राजगीर : राजगीर में पंच पहाड़ियों के बीच फैले हुए लगभग 65 किलोमीटर के क्षेत्र से अब एक नया व्यवसाय उभर रहा है, जिसमें प्राकृतिक रूप से उगने वाली जड़ी-बूटियों का व्यवसायीकरण हो रहा है. भारत के आयुष मंत्रालय के सहायता से यहां के औषधीय पौधों को वन विभाग द्वारा संरक्षित किया जा रहा है. स्थानीय लोगों को प्रशिक्षण देकर उन्हें इन जड़ी-बूटियों का प्रोसेसिंग और पैकेजिंग करके उन्हें आयुर्वेदिक दवाओं के रूप में बेचा जाएगा. पहले चरण में जंगली प्याज, सतमूली और हरमदा जैसी जड़ी-बूटियों को बाजार में उतारने की योजना है.


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मंत्रायल की मदद से औषधीय पौधों का किया जाएगा संरक्षण
जानकारी के लिए बता दें कि राजगीर में विपुलाचलगिरि, रत्नागिरि, उदयगिरि, स्वर्णगिरि और वैभारगिरि - ये पंच पहाड़ियां हैं. इन पहाड़ों की उम्र का सटीक अंदाज नहीं है, लेकिन लोग मानते हैं कि ये करीब 50 करोड़ साल पुराने हो सकते हैं. हर प्राचीन ग्रंथ में इन पहाड़ों का वर्णन मिलता है और यहां के जंगल में प्रागैतिहासिक काल के अवशेष भी पाए गए हैं. राजगीर में जड़ी-बूटियों का भंडार है और आयुष मंत्रालय की मदद से स्थानीय लोगों के साथ यहां के औषधीय पौधों का संरक्षण किया जाएगा, जिसकी प्रोसेसिंग और पैकेजिंग हो रही है.


जड़ी-बूटियां लेकर असाध्य रोगों का किया जाता था इलाज
विश्व के पहले सर्जन वैद्यराज जीवक 6000 साल पहले राजगीर में रहते थे. उन्होंने यहां के लोगों का इलाज किया और इसे विश्व के पहले सर्जन के रूप में माना जाता है. उन्होंने जड़ी-बूटियों से भगवान बुद्ध के घाव की सर्जरी भी की थी. आज भी देशभर के चिकित्सक यहां से जड़ी-बूटियां लेकर असाध्य रोगों का इलाज करते हैं.


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