Gyanwapi Case Carbon Dating: ज्ञानवापी पर फैसला आने से पहले जान लीजिए क्या है कार्बन डेटिंग, कैसे बताती है वस्तुओं की उम्र
Gyanwapi Case Carbon Dating: कार्बन डेटिंग की मांग को लेकर दी गई याचिका के खिलाफ हिंदू पक्ष की ही मुख्य वादिनी राखी सिंह के वकील के द्वारा इसका विरोध किया गया था. जिसके बाद इस पर फैसला काफी रोचक मोड़ पर है.
पटनाः Gyanwapi Case Carbon Dating: ज्ञानवापी-शृंगार गौरी केस में शुक्रवार को महत्वपूर्ण फैसला आने वाला है. यह फैसला बीते दिनों सर्वे में मिले शिवलिंग नुमा आकृति की सही उम्र जानने के लिए जरूरी है. वादी पक्ष की 4 महिलाओं द्वारा ज्ञानवापी के वजू खाने में मिले कथित शिवलिंग के कार्बन डेटिंग के लिए याचिका दी गई थी. इस पर सुनवाई पूरी हो चुकी है, शुक्रवार को इस पर फैसला होना है इसे लेकर शहर भर में समर्थन के पोस्टर लगे हुए हैं. इसी के साथ ज्ञानवापी मामले में एक नया मोड़ आ जाएगा. हालांकि कार्बन डेटिंग मांग करने और न कराने देने वालों का समूह भी आमने-सामने है.
राखी सिंह के वकील ने किया था विरोध
कार्बन डेटिंग की मांग को लेकर दी गई याचिका के खिलाफ हिंदू पक्ष की ही मुख्य वादिनी राखी सिंह के वकील के द्वारा इसका विरोध किया गया था. जिसके बाद इस पर फैसला काफी रोचक मोड़ पर है. शृंगार गौरी नियमित दर्शन मामले में कुल 5 वादी महिलाएं हैं, जिनमें से चार वादी महिलाओं के वकील विष्णु शंकर जैन ने सर्वे के दौरान वजू खाने में मिले शिवलिंग के कार्बन डेटिंग की मांग के लिए याचिका दी थी. जिसका मुख्य वादिनी राखी सिंह के वकील ने आधिकारिक तौर पर विरोध किया था.
क्या है कार्बन डेडिंग
कार्बन डेटिंग की टेक्नॉलॉजी की खोज 1949 में शिकागो यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक विलियर्ड लिबी के द्वारा की गई थी. इसके जरिए कोई वस्तु कितनी पुरानी है, ये पता लगाया जा सकता है. इसके लिए लकड़ी, पुरानी वस्तुओं और चट्टानों की उम्र का पता लगाया जा सकता है.
ये है कार्बन डेटिंग के लिए जरूरी
कार्बन एक रासायनिक तत्व है. इसमें 3 तरह से मुख्य आइसोटोप्स हैं. C12, C13 और C14.इसमें C14 सबसे अहम होता है और इसका निर्माण कॉस्मिक किरणों और आकाशीय बिजली से पृथ्वी के वायुमंडल में होने वाली n-p रियेक्शन की प्रक्रिया के दौरान होता है . आइसोटोप्स C12 और C13 स्थाई होते हैं, जबकि तीसरा आइसोटोप C14 अस्थाई होता है, . C14 की खासियत है कि लिए गए सैंपल में यह एक निश्चित रेट के अनुसार डिसइंटीग्रेट (विघटित) होता जाता है और लगभग 5730 ± 40 वर्षों में आधा रह जाता है. इसलिए जिस भी वस्तु की कॉर्बन डेटिंग करनी होती है तो सैंपल में चारकोल जैसे किसी सैंपल का होना जरूरी है.
सैंपल में पाए गए C14 कार्बन की मात्रा की तुलना डिसइंटीग्रेशन के स्टैंडर्ड रेट से कर के सैंपल की डेट पता करते हैं. इस तकनीक से 50 हजार साल पुरानी वस्तु की उम्र पता की जा सकती है. साइंटिफिक डेटिंग के लिए एक्सिलरेटेड मास स्पेक्ट्रोमीट्री यानी AMS, ऑप्टिकल स्टिमुलेटेड ल्युमिनेसेंस यानी OSL और थोरियम-230 डेटिंग का आवश्यकतानुसार प्रयोग किया जाता है.
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