BJP Foundation Day 2023: अछूत से लेकर अगम्य तक का सफर, कैसे अपनी आभा को लगातार बढ़ाती चली गई बीजेपी
BJP Foundation Day 2023: कभी भारतीय राजनीति में सबसे अछूत माने जाने वाली भारतीय जनता पार्टी गुरुवार को अपना 43वां स्थापना दिवस मनाएगी. जी हां, 6 अप्रैल 1980 को बीजेपी अस्तित्व में आई थी.
BJP Foundation Day 2023: कभी भारतीय राजनीति में सबसे अछूत माने जाने वाली भारतीय जनता पार्टी गुरुवार को अपना 43वां स्थापना दिवस मनाएगी. जी हां, 6 अप्रैल 1980 को बीजेपी अस्तित्व में आई थी. उससे पहले भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक भारतीय जनसंघ के बैनर तेल अपनी राजनीति कर रहे थे और 1977 में जनता पार्टी में विलय हो गया था. जब 1979 में जनता पार्टी का विघटन हुआ तो उसके बाद भारतीय जनता पार्टी अस्तित्व में आई थी. तब भारतीय जनता पार्टी के संस्थापकों ने शायद ही सोचा हो कि आगे जाकर यह पार्टी देश ही नहीं दुनिया की सबसे विशाल पार्टी बन जाएगी. जी हां, पीएम मोदी के नेतृत्व में बीजेपी आज की तारीख में दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी होने का गौरव अपने नाम कर चुकी है. दरअसल, आज की राजनीतिक विमर्श में यह तथ्य कम आता है कि जनता पार्टी में आपसी विद्वेष के बाद भारतीय जनता पार्टी अस्तित्व में आई थी.
हुआ यूं कि उस समय के आम चुनाव में हार के लिए जनता पार्टी के अंदर ही अंदर मतभेद गहराते चले गए और अधिकांश नेताओं का मानना था कि इस हार के लिए भारतीय जनसंघ वाला धड़ा जिम्मेदार है. अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी ने 5 और 6 अप्रैल को एक बड़ी रैली बुलाने का ऐलान कर डाला. उधर, जनता पार्टी की बैठक में तय किया गया कि जनता पार्टी का कोई सदस्य आरएसएस का सदस्य नहीं हो सकता. तब वाजपेयी और आडवाणी ने इसे परोक्ष तौर पर निष्कासन माना और बजाय आरएसएस छोड़ने के, जनता पार्टी ही छोड़ने का ऐलान कर दिया. अगर उस समय अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी जनता पार्टी से अलग न होते और आरएसएस की जगह जनता पार्टी को अपनाते तो शायद आज की भारतीय जनता पार्टी का स्वरूप ऐसा न होता, बल्कि यह पार्टी पैदा ही नहीं हुई होती.
1984 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को केवल 2 सीटें हासिल हुई थीं और तमाम पार्टियों ने उसका उपहास उड़ाया था. स्थापना काल से लेकर आगे के 2 दशकों तक अटल, आडवाणी और मुरली मनोहर पार्टी के त्रिमूर्ति के रूप में स्थापित थे. स्थापना काल से ही बीजेपी को आरएसएस की परवरिश मिली और 1989 के चुनाव में बीजेपी को 86 सीटें मिली थीं और उसी साल उनको ऐसा मुद्दा मिल गया, जिसने न केवल बीजेपी बल्कि देश भर की राजनीति को बदलकर रख दिया. अयोध्या में राम मंदिर बनाने के मुद्दे को लेकर लालकृष्ण आडवाणी ने रथयात्रा निकाली और व्यापक जनसमर्थन पार्टी के लिए हासिल की. राम मंदिर मुद्दा केवल एक मुद्दा नहीं थ, बल्कि वह तुरुप का इक्का था, जो बीजेपी के हाथ लगते ही भारतीय राजनीति में कांग्रेस के लिए दुस्वप्न साबित हुआ.
16 साल के संघर्ष के बाद भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में 1996 में सबसे कम दिन यानी 13 दिन की सरकार बनी और एक बार फिर बीजेपी और उसके नेता अटल बिहारी वाजपेयी को अन्य दलों की ओर से उपहास उड़ाया गया था. 2 साल बाद ही फिर से चुनाव हुए और बीजेपी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार बनी थी, जो 13 महीने तक चली थी. 1999 में फिर चुनाव हुए और एनडीए की सरकार अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में फिर से बहुमत में आ गई थी, जो 5 साल चली थी. 2004 में शाइनिंग इंडिया के नारे का मजाक उड़ा और कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए गठबंधन की सरकार बनी थी. 2009 में भी बीजेपी कोई खास कमाल नहीं कर पाई और उसकी करारी हार हो गई थी. 2014 में बीजेपी ने अपने तुरुप का इक्का आजमाया और नरेंद्र मोदी पूर्ण बहुमत के साथ भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनाने में कामयाब रहे. 2019 के चुनाव में भी बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को ही अपना नेता मानकर उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ा और फिर जीत हासिल की. 2019 में 303 सीटों के साथ भारतीय जनता पार्टी ने अपने दम पर अब तक का सबसे चमत्कारिक प्रदर्शन किया था.
भारतीय जनता पार्टी की स्थापना के बाद से ही इसकी गति को जैसे पंख लग गए. दिन दूनी और रात चैगुनी वाली रफ्तार से इसके विधायकों की संख्या बढ़ती चली गई. 1981 में भारतीय जनता पार्टी के पास 148 विधायक थे तो 1991 में यह संख्या 751 हो गई. 2001 में 770 और 2011 में 869 हो गई. 2022 में बीजेपी के कुछ 1296 विधायक थे. भाजपा के लिए यह स्वर्ण काल कहा जा सकता है तो कांग्रेस अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है. विधायकों के अलावा सांसदों की बात करें तो 1984 में 2, 1989 में 85, 1991 में 120, 1996 में 161, 1998 में 182, 1999 में 183, 2004 में 138, 2009 में 116, 2014 में 282 और 2019 में 303 सांसद जीतकर संसद पहुंचे थे.
वोट शेयर के मामले में 1984 में 1.82 करोड़, 1989 में 3.41 करोड़, 1991 में 5.53 करोड़, 1996 में 6.79 करोड़, 1998 में 9.42 करोड़, 1999 में 8.65 करोड़, 2004 में 8.63 करोड़, 2009 में 7.84 करोड़, 2014 में 17.1 करोड़ और 2019 में 22.9 करोड़ वोट मिले थे.