Jharkhand Lok Sabha Election 2024: चतरा जिला वैसे तो वर्षों से नक्सल गतिविधियों के कारण बदनाम रहा है.‌ एक जमाना था जब चतरा समेत पूरे झारखंड में नक्सलियों की दबिश थी. तब न तो गांवों में कोई विकास कार्य हो पाता था और न ही संतोषजनक मतदान. बात है वर्ष 1999 की जब लोकसभा चुनाव के दौरान चतरा में माओवादियों ने वोट बहिष्कार का फरमान जारी किया था. इसको नजरंदाज करके वोट डालने वालों का हाथ काटने का एलान किया गया था. तब चतरा जिला मुख्यालय से करीब 65 किलोमीटर दूर स्थित टंडवा प्रखंड के कामता गांव निवासी जसमुद्दीन अंसारी ने नक्सलियों के आदेश को मानने से इनकार कर दिया था. लोगों को मतदान‌ के लिए प्रेरित करने को लेकर उन्होंने सबसे पहला मतदान किया था. जिसके बाद गांव के अन्य लोगों ने आगे आकर मतदान किया था. जिससे नाराज होकर नक्सली जसमुद्दीन को आधी रात को अगवा कर ले गए और जंगल में ले जाकर उनके (जसमुद्दीन) हाथ काट दिए थे. वैसे प्रशाशन के लगातार प्रयास से अब हालात बदल गए हैं. नक्सलियों का पांव यहां से उखड़ चुका है.


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चतरा जिले के जसमुद्दीन अंसारी मतदाताओं के लिए रोल मॉडल हैं. जानकारी के मुताबिक, साल 1999 में नक्सलियों के फरमान का उल्लंघन कर मतदान करने पर माओवादियों ने उनका हाथ काट दिया था. इसके बावजूद वह डरे नहीं. वह आज भी मतदान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं. गांव के अन्य लोगों को भी प्रेरित करते हैं. 70 वर्षीय अंसारी कहते हैं कि वोट देने से उन्हें कोई वंचित नहीं कर सकता है. जब तक जीवित हूं,राष्ट्र निर्माण के लिए मतदान करता रहूंगा. शायद उस वक्त जसमुद्दीन के इसी जोशीले अंदाज के कारण लोग वोट करने के लिए प्रेरित हुए थे.


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माओवादियों ने जसमुद्दीन के साथ ही गाड़ीलौंग गांव के महादेव यादव का भी अंगूठा काट दिया था. इस घटना के करीब चार वर्षों बाद महादेव की मौत हो गई थी. नक्सलियों के अत्याचार को याद करके जसमुद्दीन अभी भी भावुक हो जाते हैं. उन्होंने बताया कि 1999 में चतरा समेत कई इलाकों में नक्सलियों का आतंक था. नक्सलियों ने वोट बहिष्कार का नारा दिया था. उस वक्त चतरा का टंडवा प्रखंड हजारीबाग संसदीय क्षेत्र के अधीन था. तब जसमुद्दीन और महादेव एक राजनीतिक दल के प्रत्याशी के पक्ष में प्रचार कर रहे थे. नक्सलियों के फरमान की परवाह नहीं करते हुए दोनों मतदान सुनिश्चित कराने के अभियान में जुटे थे. उनसे प्रेरित होकर लोग मतदान के लिए आगे आ रहे थे. यह सब देखकर नक्सली बौखला उठे थे. डराने धमकाने का असर नहीं हुआ तो दोनों को उनके घरों से उठा लिया. साथी नाजिर अंसारी बताते हैं कि जब वोट डाले जाने को लेकर जसमुद्दीन को माओवादियों ने हाथ काटा था तब पूरे गांव सहित प्रखंड भर में दहशत का माहौल था. 


नाजिर अंसारी ने बताया कि तब पीड़ित परिवार को आश्वासन के रूप में सरकारी नौकरी देने का वायदा भी किया गया था, लेकिन सब ठंडे बस्ते में चला गया. वहीं सिमरिया विधानसभा क्षेत्र के तत्कालीन विधायक योगेंद्रनाथ बैठा ने बिहार विधानसभा में इस मामले को उठाया था. तब सदन ने न्याय का भरोसा दिलाते हुए दोनों को नौकरी देने का वायदा किया था. इसी बीच झारखंड अलग हो गया. जिसके कारण यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया. झारखंड बनने के 23 सालों बाद सिमरिया के विधायक किशुन कुमार दास ने वर्ष 2023 में झारखंड विधानसभा में जसमुद्दीन के मामले को उठाया था. जिस पर राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सरकार ने आश्रितों को नौकरी देने का वादा भी किया था. लेकिन इस पर कोई भी पहल नहीं किया गया. 


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बेटा अनवारूल का कहना है कि मामले की गम्भीरता को देखते हुए आश्वासन तो दिया गया पर उस पर कोई पहल नहीं किया गया. नतीजन यह हुआ कि माओवादियों के हाथ काटने के कई सालों तक परिवार चलाना पिता के मुश्किलों से भरा रहा. फिर हम भाईयों ने होंश संभाला और मेहनत मजदूरी कर परिवार का किस तरह गुजर-बसर कर रहे हैं. लेकिन पिता के साहस के सम्मान को लेकर आज भी मन कचोट ही रहा है. फिलहाल जसमुद्दीन अपने साहस के कारण आज पूरे जिले के मतदाताओं के लिए रोल मॉडल हैं. उनकी कहानी सुनाकर चुनाव आयोग आज भी मतदाताओं में जोश तो भरता है, लेकिन पीड़ित जसमुद्दीन की माली हालात देखकर सरकार और प्रशासन के उदासीनता पर भी सवाल खड़े होते हैं.‌