पटना : बिहार में शिक्षा की बेहतर व्यवस्था के बीच यहां के मशहूर विश्वविद्यालयों में प्रोफेसर और नॉन टीचिंग स्टाफ की भारी कमी है. बिहार की सबसे बेहतर मानी जानी वाली पटना यूनिवर्सिटी में ही कई विभागों में प्रोफेसर, लेक्चरर, अस्टिटेंट प्रोफेसर नहीं हैं. हालांकि बिहार सरकार ने विश्वविद्यालयों में नियुक्ति के लिए यूनिवर्सिटी सर्विस कमीशन बनाया है. बावजूद प्रोफेसर की नियुक्ति में लंबा समय लग रहा है.


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प्रोफेसर की कमी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि टीचिंग सेक्शन के 810 पदों में 500 और नॉन टीचिंग सेक्शन में 1300 से ज्यादा पद रिक्त हैं.



पटना यूनिवर्सिटी बिहार की एकमात्र यूनिवर्सिटी है, जहां परीक्षा और एकेडमिक कैलेंडर का सख्ती से पालन होता है. तमाम तरह की दिक्कतों के बावजूद यहां छात्रों के लिए बेहतर शैक्षणिक माहौल है. सच्चाई भी है कि बिहार के छात्र अपना समय बचाने के लिए पटना यूनिवर्सिटी को ही प्राथमिकता देते हैं, लेकिन आज यही यूनिवर्सिटी प्रोफेसर, लेक्चरर, रीडर और नॉन टीचिंग स्टाफ की भारी कमी का सामना कर रही है. जिस तेजी से यहां पर बहाली होनी चाहिए थी उस तेजी से बहाली नहीं हुई, जिस कारण से यूनिवर्सिटी के कई कॉलेज में पढ़ाई बुरी तरह प्रभावित हुई है.


कई विभाग ऐसे हैं जहां कि विभागाध्यक्ष यानी एचओडी ही नहीं हैं और ये सिर्फ एक साल की बात नहीं है, बल्कि कई वर्षों से ऐसा ही हो रहा है. बिहार सरकार से प्रोफेसर की बहाली के लिए आश्वासन मिलता रहा है, लेकिन हकीकत ये है कि शिक्षक रिटायर हो रहे हैं. खाली पड़े पद पर बहाली नहीं हो रही है.


विश्वविद्यालय के डीन स्टूडेंट्स वेलफेयर डॉक्टर एनके झा के मुताबिक, राज्य सरकार को खाली पड़े पदों की जानकारी भेजी गई है और उम्मीद है कि यहां शिक्षकों की बहाली हो जाएगी. अब सवाल ये उठता है कि आखिर पटना यूनिवर्सिटी की हालत इस तरह क्यों हुई है. दरअसल, पटना यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर, लेक्चरर के 810 पद हैं, लेकिन फिलहाल यहां पिछले महीने तक की स्थिति के मुताबिक सिर्फ 311 ही अस्टिटेंट प्रोफेसर, प्रोफेसर और लेक्चरर बचे हैं. अगले तीन साल में 94 प्रोफेसर रिटायर होने जा रहे हैं.


एक नजर पटना यूनिवर्सिटी की मौजूदा स्थिति पर


>> 1975 में पटना यूनिवर्सिटी में जब बड़े स्तरों पर भर्ती हुई तब छात्रों की संख्या 11 हजार थी.
>> आज छात्रों की संख्या 19500 है, जबकि यूनिवर्सिटी में 50 से ज्यादा वोकेशनल सब्जेक्ट भी शुरू किए गए.
>> बिहार सरकार ने अप्रैल 2010 में 3200 पद पर बहाली की मंजूरी दी.
>> साल 2014 में बीपीएससी के माध्यम से प्रोफेसर की बहाली और पांच सालों में 2 हजार ही बहाली हो सकी.
>> पटना यूनिवर्सिटी को सिर्फ 68 नए शिक्षक मिले हैं.
>> पटना यूनिवर्सिटी में नॉन टीचिंग स्टाफ की संख्या सरकार की तरफ से 2 हजार है, लेकिन सिर्फ 668 स्टाफ ही काम कर रहे हैं.
 
पटना यूनिवर्सिटी में बिहार नेशनल कॉलेज यानी बीएन कॉलेज में इतिहास और राजनीति शास्त्र में विभागाध्यक्ष नहीं हैं. मगध महिला कॉलेज में भी इतिहास विभाग बिना एचओडी के चल रहा है. पटना कॉलेज में भी राजनीति शास्त्र में एचओडी नहीं हैं. बंग्ला विभाग में ग्रेजुएशन से लेकर पोस्ट ग्रेजुएशन तक एक भी शिक्षक नहीं. पूरे बिहार में अरबी की पढ़ाई सिर्फ पटना यूनिवर्सिटी में होती है. यहां यूजी और पीजी में एक भी शिक्षक नहीं हैं.


हालांकि बिहार सरकार ने राज्य के विभिन्न यूनिवर्सिटी में शिक्षकों की कमी गेस्ट प्रोफेसर को बहाल करके पूरी करने जा रही है।पटना यूनिवर्सिटी में 114 गेस्ट प्रोफेसर की बहाली के लिए प्रक्रिया शुरू हो रही है।बिहार सरकार में शिक्षा मंत्री कृष्णनंदन वर्मा के मुताबिक, राज्य सरकार सभी यूनिवर्सिटी के लिए गंभीर है और जल्द ही टीचिंग और नॉन टीचिंग स्टाफ की कमी पूरी कर दी जाएगी.


छात्रों के मुताबिक, पटना यूनिवर्सिटी बिहार की सबसे बेहतरीन यूनिवर्सिटी है और इसलिए वो यहां पढ़ाई करना चाहते हैं. ये जानते हुए भी कि यहां शिक्षकों की कमी है. बिहार में पिछले कई वर्षों में शिक्षा का माहौल बेहतर हुआ है. राज्य सरकार भी शिक्षा के लिए ईमानदार कदम उठा रही है और इसी का नतीजा है कि आर्यभट्ट, चंद्रगुप्त प्रबंधन संस्थान, निफ्ट, चाणक्य लॉ यूनिवर्सिटी जैसी यूनिवर्सिटी पटना से संचालित हो रही है. लेकिन राज्य सरकार को इसके साथ ही ट्रेडिशनल यूनिवर्सिटी पर भी ध्यान देना होगा ताकि लाखों छात्रों का भविष्य बेहतर हो सके.