दुल्हिन बाजार: Chaiti Chhath Puja 2023: राजधानी पटना से 45 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित दुल्हिन बाज़ार प्रखंड के उलारधाम द्वापरकालीन सूर्य मंदिर एवं 35 किलोमीटर की दूरी पर सोन नहर के किनारे बिक्रम प्रखंड के असपुरा प्राचीन मंदिर में लोक आस्था का महापर्व चैती छठ एवं कार्तिक महीने के छठ के अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते रहे हैं. बिहार ही नहीं बल्कि विभिन्न प्रान्तों से लोग छठ व्रत के अवसर पर उलार धाम आते हैं. शनिवार को नहाय खाय से चार दिवसीय छठ पूजा अनुष्ठान शुरू हुआ था. आज अर्थात सोमवार को श्रद्धालु शाम में अस्ताचलगामी एवं मंगलवार को उदीयमान सूर्य को छठव्रती अर्घ्य देंगे.


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पालीगंज अनुमंडल प्रशासन एवं उलार धाम सूर्य मंदिर न्यास समिति द्वारा तैयारी पूरी हो चुकी है. बता दें कि पटना जिलान्तर्गत दुल्हिन बाजार प्रखंड के उलार धाम सूर्य मंदिर का प्राचीन महत्व रहा है. वास्तव में उलार नहीं बल्कि प्राचीन ओलार्क का अपभ्रंश उलार है. यहाँ द्वापर में श्री कृष्ण एवं जामवंती के पुत्र राजा शाम्ब ने कुष्ठ व्याधि से मुक्ति के लिए सूर्य उपासना की थी और जन कल्याण के लिए बारह अर्क स्थान का निर्माण कराया था. शाम्ब पुराण के मुताबिक़ राजा शाम्ब को अपने रूप पर बड़ा घमन्ड था. एक दिन वे सरोवर में युवतियों के साथ स्नान कर रहे थे तभी वहां से गुजर रहे महर्षि गर्ग का राजा शाम्ब ने उपहास उड़ाया. जिससे भड़के महर्षि गर्ग ने राजा शाम्ब को कुष्ठ रोग होने का श्राप दे दिया. इस श्राप से मुक्ति पाने के लिए भगवान कृष्ण ने अपने पुत्र राजा शाम्ब को सूर्य की उपासना करने की सलाह दी.


बिहार में 6 सूर्य स्थली


उसके बाद राजा शाम्ब ने 12 जगहों पर सूर्य की उपासना की जो बाद में 12 अर्क (सूर्य स्थली) के रूप में प्रतिष्ठापित हुआ. जिसमें उलार धाम सूर्य मंदिर सहित 6 सूर्य स्थली बिहार में है और बाकी  6 बिहार के बाहर है. पटना के दुल्हिन बाजार में सूर्य स्थली ओलार्क (उलार) के अलावा उड़ीसा में कोणार्क, औरंगाबाद के दे‌व में देवार्क, पण्डारक में पुण्यार्क, औगारी में औंगार्क,काशी में लोलार्क,सहरसा में मार्कण्डेयार्क, कटारमल में कटलार्क, उत्तराखंड में अलमोरा, बड़गांव  में बालार्क, चन्द्रभागा नदी के किनारे चानार्क,पाकिस्तान में आदित्यार्क और गुजरात में मोढ़ेरार्क के रूप में सूर्य स्थली का निर्माण हुआ.


दूर हो जाता है चर्म रोग


उलारधाम जो भी आते हैं उनकी मन्नते पूरी होती हैं और यही कारण है कि प्रत्येक वर्ष श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ती रही हैं. चार दिनों तक लाखों श्रद्धालु डेरा डालकर अस्ताचलगामी एवं उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देंगे. यहां प्रशासनिक व्यवस्था भी पूरी तरह चुस्त की गयी है तथा तालाब में बेैरिकेटिंग के साथ प्रशिक्षित गोताखोर नाव पर सवार होकर सेवा में लगे हुए हैं. यहां के तालाब एवं कुआं के सम्बन्ध में ऐसी मान्यता है कि यहां नियमित रूप से स्नान करने से कुष्ठ रोग से मुक्ति मिलती है. यहां विशेष अवसर पर टेटुआ नाच काफी प्रसिद्ध है.


इनपुट- शशांक शेखर


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