मोतिहारी में बदस्तूर जारी है सरकारी जमीन की खरीद बिक्री का खेल, रोक सूची का कोई मतलब नहीं
क्या एक ही जमीन सरकारी या फिर रैयती (निजी) हो सकती है ? आप कहेंगे नहीं पर आज हम आपको बताएंगे मोतिहारी में ऐसा भी होता है. जिस जमीन को एक कार्यालय सरकारी बताता है उसी को दूसरा कार्यालय रैयती यानी कि निजी बताता है.
मोतिहारी : क्या एक ही जमीन सरकारी या फिर रैयती (निजी) हो सकती है ? आप कहेंगे नहीं पर आज हम आपको बताएंगे मोतिहारी में ऐसा भी होता है. जिस जमीन को एक कार्यालय सरकारी बताता है उसी को दूसरा कार्यालय रैयती यानी कि निजी बताता है. हम आपको बताएंगे की निबंधन कार्यालय में जमीन की बिक्री के रोक सूची के नाम पर कैसे-कैसे खेल खेले जाते हैं.
सरकारी जमीन को भी जा रहा है बेचा
बता दें कि रोक सूची का खेल ऐसा है कि एक जमीन रजिस्ट्री कार्यालय के रिकॉर्ड में खास महल यानी कि सरकारी भूमि के नाम से रोक सूची में दर्ज है पर अंचल के कर्मचारी के रिपोर्ट में खास महल से मुक्त है यानी कि निजी रैयती भूमि है. मतलब कि एक ही जमीन सरकार के एक कार्यालय में सरकारी जमीन है तो दूसरे कार्यालय में निजी रैयती भूमि के नाम पर दर्ज है. जब हमने इस बाबत राजस्व मामले में जिला के सबसे बड़े पदाधिकारी अपर समाहर्ता पवन वर्मा से सवाल किया कि क्या एक ही जमीन सरकारी और निजी दोनों हो सकती है तो उन्होंने इसे सिरे से नकार दिया लेकिन यह क्या इस रिपोर्ट पर अपर समाहर्ता के रूप में उनके भी हस्ताक्षर हैं.
कार्यालय से होता है जमीनों को रोक सूची से मुक्त करने का आदेश जारी
अपर समाहर्ता पवन वर्मा ने बताया कि पूर्वी चम्पारण जिले में 2 लाख 6 हजार 272 खेसरा की जमीन निबंधन कार्यालय के रोक सूची में दर्ज है. यानी कि दो लाख से ज्यादा खेसरा की भूमि को बेचा नहीं जा सकता है. फिर भी पूर्वी चंपारण में अधिकारी आंखों पर पट्टी बांधकर इन जमीनों को रोक सूची से मुक्त करने का आदेश जारी करते हैं वो भी कोर्ट के आदेश को बिना पढ़े.
मोतिहारी का जिला अवर निबंधन कार्यालय जहां पर कोई भी जमीनी कागजात को रजिस्टर्ड यानी कि सरकारी मुहर लगाई जाती है. यहां पर ही जमीन खरीदी और बेची जाती है. काफी जतन करने के बाद दो पैसा इकट्ठा कर के कोई व्यक्ति जमीन खरीदता है. कोई जमीन जब निबंधन कार्यालय में निबन्धित हो जाता है तो जमीन खरीदने वाला व्यक्ति समझता है कि उसने सही जमीन खरीदी है. पर यह क्या मोतिहारी के निबंधन कार्यालय में धड़ल्ले से सरकारी जमीन बेची जा रही है.
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तहकीकात में पता चला कि कैसे निबंधन कार्यालय और अपर समाहर्ता कार्यालय के मेल से रोक सूची का खेल चल रहा है. कैसे रोक सूची के नाम पर एक ही जमीन एक कार्यालय में सरकारी भूमि हो जाती है जबकि दूसरे कार्यालय में वही जमीन रैयती यानी कि निजी जमीन हो जाती है. खेल इतना तक ही नहीं होता है यहां कोर्ट के आदेश को भी ताक पर रख दिया जाता है. जो सिस्टम फॉलो करता है उसके लिए पूरा दरवाजा खोल दिया जाता है और जो सिस्टम फॉलो नहीं करता वो चाहे नेता हो या कानून का जानकार या कोई वकील उसे कोर्ट के आदेश के वाबजूद वर्षों से दौड़ाया जा रहा है.