हर साल बाढ़ से बेबस हो जाता है बिहार, तिनकों की मानिंद बिखर जाते हैं आशियानें
Bihar Samachar: बिहार में हर साल बाढ़ का खौफनाक मंजर नजर आता है. ये एक ऐसा अभिशाप है जिसे कई पीढ़ियां झेलती आ रही हैं.
Patna: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) एक बार फिर से एरियल सर्वे पर निकले हैं. हेलिकॉप्टर के जरिए नीतीश कुमार बाढ़ के असर की मॉनिटरिंग करेंगे और अधिकारी के साथ चर्चा भी करेंगे. इससे पहले भी कई बार मुख्यमंत्री ने एरियल सर्वे के जरिए हालात जानने की कोशिश की है. बिहार के जल संसाधन मंत्री संजय झा (Sanjay Jha) ने कहा कि बाढ़ (Bihar Flood) को लेकर बिहार का जल संसाधन विभाग अलर्ट है. संजय झा ने ये भी कहा कि बिहार में बाढ़ की सबसे बड़ी समस्या है गाद, क्योंकि गाद गंगा की अविरलता में सबसे बड़ी बाधा है. ना तो एरियल सर्वे नया है और ना ही मंत्री जी का बयान, हर साल इस तरह के बयान दिए जाते हैं लेकिन होता कुछ भी नहीं है.
बिहार में हर साल बाढ़ का खौफनाक मंजर नजर आता है. ये एक ऐसा अभिशाप है जिसे कई पीढ़ियां झेलती आ रही हैं. एक बड़ा हिस्सा ऐसा है जहां आशियाना तिनकों की मानिंद बिखर जाता है. लाखों लोग दाने-दाने को तरसने लगते हैं, मेहनत से पाई-पाई जोड़कर तैयार किया घरौंदा आंखों के आगे पानी में समाने लगता है. अपनों से बिछड़ने की बेबसी यहां के लोगों के चेहरे पर पढ़ी जा सकती है, दरअसल, ये एक सपने के टूटने की सिसकी भरी कहानी है. इस दौरान बिहार के एक बड़े इलाके में हर तरफ हाहाकार नजर आती है, हकीकत ये है कि इन दिनों बिहार शोक में डूब जाता है.
बिहार में बाढ़ के दौरान हर साल औसतन 200 लोगों की मौत हो जाती है, साथ ही हर साल करीब 7 सौ पशुओं की भी मौत हो जाती है. हर साल करीब 1 लाख घरों को नुकसान पहुंचता है जबकि करीब छह लाख हेक्टेयर फसल पानी में डूब जाती है. सूबे को हर साल अरबों का चूना लगता है और करीब 75 फीसदी आबादी इससे प्रभावित होती है.
बिहार में हर साल बाढ़ भारी तबाही मचाती है. जब बाढ़ आती है तो सरकार के हाथ-पांव फूल जाते हैं, प्रशासन बेबस नजर आने लगता है और आम लोग इस विभीषका के शिकार बनने लगते हैं. बाढ़ का पानी जाने के बाद भी कुछ दिन सरकार सक्रिय बनी रहती है और फिर इसे भूल जाती है. नतीजा कुछ नहीं बदलता अगले साल फिर बाढ़ आती है, यही कहानी साल दर साल दोहराई जा रही है. बिहार में आई बाढ़ पर पर्यावरणविद अनुपम मिश्र ने कभी लिखा था कि-
'बाढ़ अतिथि नहीं है, यह कभी अचानक नहीं आती, दो-चार दिन का अंतर पड़ जाए तो बात अलग है. इसके आने की तिथियां बिल्कुल तय हैं. लेकिन जब बाढ़ आती है तो हम कुछ ऐसा व्यवहार करते हैं कि यह अचानक आई विपत्ति है. इसके पहले जो तैयारियां करनी चाहिए, वे बिल्कुल नहीं हो पाती हैं.'
बाढ़ की भीषण त्रासदी झेलना बिहार की सदियों से मजबूरी रही है, लेकिन पहले का समाज इन आपदाओं के लिए आज से ज्यादा तैयार रहता था. जिन इलाकों में बाढ़ आती है उन इलाकों की संपन्नता अनुपम मिश्र ने कुछ यूं बताई थी, 'कम लोगों को पता है कि उत्तर बिहार एक संपन्न टुकड़ा है, मुजफ्फरपुर की लीचियां, पूसा ढोली की ईख, दरभंगा का शाहबसंत धान, शकरकंद, आम, चीनिया केला और बादाम और यहीं के कुछ इलाकों में पैदा होने वाली तंबाकू, जो पूरे शरीर की नसों को हिलाकर रख देती है.'
मशहूर पर्यावरणविद सर विलियम विलकॉक्स ने 77 साल की उम्र में 1930 में कलकत्ता विश्वविद्यालय में बाढ़ पर 3 ऐतिहासिक भाषण दिए थे. इस स्पीच में उन्होंने साफ कहा था, 'विकास के नाम पर बिहार और बंगाल के हिस्सों में जो कुछ भी किया गया है, उसमें बाढ़ और बढ़ी है, घटी नहीं है.'
बाढ जब आती है तो भूखों की भी बाढ़ आती है. धरती की छाती चीरकर पाताल से अन्न निकालनेवाले एक मुठ्ठी अनाज के मुहताज हो जाते हैं. आपदा में घिरे लोग सिस्टम की तरफ उम्मीद भरी निगाहों से देखते रहते हैं लेकिन उन्हें बदले में जो कुछ भी मिलता है वो बहुत थोड़ा होता है.