Katihar Lok Sabha Seat Profile: लोकसभा चुनाव में अब महज एक या दो महीने का ही वक्त शेष बचा है. अगले कुछ दिनों में चुनाव की तारीखों का ऐलान हो सकता है और जनता को एक बार फिर से अपना सांसदों चुनने का मौका मिलने वाला है. चुनाव से पहले हम आपको बिहार की सीटों के चुनावी मुद्दों की जानकारी दे रहे हैं. इसी कड़ी में कटिहार सीट पर एक नजर डालते हैं. पश्चिम बंगाल की सीमा पर स्थित कटिहार का चुनावी इतिहास काफी पुराना है. इस सीट पर पहली बार साल 1957 में चुनाव हुआ था. 


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इस सीट के मुख्य मुद्दे


पलायन और बेरोजगारी यहां की मुख्य समस्याएं है. कोसी-महानंदा-गंगा और बरान्दी नदियों की चारों ओर से घिरे इस जिले में बाढ़ की पीड़ा से हर वर्ष जूझना पड़ता है. बाढ़ से बचाव के लिए सरकार आज तक कोई मास्टरप्लान नहीं बना सकी है. मानसून के आते ही यातायात के लिए कई प्रखंड के ग्रामीण और निचली इलाकों में चचरी पुल और टेंगी नाव ही यातायात का एकमात्र साधन रहता है. बाढ़ की वजह से हर वर्ष बड़ी संख्या में लोग पलायन करते हैं. कटिहार जिला कभी उद्योगनगरी के रूप में जाना जाता था लेकिन अब उद्योग विहीन बन चुका है. जिले में दो-दो जुट मिल, दो फ्लावर मिल, दियासलाई की फैक्ट्री और कांटी फैक्ट्री समेत दर्जनों ऐसे कारखाने जो राजनीतिक खींचातानी में एक-एक करके बंद हो गए. 


जातीय समीकरण


कटिहार जिले में कुल सात विधानसभा क्षेत्र है जबकि कटिहार लोकसभा क्षेत्र के तहत  6 विधानसभा क्षेत्र आते हैं. वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक, कटिहार जिले की आबादी 30 लाख 68 हजार 149 है. कटिहार लोकसभा क्षेत्र में 9 लाख 39 हजार 260 मतदाता पुरुष हैं वहीं 8 लाख 65 हजार 305 मतदाता महिला है जबकि 102 थर्ड जेंडर मतदाता हैं. जातीय जनगणना पर 41 फीसदी मुस्लिम, 11 फीसदी यादव, 8 फीसदी सवर्ण, 16 फीसदी वैश्य, 18 फीसदी पिछड़ा और अत्यंत पिछड़ा वर्ग और 6 फीसदी अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लोग शामिल हैं. जातीय गणना की रिपोर्ट के मुताबिक, जिले में करीब साढ़े 52 प्रतिशत लोग साक्षर हैं. करीब 1 लाख 40 हजार लोग खेती पर निर्भर करते हैं. जबकि जिले का कोढ़ा विधानसभा क्षेत्र पूर्णिया लोकसभा क्षेत्र के तहत आता है. 


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तारीक अनवर की कर्मभूमि


यह सीट कांग्रेस नेता तारीक अनवर की कर्मभूमि कही जाती है. तारिक ने 1980 में कांग्रेस की टिकट पर अपना पहला चुनाव जीता था और पहली बार लोकसभा पहुंचे थे. 1989 और 1991 में जनता दल के प्रत्याशी ने उनको मात दी. लेकिन 1996 में उन्होंने फिर से कब्जा कर लिया और 1998 में भी वही जीते थे. 25 मई 1999 को उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा देकर एनसीपी ज्वाइन कर ली और 1999 में चुनाव हार गए थे. 2014 में जब पूरे देश में बीजेपी की लहर चली तो इस सीट पर एनसीपी की टिकट पर तारिक अनवर ने जीत हासिल की. 28 सितंबर 2018 को तारिक ने NCP और लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया और 19 साल बाद कांग्रेस में वापसी कर ली थी. 2019 में जेडीयू के दुलाल चंद्र गोस्वामी ने उन्हें 57,203 हजार वोटों से मात दी थी.