पटना : चमकी बुखार को लेकर नया खुलासा हुआ है. चमकी ने अपनी चपेट में सबसे ज्यादा बच्चियों को लिया है. सुनने में थोड़ा अजीब जरूर लगेगा, लेकिन ये सच है. जी मीडिया के खुलासे ने चमकी को लेकर नया सवाल खड़ा कर दिया है.


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मजफ्फरपुर में चमकी बुखार ने 150 से अधित बच्चों को अपना शिकार बना लिया है. डॉक्टर और विशेषज्ञ अबतक इस बीमारी के जड़ तक नही पहुंच सके हैं. लेकिन चमकी को लेकर हुए नए खुलासे विशेषज्ञों की परेशानी बढ़ा देगी.


मजफ्फरपुर मिठनपुरा की अफसाना खातून ने चमकी के प्रकोप में अपनी चार साल की बच्ची सुहानी खातून को खो दिया है. अफसाना कहती है कि हादसे से एक दिन पहले उनकी बच्ची बिल्कुल ठीक थी. बच्ची ने रात में खाना खाया था. बच्ची लीची नहीं खायी थी. अचानक उसकी तबियत खराब हुई और अस्पताल में उसने दम तोड़ दिया. हाल ही में अफसाना ने अपनी बेटी का आधार कार्ड भी बनवाया था. ताकि सरकारी योजनाओं का लाभ मिल सके. लेकिन योजना के लाभ से पहले ही सुहानी चल बसी.


अफसाना के 2 और बच्चे हैं. एक बेटा और एक बेटी. अफसाना के पति मो शफीक पुणे में मजदूर का काम करते थे. एक एक्सिडेंट में शफीक के पैर और हाथ डैमेज हो गए. इसके बाद पिछले एक साल से सफीक मुजफ्फरपुर में ही छोटा-मोटा रोजगार कर अपना घर चालते हैं.


दूसरी कहानी मिठनपुरा में ही विनायक राय की है. विनायक पेशे से राजमिस्त्री हैं. दो साल पहले बीमारी के कारण पत्नी चल बसी. दो साल बाद चमकी बुखार से बेटी भी चल बसी. विनायक घर में अब अपनी मां और पिता के साथ रह रहे हैं. विनायक कहते हैं कि उनकी बेटी बिल्कुल ठीक थी. क्या हुआ उन्हें भी नहीं पता. विनायक भी लीची खाने की बात को खारिज करते हैं.


विनायक के पास आयुष्मान भारत योजना का कार्ड भी है, लेकिन उसका इस्तेमाल कैसे होगा ये उन्हें नही मालूम. विनायक की मां इसर देवी भी कहती हैं कि बच्ची ने ठीक से खाना खाया था. बच्ची को खाने के लिए मीठा लाय भी दिया था. विनायक को बच्ची की मौत के बाद सरकार की ओर से दी जाने वाली सहायता राशि भी नहीं मिली है.


मड़वन ब्लॉक में चमकी के 29 मामले सामने आए हैं, जिनमें 5 बच्चियों की मौत हो चुकी है. जबकि 20 का इलाज एसकेएमसीएच में चला. कुछ को अस्पताल से छुट्टी मिल गई तो कुछ का इलाज चल रहा है. मड़वन प्रखंड पीएचसी के हेल्थ मैनेजर प्रशांत बताते हैं कि जितने बच्चे एईएस के शिकार हुए हैं, उनमें ज्यादातर लड़कियां ही हैं. अब ऐसा क्यों हो रहा है यह तो जांच के बाद ही पता चलेगा.


सरकार ने खुद माना है कि एईएस पीड़ित 30 फीसदी परिवारों के पास राशन कार्ड नहीं है. ज्यादातर लोग कच्चे घरों में रहते हैं. हमारी जांच में ऐसे भी परिवार मिले जिन्हें कागज पर सारी सुविधाएं मिल रही हैं, लेकिन हकीकत में उन्हें योजनाओं का अधूरा ही लाभ मिल रहा है.