शशिभूषण सिंह की दिनचर्या गांव की सफाई से प्रारंभ होती है और उसके बाद वे करीबी इलाकों में सफाई अभियान चलाते हैं. संसाधनों के अभाव के बावजूद सिंह ने कभी हार नहीं मानी.
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सीतामढ़ी: कई साल पहले तक जिसे लोग 'पगला झाड़ू वाला' कहकर तिरस्कृत किया करते थे, आज वही व्यक्ति बिहार के सीतामढ़ी में या यूं कहिए कि, पूरे बिहार में स्वच्छता का प्रतीक बनकर स्वच्छता की अलख जगा रहा है. अगर आप सीतामढ़ी की सड़कों पर किसी भी समय जींस पैंट और टी-शर्ट पहने किसी युवक को अनायास सड़कों पर झाड़ू लगाते या सफाई करते देखें तो चौंकिएगा नहीं और ना ही इसे सरकारी कर्मचारी मानने की भूल करिएगा.
9 साल से कर रहा सफाई
दरअसल, यह युवक पिछले नौ सालों से अपने गांव के अलावा जिले के कई सार्वजनिक स्थलों की सफाई करता रहा है. सीतामढ़ी के मेजरगंज प्रखंड स्थित डुमरी कला गांव के रहने वाले शशिभूषण सिंह 2011 से ही अपने दम पर स्वच्छता अभियान चला रहे हैं.
कभी हार नहीं मानी
उन्होंने कहा, 'पहले तो लोग मुझे 'बेकारी के कारण टाइमपास करने वाला', 'पगला झाड़ू वाला' और ना जाने क्या-क्या ताने मारते थे, लेकिन मैंने हिम्मत कायम रखी. मैंने हार नहीं मानी. अपने पैसे से झाड़ू व टोकरी खरीदकर साफ-सफाई में लगा रहा. जहां कहीं गंदगी दिखती थी, उसे साफ कर देता था.'
'मेरी पहचान ही झाड़ू बन गई है'
सिंह की दिनचर्या गांव की सफाई से प्रारंभ होती है और उसके बाद वे करीबी इलाकों में सफाई अभियान चलाते हैं. संसाधनों के अभाव के बावजूद सिंह ने कभी हार नहीं मानी. वे खुद कहते हैं, 'आज मेरी पहचान ही झाड़ू बन गई है. अब क्वारंटाइन सेंटर्स के पास भी सफाई करता हूं.'
PM से मिलने की इच्छा
सिंह बताते हैं कि, 2011 से उनका यह कार्य अनवरत जारी है. उनकी इच्छा देश में स्वच्छता के अग्रदूत बने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) से मिलने की है. वे कहते हैं, 'मैं 2011 से इस कार्य को कर रहा हूं, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के स्वच्छता अभियान के बाद ही मेरी पहचान बन सकी. उसके पहले तो लोग मुझे पागल तक कहते थे. हालांकि कहते वो मुझे अब भी यही हैं लेकिन अब उसमें उनका प्यार झलकता है.'
महात्मा गांधी को मानता है आदर्श
महात्मा गांधी को आदर्श मानने वाले 38 वर्षीय सिंह अपने साथ ही झाडू लेकर चलते हैं और जहां कहीं भी उन्हें गंदगी दिखाई देती है, वे उसकी सफाई में लग जाते हैं. सिंह झाड़ू, टोकरी व कुदाल से सड़क, नाला सहित सार्वजनिक स्थलों पर भी की साफ-सफाई करते हैं.
मुख्यमंत्री-उपमुख्यमंत्री कर चुके हैं सम्मानित
उन्होंने आगे कहा, 'मैं अपने पैसे से ही झाड़ू व टोकरी खरीदता हूं. मुझे प्रखंड अधिकारी से लेकर सहकारिता मंत्री, उपमुख्यमंत्री और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) तक से सम्मानित होने का अवसर मिला है, लेकिन आज तक किसी प्रकार की सरकारी सहायता नहीं मिली है. अपने पैसों या कुछ मित्रों के सहयोग से ही यह काम आगे बढ़ रहा है.'
सामान खरीदने के लिए पत्नी के गहने तक बेचे
सिंह के सफाई के जुनून को इससे भी समझा जा सकता है कि, जब उनके पास जब एक बार झाड़ू, डस्टबिन खरीदने के पैसे नहीं थे, तब उन्होंने ये सामान खरीदने के लिए अपनी पत्नी के गहने तक बेच दिए थे. सिंह अपनी पत्नी अंजू को इस काम के लिए अपनी प्रेरणा मानते हैं. अंजू, शशिभूषण सिंह को उत्साहित करती हैं.
'संकल्प को कर रहा पूरा'
अंजू का कहना है कि समाज, घर, को साफ रखने से अच्छा कोई काम हो ही नहीं सकता. आज आर्थिक रूप से हमलोग भले ही कमजोर हैं लेकिन दुनिया को एक सही संदेश तो दे पा रहे हैं. इस अभियान के प्रारंभ करने के संबंध में पूछे जाने पर शशिभूषण बताते हैं, 'जब मैं पढ़ाई कर रहा था, तब गांव के एक मोहल्ले में बीमारी फैलने से कई लोगों की मौत हुई. तभी गंदगी से होने वाले बीमारियों व मौतों को रोकने के लिए स्वच्छता का संकल्प लिया और आज तक वह संकल्प पूरा कर रहा हूं.'
वार्ड सदस्य हो चुका है निर्वाचित
गांव वाले भी अब शशिभूषण के साथ खड़े हैं. वर्ष 2015 में हुए पंचायत चुनाव में लोगों ने इन्हें वार्ड सदस्य के रूप में निर्वाचित किया था. इससे इन्हें और प्रोत्साहन मिला. सिंह का एक ही सपना है. वह कहते हैं, 'मुझे कुछ मिले या न मिले, बस एक बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने का अवसर जरूर मिले.'