रही थी. 


दरअसल, आरजेडी के विधायक चेतन आनंद के पाला बदलने से लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव की बनाई गई सारी रणनीति धराशायी हो गई. क्योंकि तेजस्वी यादव ने नीतीश सरकार को फ्लोर टेस्ट में फेल करने का पूरा प्लान बना लिया था. अपने विधायकों को अपने आवास पर रोक रखा था, तभी पुलिस की एंट्री होती है और आनंद मोहन के बेटे को वहां से लेकर चली जाती है. इसके बाद चेतन आनंद अगले दिन यानी 12 फरवरी को विधानसभा में नीतीश के पक्ष में बैठे दिखाई दिए. ऐसा उन्होंने क्यों किया, इसको इस तरह से समझिए.


28 सिंतबर, 2023 को मीडिया में एक खबर आई थी कि राजद सुप्रीमो लालू यादव ने आनंद मोहन से मिलने से इनकार कर दिया. इतना ही नहीं गेट से ही वापस लौटा दिया था. लालू प्रसाद यादव ने आनंद मोहन को ना बंगले में आने दिया और ना ही गाड़ी को प्रवेश करने दिया. तब मीडिया में खबर आई थी कि लालू यादव से मिलने के लिए आनंद मोहन राबड़ी आवास पहुंचे थे. उन्होंने संदेश भेजवाया कि आनंद मोहन लालू यादव से मुलाकात करना चाहते हैं, लेकिन वह 10 मिनट तक आवास के बाहर गेट गाड़ी में बैठे रहे. मगर लालू यादव ने मिलने के लिए नहीं बुलाया था. 


अब बिहार में महागठबंधन को जो एनडीए से फ्लोर टेस्ट में हार मिली है. उसके बारे में कहा जा रहा है कि आनंद मोहन ने लालू प्रसाद यादव से अपनी सियासी बेइज्जती का बदला ले लिया और ऐन मौके पर राजद के तीन विधायकों को तोड़ लिया.


हिमन्त बिश्व शर्मा बीजेपी में आने से पहले कांग्रेस नेता थे. इनके कांग्रेस छोड़ने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है. हिमन्त बिश्व शर्मा भी राजनीति में बेइज्जती का सामना कर चुके हैं. अब उनकी बेइज्जती इस कदर बदला ले रही है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी असम में एक मंदिर में प्रवेश तक नहीं कर पाए. इतना नहीं असम में कांग्रेस पार्टी का जनाधार लगातार कम होता जा रहा है. 


हिमन्त बिश्व शर्मा के बीजेपी में जाने के पीछे की घटना को जानना बेहद जरुरी है. हिमन्त बिश्व शर्मा ने कांग्रेस छोड़ने के बाद से अपनी बेइज्जती की पीड़ा को बयां दिया था. उन्होंने कहा था कि मैं राहुल गांधी के साथ मीटिंग कर रहा था, तब वह अपने पालतू कुत्ते को बिस्किट मिला रहे थे, लेकिन हम लोग असम के मुद्दे पर कुछ बातचीत करना चाह रहे थे. राहुल गांधी के इस व्यवहार से हिमन्त बिश्व शर्मा काफी नाराज हुए थे. इसके बाद साल 2015 में वह बीजेपी में शामिल हो गए. अब देखिए असम में कांग्रेस की क्या हालात है.


कांग्रेस के दिग्‍गज नेता और आंध्र प्रदेश के मुख्‍यमंत्री रहे वाईएसआर के बेटे जगनमोहन रेड्डी ने सोनिया गांधी से सियासी बेइज्जती का बदला लिया. दरअसल, सितंबर 2009 में एक हेलीकॉप्टर हादसे में वाईएस राजशेखर रेड्डी का निधन हो गया था. इसके बाद कांग्रेस पार्टी ने जगनमोहन रेड्डी और मां विजयलक्ष्‍मी से दूरी बना ली थी. हालांकि, साल 2010 में जब जनमोहन रेड्डी की मां विजयलक्ष्‍मी अपनी बेटी शर्मिला रेड्डी के साथ सोनिया गांधी से मिलने के लिए दिल्ली गईं थी. तब उनके उम्मीद थी कि काफी सोनिया गांधी की तरफ सम्मान मिलेगा. मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ बल्कि उन्हें सोनिया गांधी से मिलने के लिए इंतजार करना पड़ा था.


सोनिया गांधी जब जनमोहन रेड्डी की मां विजयलक्ष्‍मी और शर्मिला रेड्डी से मिली तो उनका व्यवहार सख्‍त था. सोनिया गांधी के इस व्यवहार से दोनों के मन को काफी आघात पहुंचा था. इसके बाद जगहमोहन रेड्डी ने बहन के इस अपमान का बदला लेने के लिए कसम खा ली थी. उन्होंने कहा था कि वह आंध्र प्रदेश से कांग्रेस को खत्म कर देंगे, जो आज के दौर में सही साबित होता दिखा रहा है. आंध्र प्रदेश में कांग्रेस की हालत लगातार खराब होती जा रही है. 


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अब उत्तर प्रदेश के मौजूदा सीएम के बारे में जानिए कि उन्होंने किस तरह से राजनीतिक बेइज्जती का बदला लिया. जनवरी साल 2007 में उत्तर प्रदेश में मुहर्रम का जुलूस निकला गया था. इस जुलूस के दौरान पत्थरबाजी हो गई. तब गोरखपुर में साम्प्रदायिक हिंसा भड़क गई थी. इसके बाद तत्कालीन मुलायम सिंह यादव की सरकार ने इसके लिए योगी आदित्यनाथ को जिम्मेदार माना और जेल में डाल दिया. कहा जाता है कि मुख्तार अंसारी के गुंडों ने योगी आदित्यनाथ के काफिले पर हमला बोल दिया था. इस हिंसा के बाद गोरखपुर के तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ को गिरफ्तार कर लिया गया था. फिर जब लोकसभा की कार्यवाही हुई तो योगी आदित्यनाथ ने सदन में फूट-फूटकर रोए थे. 


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अब सियासी परिस्थितियां बदल गई है. साल 2017 में योगी आदित्यनाथ सीएम बने. तब से लेकर उत्तर प्रदेश की सरकार लगातार चला रहे हैं. वहीं, जिनकी वजह से लोकसभा में योगी आदित्यनाथ को आंसू बहाने पड़े थे, देखिए अब वहां कहां हैं. उनका (मुख्तार अंसारी) ठिकाना जेल है.