पटनाः JP Senani Samman Yojna: लोकनायक जय प्रकाश नारायण (जेपी) ने शुरू से ही सत्ता में अपनी कभी भी दिलचस्पी नहीं दिखाई थी. जेपी ने बिहार के पटना स्थित गांधी मैदान में 5 जून 1974 को संपूर्ण क्रांति का आह्वान किया था. जेपी ने कहा था कि 'सम्पूर्ण क्रांति से मेरा तात्पर्य समाज के सबसे अधिक दबे-कुचले व्यक्ति को सत्ता के शिखर पर देखना है. उस समय गांधी मैदान में 'जात-पात तोड़ दो, तिलक-दहेज छोड़ दो, समाज के प्रवाह को नई दिशा में मोड़ दो' नारा गूंजा था. इसी नारे से जय प्रकाश नारायण को विश्व में पहचान मिला. बता दें कि बिहार से उठकर देशभर में फैलने वाली करीब 46 साल पहले हुई क्रांति आज भी लोगों के दिलों में जिंदा है. उस समय जेपी के साथ जो लोग खड़े थे आज उन लोगों को जेपी सेनानी कहा जाता है. साथ ही जेपी सेनानियों को बिहार सरकार हर महीने 15 हजार रुपये देती है.


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कौन थे जय प्रकाश नारायण और कैसा था राजनीतिक सफर
बता दें कि जेपी अमेरिका से वापस लौटने के बाद 1929 में कांग्रेस में शामिल हो गए थे, लेकिन सही बताएं तो उनकी विचारधारा समाजवादी थी. जेपी ने कांग्रेस से अलग होकर 1952 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की थी. आजादी के बाद राजनीति ने जेपी कुछ समय के लिए हताश कर दिया. इसके बाद जेपी 1974 में इंदिरा गांधी के राजनीति के खिलाफ देशभर में तेजी से उभरे और इंदिरा गांधी के आपातकाल के खिलाफ आवाज बुलंद की. इसके अलावा उन्होंने बिहार में छात्र आंदोलन की अगुआई की. साथ ही बता दें कि इसके बाद 1979 में जेपी का निधन हो गया. इसके बाद 1999 में उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया.


अमेरिका से लौटने के बाद जेपी देश पर हो गए थे समर्पित
बता दें कि जेपी पढ़ाई के लिए अमेरिका गए थे. भारत लौटने पर जेपी देश के लिए पूरी तरह समर्पित हो गये थे. जेपी अंग्रेज सरकार के खिलाफ लोग आन्दोलन का हिस्सा बने रहे. उसके बाद उन्होंने अपने अंदोलन के बल पर अंग्रेजों के नाक में दम कर दिया. अंदोलन के दौरान जेपी को गिरफ्तार करके जब जेल में बंद कर दिया गया तो वे हजारी बाग जेल से फरार तक हो गये थे. जेपी बहुत ही समझदार और होशियार थे और  महात्मा गांधी जेपी को बहुत पसंद करते थे, इधर जेपी भी महात्मा गांधी की हर एक बात मानते थे.


बिहार में था जेपी आंदोलन का सेंटर
बता दें कि बिहार के अंदर जेपी सेनानी सम्मान योजना खासतौर पर उन लोगों के लिए शुरू की गई थी, जिन्होंने जेपी आंदोलन को सफल बनाने में अपना योगदान दिया था. बिहार के ऐतिहासिक जेपी आंदोलन का एक तरह से सेंटर था. इस दौरान कई लोगों को जेल में ठूंसा गया था. जेल भरने की ये प्रक्रिया तकरीबन डेढ़ साल तक चली थी, जिसमें किसी को 1 या 2 महीने और छह महीनों से लेकर साल भर तक का वक्त जेल में बिताना पड़ा था. 2009 और 2010 में योजना की शुरुआत करने के बाद इसकी राशि में पहले भी बदलाव हो चुका है. अभी तक इसमें 1 से 6 महीनें तक का समय जेल में बिताने वाले सेनानियों को पांच हजार रुपये पेंशन के अलावा 6 महीने से अधिक या सालभर तक जेल में बिताने वालों को 10 हजार रुपये बतौर पेंशन मासिक दिए जाते थे. बता दें कि पिछले वर्ष बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने जेपी सेनानियों की पेंशन बढ़ाने के बाद 15 हजार रुपये दिए जाने लगे.


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