Lohardaga Lok Sabha Seat: लोकसभा चुनाव को लेकर सियासी पारा अपने पूरे चरम पर है. पीएम मोदी की अगुवाई में एनडीए ने इस बार 400 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है. इसके लिए पूरे देश को 'मोदी की गारंटी' दी जा रही है. बीजेपी की ओर से मोदी सरकार में विकास की गंगा बहाने का दावा किया जा रहा है. लेकिन झारखंड के लोहरदगा में जमीनी हकीकत कुछ और ही है. यहां विकास का नामो-निशान भी देखने को नहीं मिला. लोहरदगा जिला के सेन्हा प्रखंड का यह गांव बूटी है. इस गांव में रहने वाले ग्रामीणों के पास आज भी बदन ढ़कने के लिए कपड़े नहीं है. आदिवासी बाहुल्य इस गांव में एक भी मकान पक्का नहीं है. मिट्टी के कच्चे मकानों के बीच रहने वाले इन ग्रामीणों के घर में आज भी जंगल से तोड़कर लाई गई लकड़ियां और पत्तियों के सहारे भोजन तैयार होता है. 


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ग्रामीणों ने बताया कि वृद्धा पेंशन और विधवा पेंशन के लिए ग्रामीण सरकारी कार्यालयों का चक्कर लगा रहे हैं. लोगों के मुताबिक, चुनावी मौसम में भी नेता इस गांव को भूले बैठे हैं. इस गांव में कोई राजनीतिक दल के नेता या फिर सांसद विधायक नहीं पहुंचे हैं. शासन हो या प्रशासन किसी ने भी इनके दुःख-दर्द को जानने-समझने का प्रयास नहीं किया है. गांव के लोगों का कहना है कि वो लोग आज भी आदिकाल के दौर वाला जीवन जीने के लिए मजबूर हैं. ऐसी परिस्थितियों में ग्रामीणों ने इस बार लोकसभा चुनाव का बहिष्कार करने की धमकी दी है. ग्रामीणों की धमकी से प्रशासन में हड़कंप मच गया है.


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बता दें कि इस सीट पर लंबे समय से कांग्रेस और बीजेपी के बीच कांटे की टक्कर होती रही है. बीजेपी ने इस बार सिटिंग सांसद सुदर्शन भगत का टिकट काटकर समीर उरांव पर दाव लगाया है, जबकि कांग्रेस ने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुखदेव भगत को मैदान में उतारा है. वहीं झामुमो के बागी विधायक चमरा लिंडा ने निर्दलीय चुनावी मैदान में उतरकर मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है. वोटों का गणित बताता है कि 2009 के लोकसभा चुनाव में चमरा लिंडा बड़ी मजबूती के साथ सामने आए थे. 1,36,345 वोट हासिल करके उन्होंने दूसरा स्थान हासिल किया था. बीजेपी के सुदर्शन भगत को जीत मिली थी, जबकि कांग्रेस के रामेश्वर उरांव तीसरे नंबर पर खिसक गए थे. 2019 में जीतने के बाद सुदर्शन भगत केंद्र की मोदी सरकार में मंत्री बने थे. 


 


रिपोर्ट- गौतम