Valmiki Nagar Lok Sabha Seat Profile: लोकसभा चुनाव में अब महज एक या दो महीने का ही वक्त शेष बचा है. अगले कुछ दिनों में चुनाव की तारीखों का ऐलान हो सकता है और जनता को एक बार फिर से अपना सांसदों चुनने का मौका मिलने वाला है. चुनाव से पहले हम आपको बिहार की सीटों के चुनावी मुद्दों की जानकारी दे रहे हैं. इसी कड़ी में वाल्मीकिनगर सीट पर एक नजर डालते हैं. 
पश्चिमी चंपारण जिले की वाल्मीकिनगर सीट को मिनी चंबल के नाम से भी ख्याति प्राप्त है. वाल्मीकिनगर टाइगर रिजर्व, बिहार का एकमात्र नेशनल पार्क यहीं पर स्थित है. यहां तीन नदियां एक जगह पर आकर मिलती हैं जहां त्रिवेणी स्नान का मेला भी लगता है. गंडक नदी पर नेपाल और बिहार को जोड़ने वाला पुल भी यहां बना हुआ है. 


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2008 में वाल्मीकिनगर सीट पहली बार अस्तित्व में आई थी और 2009 में यहां पहली बार लोकसभा चुनाव हुए थे. इसे देश की नंबर वन लोकसभा सीट का भी तमगा प्राप्त है. ब्राह्मण बाहुल्य इस सीट पर 2009 से अभी तक इस सीट पर एनडीए का कब्जा है. अब तक 2 बार जेडीयू और एक बार बीजेपी का कब्जा रहा है. इस सीट के अंतर्गत 6 विधानसभा सीटें (वाल्मीकि नगर, रामनगर, नरकटियागंज, बगहा, लौरिया और सिकटा) आती हैं. 2020 के विधानसभा चुनाव में 4 सीट पर बीजेपी, एक सीट पर जदयू और एक सीट पर भाकपा माले का कब्जा है. ऐसे में विधानसभा परिणाम के हिसाब से भी एनडीए की मजबूत पकड़ दिख रही हैं.


जातीय समीकरण


38 लाख से ज्यादा जनसंख्या वाली वाल्मीकिनगर में साढ़े 17 लाख से ज्यादा वोटर हैं. इसमें पुरूष वोटरों की संख्या 9 लाख 43 हजार है, जबकि महिला वोटरों की संख्या 8 लाख 25 हजार के आस-पास है. वहीं थर्ड जेंडर में  102 मतदाता हैं. इस सीट पर 2 लाख से ज्यादा ब्राह्मण आबादी है. तो वहीं अनुसूचित जनजाति में थारू आदिवासी और उरांव वोटर निर्णायक भूमिका में हैं. जिनकी जनसंख्या 2 लाख 70 हजार के आसपास है. यादव वोटरों की भी संख्या तकरीबन ढाई लाख के करीब है. जबकि मुस्लिम वोटरों की संख्या तीन लाख के आसपास है. दलित और महादलित मिलाकर करीब डेढ़ लाख जबकि वैश्य मतदाता भी डेढ़ लाख के आस पास हैं. जातिगत और सामाजिक समीकरण की वजह से ही यह सीट एनडीए के लिए सुरक्षित सीट बन गई है. 


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चुनावी मुद्दे


धान के कटोरा के नाम से विख्यात चम्पारण के बगहा व वाल्मीकिनगर समेत रामनगर में पैदावार अच्छी होती है. हर किस्म का चावल पैदा करने के बाद भी किसानों की हालत काफी खराब है. उन्हें बाजार में सही दाम नहीं मिल पाता. 4 चीनी मिलों के होते हुए भी गन्ना किसानों को उचित मूल्य और भुगतान की समस्या से जूझना पड़ता है. उद्योग धंधों की कमी की वजह से पलायन एक बड़ी समस्या है. नेपाल से निकलने वाली नारायणी और गण्डक नदी हर साल कहर बरपाती हैं. लिहाजा हर साल आने वाली बाढ़ लोगों का सबकुछ छीन लेती है. राजधानी पटना तक रेल का वर्षों से इंतजार है. खस्ताहाल सड़कें भी लोगों को रुलाती हैं. इस सीट पर ना कोई बड़ा अस्पताल है और ना ही कोई बड़ा कॉलेज. 


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संभावित दावेदार


2019 में यहां से जेडीयू के बैद्यनाथ प्रसाद महतो (अब मृत) जीते थे. उन्होंने कांग्रेस के शाश्वत केदार को 3,54,616 वोट से हराया था. उनकी आकस्मिक निधन के बाद विधानसभा चुनाव के साथ हुए चुनाव में पिता के सहानुभूति वोट के सहारे सुनील कुमार ने कांग्रेस के प्रवेश कुमार मिश्रा को हराकर जीत हासिल की थी. इस बार एनडीए में अगर सीट जेडीयू के पास आती है तो सुनील कुमार ही बड़े दावेदार हैं. अगर BJP के खाते में सीट गई तो सतीश चंद्र दुबे, राजन तिवारी और दीपक यादव अपनी दावेदारी ठोंक रहे हैं. LJP रामविलास के राजू तिवारी भी टिकट लेने के लिए दौड़-भाग कर रहे हैं. वहीं इंडिया ब्लॉक में आरजेडी या माले की यहां कोई खास पकड़ नहीं है. लिहाजा कांग्रेस ही प्रबल दावेदार है. कांग्रेस की ओर प्रवेश मिश्रा को फिर से टिकट मिल सकती है. 


रिपोर्ट- इमरान अजीज