Patna: स्वतंत्रता दिवस के ठीक एक दिन बाद एक ऐसे सत्याग्रही का जन्मदिन आता है जिन्होंने कथा, काव्य के जरिए आजादी की अलख जगाई और जिनकी कविताओं के जरिए भारत के लोगों ने आजादी के सपनों को पाला. 1857 के स्वतंत्रता संग्राम को आज की पीढ़ी जिन किताबों और कविताओं के जरिए जानती है, उनमें 'झांसी की रानी' कविता का सबसे बड़ा योगदान रहा. उन कविता के जरिए ही लोगों ने झांसी की रानी की वीरता को एक-दूसरे तक पहुंचाया. 


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गुलाम भारत में झांसी की रानी के पराक्रम के किस्से एक से दूसरे लोगों तक सुभद्रा कुमारी चौहान (Subhadra Kumari Chauhan) की इस कविता के जरिए ही पहुंचे थे. 'खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी' कविता की लेखिका और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सुभद्रा कुमारी चौहान की आज 117वीं जयंती है, इस अवसर पर सर्च इंजन गूगल ने अपने डूडल के जरिए सुभद्रा कुमारी चौहान को याद किया है. 


इस डूडल पर क्लिक करने पर सुभद्रा कुमारी चौहान से संबंधित पेज खुल रहे हैं. उनका जन्म आज ही के दिन 1904 में उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद के पास निहालपुर में हुआ था. महज 9 साल की उम्र में ही सुभद्रा कुमारी चौहान की पहली कविता प्रकाशित हो गई थी. उनकी हिंदी कविता 'झांसी की रानी' बहुत मशहूर हुई. इसी कविता के जरिए उन्होनें आजादी का अलख जगाया और फिर आजादी की लड़ाई के दौरान अंग्रेजों की यातनाएं सहीं और कई बार जेल भी गईं. 


1921 में महज 17 साल की उम्र में सुभद्रा कुमारी गांधी जी के असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाली प्रथम महिला थीं. वो दो बार जेल भी गईं. अपनी ओजपूर्ण कविता के जरिए स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों में जोश भरने वाली सुभद्रा कुमारी चौहान का 15 फरवरी, 1948 को 44 साल की उम्र में ही निधन हो गया था लेकिन बहुत कम समय में हीं वो भारतीय जनमानस में इस कदर रच बस गईं कि आज भी उनकी रचना को लोग भुले नहीं हैं.