Bihar Politics: नीतीश कुमार की सरकार ने फाइनली विधानसभा में सोमवार को विश्वास मत जीत लिया. नीतीश सरकार के पक्ष में 129 तो विपक्ष में 0 वोट पड़े. विपक्ष के विधायकों ने वोटिंग का ​बहिष्कार कर दिया, जिसके बाद से उनके पक्ष में एक भी वोट नहीं पड़े. इसके साथ ही पिछले 14 दिनों से राज्य में चली आ रही कयासबाजी और गहमागहमी का दौर एक तरह से खत्म होता दिख रहा है. नीतीश कुमार ने विश्वास मत जीत लिया पर उनके लिए असल चुनौती अभी बाकी है. 


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नीतीश कुमार को आने वाले दिनों में बजट पास कराना है और इसी बीच मंत्रिमंडल का विस्तार भी करना है. मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर भाजपा और अन्य सहयोगी दलों से तालमेल बिठाना इस बार नीतीश कुमार के लिए आसान नहीं होगा. भाजपा से तो समझौता क्लीयर हो भी जाएगा, लेकिन एक तरह से टफ नेगोशिएटर जीतनराम मांझी से डील करना नीतीश कुमार के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकती है. हालात को देखकर नहीं लगता कि जीतनराम मांझी, नीतीश कुमार से मानने वाले हैं. 


जीतनराम मांझी को भाजपा आलाकमान ही खुश रख पाएगा, क्योंकि नीतीश कुमार के पास उतने साधन नहीं है कि वह जीतनराम मांझी को खुश कर पाएंगे. वैसे भी जीतनराम मांझी, नीतीश कुमार से पहले एनडीए में शामिल हुए थे. इसलिए उनसे भाजपा ही डील कर सकती है. उसके बाद लोकसभा चुनाव के समय सीटों को लेकर एकराय बनाना भी नीतीश कुमार के लिए बड़ी चुनौती हो सकती है. एनडीए में इस समय भाजपा सबसे बड़ी पार्टी है तो नीतीश कुमार की जेडीयू दूसरी तो लोजपा रामविलास का नंबर उसके बाद आता है. फिर राष्ट्रीय लोक जनता दल और हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा का नाम है. 


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सीटों का बंटवारा भी इसी क्रम में होने की बात कही जा रही है. भाजपा और जेडीयू कुछ सीटों के अंतर में चुनाव लड़ सकते हैं तो उसके बाद लोजपा, राष्ट्रीय लोक जनता दल और फिर हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा का नंबर आता है. सीटों का तालमेल न केवल नीतीश कुमार, बल्कि भाजपा के लिए बहुत माथापच्ची वाला काम हो सकता है. नीतीश कुमार भी अपनी पार्टी की बेहतरी ही चाहेंगे और पिछली बार की तरह ही 17 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहेंगे. लेकिन अगर नीतीश कुमार 17 सीटों पर चुनाव मैदान में उतरेंगे तो फिर भाजपा के लिए बाकी दलों को एडजस्ट करना बेहद मुश्किल हो सकता है. देखना यह है कि बिहार में भाजपा और नीतीश कुमार कैसे सभी सहयोगी दलों को अपने साथ लेकर चलते हैं.