Patna: पटना उच्च न्यायालय ने वित्तीय संस्थानों और बैंकों को कर्ज नहीं चुकाने वाले मालिकों के वाहन बाहुबलियों की मदद से जबरन छीनने के खिलाफ चेतावनी देते हुए कहा कि इस तरह का कृत्य जीवन और आजीविका के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है. 


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न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद ने कही ये बात


न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद की एकल पीठ ने उक्त मामले को लेकर दायर याचिकाओं का निपटारा करते हुए कहा, 'बैंक और वित्तीय कंपनियां भारत के मौलिक सिद्धांतों और नीति के विपरीत कार्य नहीं कर सकती हैं, जिसका अर्थ है कि कोई भी व्यक्ति कानून की स्थापित प्रक्रिया का पालन किए बिना आजीविका और सम्मान के साथ जीने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता. अदालत ने कहा कि बैंकों और वित्त कंपनियों के अधिकारों को संवैधानिक सीमाओं के भीतर और कानून के अनुसार प्रयोग किया जाना चाहिए. 


अदालत ने कहा, 'उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में तथाकथित वसूली एजेंट (रिकवरी एजेंट) के रूप में गुंडों और बाहुबलियों को भेजकर इस तरह से कब्जा करने के कृत्य पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने की बात कही है.' 


अदालत ने बिहार के सभी पुलिस अधीक्षकों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि किसी भी वसूली एजेंट द्वारा किसी भी वाहन को जबरन जब्त नहीं किया जाए. वसूली एजेंट द्वारा जबरन वाहनों को जब्त करने के मामलों की सुनवाई करते हुए अदालत ने 19 मई को यह फैसला सुनाया. इस तरह के कृत्य के लिए दोषी हर बैंक-बित्तीय कंपनी पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया गया. 


उच्च न्यायालय ने अपने 19 मई के आदेश में कहा कि कर्ज प्रदाता (फाइनेंसर) को ऋण समझौते के तहत वाहन को फिर से हासिल करने की शक्ति मिली है, लेकिन इस शक्ति की आड़ में उसे कानून अपने हाथों में लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती है.


(इनपुट भाषा के साथ)