बगहा: Migration: 350 से 400 रुपये प्रतिदिन मज़दूरी के साथ एक बोतल शराब की ख्वाहिश में बिहार से नेपाल जा रहे दर्ज़नों मजदूर. बिहार के पंचायतों में फ़िलहाल काम ठप्प होने के कारण यहां से  पलायन तेज हो गया है. अबतक लाखों की संख्या में मजदूर बॉर्डर पार कर नेपाल मजदूरी करने जा चुके हैं. 


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सीमावर्ती नेपाल से कभी लोग रोजगार के लिए बिहार कमाने आते थे लेकिन अब बिहार से लोग नेपाल कमाने जा रहे हैं. बिहार से नेपाल में ज्यादा पैसा मिलने व मजदूरी में बढ़ोत्तरी के कारण लोग नेपाल की ओर रुख कर रहे हैं.  चौंकाने वाली बात तो यह है कि नेपाल से कमाकर लौटने वाले मजदूर बता रहे हैं कि पैसे के अलावा खाना-पीना और शराब भी वहां इन मजदूरों को हर रोज़ मुफ़्त में मिलता है. दरअसल नेपाल सीमा से सटे बगहा के विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों से मजदूर बीते एक महीने से लगातार नेपाल की ओर पलायन करने को मजबूर हैं. 


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इंडो-नेपाल के वाल्मीकिनगर बॉर्डर से प्रतिदिन बड़ी संख्या में मजदुर नेपाल में मजदूरी करने के लिए जा रहे हैं. वाल्मीकिनगर सीमा पर स्थित कस्टम ऑफिस के सामने नेपाल जाने वाले मजदूरों का जमघट लगा रहता है, जहां से नेपाल के दलाल मजदूरी सहित आवास, भोजन व प्रतिदिन एक बोतल शराब तय करके इन्हें अपने साथ ले जा रहे हैं. नेपाल से मजदूरी कर लौटे मजदूर मुन्ना प्रसाद ने बताया कि क्षेत्र में रोजगार की कमी है और मजदूरी भी कम है. जबकि नेपाल में प्रतिदिन 350 से 400 रुपए मजदूरी मिल रहा है. 


मजदूरों में ऋतुराज ने बताया कि हम लोग अपने ग्रामीण क्षेत्रों में धान की रोपाई करते हैं तो एक दिन में 150 से 200 रुपए कमाते हैं. वही नेपाल में 350 से 400 रुपए तक की कमाई हो जाती है. धान की रोपनी के लिए मजदूरों का नेपाल पलायन बहुत सारे सवालों को जन्म दे रहा है. रोजगार की तलाश में महिला,पुरुष के साथ-साथ बच्चे भी अपने घरों से निकलकर पड़ोसी देश जा रहे हैं. इन मजदूरों में धांगड़, मुसहर, आदिवासी व थारू जनजाति के लोगों की तादाद अधिक है. बगहा क्षेत्र के चिउटाहा बाजार, गर्दीदोन, महादेवा, धंगरहिया,सेमरा, बैराठी,चम्पापुर, लौकरिया, संतपुर सोहरिया, खरपोखरा आदि इलाके से मजदूर रोजगार के लिए नेपाल जा रहे हैं. एक आटो चालक राजेश ने बताया कि दोन, हरनाटांड, चिउटांहा, ढोलबाजावा, खैरपोखरा, रामनगर, सहोदरा व नरकटियागंज तक के मजदूर वाल्मीकिनगर बॉर्डर पार कर नेपाल जा रहे हैं. अनुमानित संख्या पूछे जाने पर आटो चालकों ने बताया कि एक माह में डेढ़ लाख से ज्यादा मजदूर नेपाल की ओर गये हैं.


बता दें कि बिहार में पंचायतों को विगत कई महीनों से कोई फंड या राशि का आवंटन नहीं मिल रहा है. लिहाजा ग्राम पंचायतों में जॉब कार्ड धारकों व मजदूरों को मनरेगा योजना या अन्य किसी योजना के तहत मिलने वाले कार्य पूरी तरह ठप्प हैं, लिहाजा रोज़ी रोटी की तलाश में लोग पड़ोसी देश नेपाल जा रहे हैं.


इधर बगहा2 के मनरेगा पीओ संजीव कुमार राय ने बताया कि पंचायतों में मिट्टी से संबंधित सभी कार्य 30 जून से लेकर 15 अक्टूबर तक बंद रहते हैं, जिसके कारण कुछ लोग इस बीच बेरोजगार हो गए हैं. जबकि मनरेगा के तहत पौधारोपण का काम दिया जाता है. जिसमें मजदूरों की संख्या सीमित रहती है. मनरेगा पीओ ने बताया कि संभवतः नेपाल में मजदूरों को मजदूरी अधिक मिलती है. जिस कारण वे नेपाल की तरफ रुख करते हैं.


REPORT- IMRAN AJIJ