पटना: राजनीति का बैटलग्राउंड कहे जाने वाले बिहार में इसी वर्ष के अंत में विधानसभा चुनाव होने वाला है. इसको लेकर तमाम पार्टियां फिलहाल चुनावी बिगुल बजने से पहले अंदरुनी तैयारियों में जुटी हैं. अमूमन ऐसा माना जा रहा है कि फिलहाल दो ही गुट हैं. एक एनडीए तो दूसरा महागठबंधन. लेकिन बिहार में तीसरे मोर्चे के खुलने के संकेत समय-समय पर मिलते ही रहे हैं. 


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महागठबंधन की बैठकों से आरजेडी और कांग्रेस नेताओं का किनारा करना और गुट के छोटे-छोटे घटक दलों की ओर से लगातार जारी मीटिंग इस बात की ओर इशारा कर रही है कि अंदर ही अंदर कुछ तो खिचड़ी पक रही है. बुधवार को बिहार में हाल के दिनों में चर्चा का केंद्र रहे प्रशांत किशोर से आरएलएसपी प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा की मुलाकात हुई. इसके बाद गुरुवार को महागठबंधन के अन्य घटक दलों ने एक बैठक की जिसमें आरजेडी और कांग्रेस नेता फिर नदारद रहे.


बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनजर बुलाई गई यह पार्टी प्रमुखों की मीटिंग दिल्ली के पांच सितारा होटल में हुई. इस बैठक में आरएलएसपी प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा, वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी, हम प्रमुख जीतनराम मांझी और आरएलएसपी के प्रधान महासचिव माधव आनंद भी मौजूद थे. 


दिलचस्प बात यह है कि इस मीटिंग में वैसे तो विधानसभा चुनाव को लेकर रणनीति पर चर्चा होने का कयास लगाया जा रहा है. लेकिन पहले उपेंद्र कुशवाहा की पीके के साथ मीटिंग की. गुरुवार को वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी भी प्रशांत किशोर से मिले. अब इसके बाद यह कयास लगाए जाने लगे हैं कि पीके की महागठबंधन के अन्य घटक दलों से नजदीकी कहीं बिहार में उनकी अगली रणनीति का हिस्सा तो नहीं है. 


दरअसल, महागठबंधन में मौजूद तमाम घटक दलों के बीच आपसी सामंजस्य की भारी कमी लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद से ही दिखती है. सभी घटक दल के नेता खुले मंच से कई बार दर्शा चुके हैं कि उन्हें इस गठबंधन से कोई फर्क नहीं पड़ता. उनका साथ रहना बस एक औपचारिकता मात्र ही है.