Emergency in India: देश को अंग्रेजों से मिली आजादी के बाद अगर जनता को खौफ के साये में एक बार फिर जीने को मजबूर होना पड़ा तो वह थी 25 जून 1975 की वह मध्य रात्री जब इंदिरा गांधी ने रेडियो से इस बात की घोषणा कर दी की पूरे देश में आपातकाल लागू कर दिया गया है. अखबारों के दफ्तरों की बिजली काट दी गई. मीडिया पर ऐसा प्रतिबंध तो अंग्रेजों के जमाने भी नहीं लगा था. विदेशी मीडिया संस्थानों के ब्यूरो चीफ को देश छोड़ने के निर्देश दे दिए गए. इस सब के पीछ एक ही वजह थी की इंदिरा चाहती थी कि देश में आपातकाल की बात धीरे-धीरे पहुंचे. इस सब के बीच इंदिरा गांधी सरकार के विरोध में सड़कों पर उतरे लोगों के खिलाफ दमन का एक हथियार तैयार किया गया जिसे मीसा कानून कहा जाता है. 


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हालांकि आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम (Maintenance of Internal Security Act आंतरिक सुरक्षा अधिनियम (MISA)) 1975 में लाया गया कानून नहीं था बल्कि यह सन 1971 में भारतीय संसद द्वारा पारित एक विवादास्पद कानून था जिसमें आपातकाल के दौरान संशोधन किए गए और इसका उपयोग राजनीतिक बंदियों के खिलाफ भी किया गया. पहले से ही इस कानून के तहत संस्थाओं को असीमित अधिकार दे दिये गये थे और आपातकाल के दौरान तो यह संशोधन के बाद दमनकारी कानून ही बन गया. 


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मतलब साफ था कि इंदिरा सरकार ने इस दमनकारी कानून का आपातकाल के दौरान जमकर दुरुपयोग किया. इसके साथ ही एक और कानून था जिसका इस दौरान खूब दुरुपयोग हुआ और वह था डीआईआर (डिफेंस ऑफ इंडिया एक्ट). मीसा के अलावा डिफेंस ऑफ इंडिया एक्ट में तो गिरफ्तार हुए व्यक्ति को जमानत पाने का अधिकार तक नहीं था ना हीं वह इसके खिलाफ अपील कर सकता था. ऐसे में इंदिरा के विरोधियों का दमन इसी कानून के तहत हुआ और इसमें लाल कृष्‍ण आडवाणी, अटल बिहारी वाजपेयी, जेपी, राजनारायण, जार्ज फर्नांडीस, लालू यादव, नीतीश कुमार, अरुण जेटली, रविशंकर प्रसाद, सुशील मोदी जैसे नेताओं को जेल में लंबा समय गुजारना पड़ा. 


मीसा कानून के तहत आपातकाल लगने के साथ 25 जून की आधी रात को ही जय प्रकाश नारायण की गिरफ्तारी हो गई. जय प्रकाश नारायण इंदिरा के काम से खफा होकर एक साल पहले से ही उनके खिलाफ आंदोलन कर रहे थे. सरकार ने कांग्रेस विरोधियों, पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के खिलाफ इस दमनकारी कानून का खूब बेजा इस्तेमाल किया. इस कानून के तहत किसी की भी किसी भी वक्त गिरफ्तारी हो सकती थी. किसी की तलाशी के लिए भी किसी तरह के वारंट की जरूरत नहीं थी. फोन टैपिंग को लीगल बना दिया गया था. बिना किसी बात के किसी को भी जेल में डालने की असीमित अधिकार एजेंसियों को प्राप्त था. किसी भी तरह के विरोध प्रदर्शन पर इस कानून के तहत पाबंदी लगा दी गई. 


हालांकि 1977 में जब इंदिरा गांधी की सरकार सत्ता से बेदखल हुई और नई सरकार का गठन हुआ जो जनता पार्टी की सरकार थी तो इसी सरकार ने काले कानून को खत्म कर दिया. इसी कानून को आगे रखकर लालू यादव ने अपनी पुत्री का नाम ही मीसा रख दिया था.