Bihar Politics: मौका था नीतीश सरकार के विश्वास मत प्रस्ताव का तो राजद के 3 विधायक नीलम देवी, चेतन आनंद और प्रह्लाद यादव जेडीयू खेमे में बैठे नजर आए. खेला करने का दावा करने वाले राजद के साथ खुद ही खेल हो गया था. पूरी पार्टी हतप्रभ थी कि कैसे एक कैडर बेस पार्टी में जेडीयू ने सेंधमारी कर दी. उसके बाद राजद की एक और विधायक संगीता देवी और कांग्रेस के दो विधायक सिद्धार्थ सौरभ और मुरारी प्रसाद गौतम भाजपा के खेमे में नजर आए. एक के बाद एक एनडीए ने महागठबंधन के 6 विधायकों को अपने पाले में कर लिया और विपक्षी दल देखते रह गए. सवाल उठता है कि क्या इन विधायकों में दलबदल विरोधी कानून का खौफ नहीं है. अगर इस कानून का खौफ होता तो ये विधायक इस तरह से पाला बदल नहीं करते. दलबदल करने के लिए कम से कम दो तिहाई सदस्यों का टूटना जरूरी होता है. लेकिन बिहार में तो एक एक कर महागठबंधन के विधायक टूट रहे हैं और वे निश्चिंत भी हैं कि उनकी सदस्यता नहीं जाने वाली. गौर करने वाली बात यह है कि नीतीश कुमार की सरकार के विश्वास मत के दौरान जो 3 विधायकों ने पाला बदला था, उनके खिलाफ अभी तक कोई एक्शन पार्टी की ओर से नहीं लिया गया है. अब जब महागठबंधन के 3 ​और विधायक टूट गए हैं तो एक्शन की बात कही जा रही है.


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उत्तर प्रदेश में 7 ने की क्रॉस वोटिंग, एक गैरहाजिर  


केवल बिहार में ही ऐसा हो रहा है, ऐसा नहीं है. एक दिन पहले 27 फरवरी को राज्यसभा चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के 7 विधायकों ने क्रॉस वोटिंग कर भाजपा प्रत्याशी को जिताने का काम किया. ये 7 विधायक हैं- राकेश पांडेय, राकेश प्रताप सिंह, अभय सिंह, मनोज पांडेय, विनोद चतुर्वेदी, पूजा पाल और आशुतोष मौर्य. एक विधायक गैरहाजिर रहीं. उत्तर प्रदेश में भाजपा के 8वें उम्मीदवार संजय सेठ भी जीतने में कामयाब रहे. समाजवादी पार्टी को विधायकों के बागी होने की जानकारी तब लगी, जब राज्यसभा चुनाव से एक दिन पहले अखिलेश यादव ने सभी विधायकों को डिनर पर बुलाया था. इस डिनर में 8 विधायक नहीं पहुंचे. उसके बाद से ही विधायकों की बगावत की खबरें बुलंद होने लगी थीं. हालांकि तब पार्टी ने यह कहकर अपना पीछा छुड़ाया कि कुछ विधायक व्यक्तिगत कारणों से मौजूद नहीं हो पाए. 


हिमाचल में 6 विधायकों की क्रॉस वोटिंग से सुक्खू सरकार पर खतरा 


बिहार और यूपी के बाद बात करते हैं पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश की. वहां तो गेम ही उल्टा हो गया. सत्ताधारी दल होने के बाद भी कांग्रेस के 6 विधायकों ने क्रॉस वोटिंग कर पहले से ही मुसीबत झेल रही पार्टी की परेशानी और बढ़ा दी है. विक्रमादित्य सिंह के नेतृत्व में पार्टी के इन विधायकों ने बगावत का झंडा बुलंद कर दिया है और विक्रमादित्य सिंह ने तो अपने मंत्री पद से इस्तीफा भी दे दिया है. इनलोगों की बगावत का ही असर है कि सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार पर खतरा मंडराने लगा है और कांग्रेस के अधिकांश संकटमोचक हिमाचल प्रदेश में डैमेज कंट्रोल में जुट गए हैं. अगर पार्टी आलाकमान ने इस मसले को ठीक से नहीं संभाला तो गोवा, अरुणाचल प्रदेश, कर्नाटक और मध्य प्रदेश के बाद हिमाचल प्रदेश भी कांग्रेस के हाथ से फिसल जाएगा. बगावत की इन सभी घटनाओं में एक बात कॉमन है कि विधायकों ने बगावत तो की पर उनके पास नंबर उतने नहीं थे, जितने कि दलबदल विरोधी कानून में मानक बनाया गया है. फिर भी विधायक टूटे और बगावत पर उतारू हो गए. 


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क्या कहता है दलबदल विरोधी कानून 


1985 में तत्कालीन राजीव गांधी की सरकार ने संविधान में 92वां संशोधन करते हुए दलबदल विरोधी कानून  बनाया था, जिसका मकसद नेताओं के पार्टी बदलने और हॉर्स ट्रेडिंग को रोकना था. राजीव गांधी की सरकार इस कानून को लेकर कितनी गंभीर थी कि इसे संविधान के 10वीं अनुसूची में जगह दी गई थी. अंग्रेजी में इस कानून को एंटी डिफेक्शन लॉ कहा जाता है. 10वीं अनुसूची के दूसरे पैरा में दलबदल करने वाले सांसद या विधायकों को अयोग्य घोषित करने का कारण स्पष्ट किया गया है. इसमें कहा गया है कि यदि कोई विधायक अपनी मर्जी से पार्टी की सदस्यता छोड़ दे तो उसकी विधानमंडल या संसद की सदस्यता छिन सकती है. अगर कोई विधायक या सांसद जान बूझकर मतदान से अनुपस्थित रहता है या पार्टी के निर्देश के खिलाफ जाकर वोट करता है तो उसे भी अपनी सीट गंंवानी पड़ सकती है. इसके अलावा अगर कोई सांसद या विधायक अकेले या बिना दो तिहाई संख्याबल के किसी दूसरी पार्टी में शामिल हो जाते हैं या अलग गुट बनाते हैं तो वे अयोग्य घोषित हो जाएंगे.