Tarpan Vidhi: अमावस्या के दिन करें ऐसे करें तर्पण, यहां जानें शुभ मुहूर्त
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Tarpan Vidhi: अमावस्या के दिन करें ऐसे करें तर्पण, यहां जानें शुभ मुहूर्त

Tarpan Vidhi: आज मार्गशीर्ष अमावस्या कि तिथि है. इसे अहगन अमावस्या भी कहते हैं. क्योंकि मार्गशीर्ष माह को अगहन माह के नाम से भी जाना जाता है. मान्यता है कि इस अमावस्या के दिन पितर धरती पर आते हैं. इस दिन लोग अपने पितरों का तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध आदि करते हैं.

Tarpan Vidhi: अमावस्या के दिन करें ऐसे करें तर्पण, यहां जानें शुभ मुहूर्त

Tarpan Vidhi: आज मार्गशीर्ष अमावस्या कि तिथि है. इसे अहगन अमावस्या भी कहते हैं. क्योंकि मार्गशीर्ष माह को अगहन माह के नाम से भी जाना जाता है. मान्यता है कि इस अमावस्या के दिन पितर धरती पर आते हैं. इस दिन लोग अपने पितरों का तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध आदि करते हैं. ऐसे करने से पितर खुश होते हैं और अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं.

मार्गशीर्ष अमावस्या का शुभ मुहूर्त

मार्गशीर्ष अमावस्या की तिथि का प्रारंभ: 30 नवंबर, दिन- शनिवार, सुबह 10 बजकर 29 मिनट से शुरु होगा. वहीं इसका समापन 1 दिसंबर, दिन रविवार, सुबह 11 बजकर 50 मिनट पर होगा. इस दौरान सुकर्मा योग प्रात:काल से लेकर शाम 4 बजकर 34 मिनट तक रहेगा. वहीं अनुराधा नक्षत्र सुबह से लेकर दोपहर 2 बजकर 24 मिनट तक रहेगा. वहीं पितरों के तर्पण का समय ब्रह्म मुहूर्त से लेकर 11 बजकर 50 मिनट तक रहेगा.

पितरों के लिए तर्पण की सामग्री

मार्गशीर्ष अमावस्या को अगर आप पितरों का तर्पण करना चाहते हैं तो सबसे पहले ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर लें और फिर साफ कपड़े पहन लें. उसके बाद तांबे, कांसा, सोना या चांदी का कोई एक बर्तन लें. इस बर्तन में जल काला तिल, गंगाजल, अक्षत्, सफेद फूल, कुशा आदि डाल दें. जल देने के लिए मिट्टी या लोहे के बर्तन का उपयोग भूलकर भी न करें. 

पितरों के लिए तर्पण की विधि

गायत्री मंत्र पढ़ते हुए अपनी शिखा को बांध लें. उसके बाद दाएं हाथ की अनामिका अंगुली में दो कुशों की और बाएं ​हाथ की अनामिका में 3 कुश की पवित्री धारण कर लें. उसके बाद हाथ में कुशा का जड़ से ऊपर वाला भाग, जल और अक्षत लेकर संकल्प करें. उसके बाद तांबे के पात्र में जल, अक्षत और कुशा डालकर पात्र को दाएं हाथ से पकड़कर बाएं हाथ से ढंक लें. इस दौरान अपने पितरों का आह्वान करें.

दक्षिण की ओर करें मुंह

पितरों को तर्पण देने के लिए दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके बैठें. उसके बाद जनेऊ को दाएं कंधे से थोड़ा नीचे करें और वहां गमछा रखें. उसके बाद अंगूठे और तर्जनी के बीच वाले हिस्से से जल गिराएं. ये हिस्सा आपके हाथ में पितृ तीर्थ का होता है. ऐसे करने से पितर अपने वंशजों को शांति प्रदान करते हैं.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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